“वो अड़तालीस घंटे”

रहस्य रोमांच (सच्ची घटना पर आधारित) 

आज से करीब तीस वर्ष पूर्व की यह घटना है। बात शुरू होती है भिलाई स्टील प्लांट का इं​टरव्यू काल आने से। इंटरव्यू मेरे एक मित्र रजनीश दुबे का होना था। प्लांट में उसने आवेदन दिया था। उसके प्रत्युत्तर में साक्षात्कार एवं शारीरिक परिक्षण की सूचना मिली थी सो उसने अपने इंटरव्यू की तैयारियां शुरु कर दी। उसने मुझे साथ चलने को कहा, मैं तैयार हो गया। उक्त तिथि को हम शाम की पैसेंजर ट्रेन से बिलासपुर से भिलाई पावर हाउस स्टेशन के लिए निकल गए। हम लोग जानबूझकर इंटरव्यू  के एक दिन पहले ही जा रहे थे। योजना यह थी के रात में वहां पहुंचकर सुबह शारीरिक परीक्षण स्थल एवं साक्षात्कार स्थल आदि की जानकारी व जगह देखकर निश्चिंत हो सके, वर्ना बाद में जाने पर परेशानी हो सकती थी।

उस दिन ट्रेन भी बहुत लेट आई. हम दोनो ट्रेन पर बैठ गए,गनीमत थी कि भीड़ होने के बावजूद हमें बैठने के लिए सीट मिल गई। पैसेंजर ट्रेन होने की वजह से ट्रेन काफी देर बाद छूटी, एक तो लेट भी बहुत हुई थी फिर जैसे तैसे ट्रेन बैलगाड़ी की रफ्तार से आगे बढ़ने लगी। ट्रेन छोटे-छोटे स्टेशनों में भी देर तक खड़ी हो रही थी जिसे देखकर बड़ी कोफ्त महसूस हो रही थी। कई लोग तो ट्रेन की इस लेटलतीफी का भी मजा ले रहे थे। लोग गाड़ी रूकने के साथ ही स्टेशनों में लगे नलों में चले जाते और आराम से गुड़ाखू करते। उन्हें गाड़ी छूटने की शायद कोई चिंता ही नहीं थी ,क्योंकि उन्हें  मालूम था की जल्दी ट्रेन छूटने वाली नहीं है। कुल मिलाकर ट्रेन बड़ी सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही थी अभी तक ट्रेन केवल दगौरी स्टेशन ही पहुंच पाई थी जबकि ट्रेन को बिलासपुर से निकले दो घंटे हो चुके थे। हम दोनों बातें करने लगे और पछताने लगे कि इस ट्रेन में नहीं आना था । खैर आखिरकार हमारी ट्रेन धीरे-धीरे ही सही भिलाई पावर हाउस स्टेशन पर आ ही लगी। जब ट्रेन पहुंची उसे समय रात के करीब दस बज रहे थे । 

ट्रेन से उतरकर हम दोनों जल्दी से सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर निकल पड़े । स्टेशन के बाहर आकर हम लोग रात गुजारने के लिए कई होटलों (लॉज) में गए पर सभी जगह टका सा जवाब मिला कि होटल रात आठ बजे बंद हो जाता है, कमरा अब नहीं मिल सकता। हम लोगों ने उन्हें लाख समझाया कि हम बाहर से आए हैं, हमें इंटरव्यू देना है, हमारी ट्रेन लेट हो गई इस कारण हमें देर हुई। पर उन लोगों हमारी कुछ भी नहीं सुनी। अब तक भूख भी बडे‌ जोरों से दोनों को लग रही थी सोचा चलो खाना ही खा लें। पर हाय री किस्मत, खाना भी नसीब नहीं हुआ। हुआ यूँ कि तब तक रात के ग्यारह बज चुके थे। सभी भोजनालय या तो बंद हो चुके थे या फिर जो खुले हुए थे वहां खाना ही नहीं बचा था। भूख से कुलबुलाते हुए हमें मजबूर होकर फिर स्टेशन वापस आना पड़ा।  स्टेशन के टिकट घर के किनारे अपने-अपने टॉवेल निकालकर हम दोनों उसे बिछाकर लेट गए, पर मारे भूख और ऊपर से मच्छरों की भारी भरकम फौज की भिन-भिन से रातभर हम दोनों छटपटाते रहे। हम दोनों सोच रहे थे कितनी जल्दी सुबह हो। आखिर जागते बतियाते ही सारी रात गुजर गई, सुबह होने पर मुंह हाथ धोकर चाय नाश्ते के लिए स्टेशन से बाहर आए। एक होटल में भरपेट नाश्ता करने के बाद फिर हम ठहरने के लिए एक अच्छा सा लॉज खोजने निकले। पावर हाउस स्टेशन के बाहर ही अंबेडकर चौक है।

वहीं किनारे पर एक लॉज है (माफ कीजिएगा लॉज का नाम नहीं बता सकूंगा।) वहां जाकर हम लोग ठहर गए, लॉज दो मंजिला था, हमें ऊपर का कमरा दिया गया था। हम लोग अपने कमरे में पहुंचकर नहाने धोने  में लग गए। लॉज के सामने नीचे किराने दुकान से हमने पहले ही नहाने का साबुन और टुथपेस्ट खरीद लिया था। नहाने के बाद हमें बहुत राहत मिली। फिर हम दोनों तैयार होकर कमरे में ताला लगा कर बाहर निकल गए। अब तक सुबह के साढे़ नौ बज चुके थे। रजनीश का इंटरव्यू कल होना था, इसलिए इसकी जानकारी लेने हम लोग निकल गए। जानकारी में हमें पता चला कि साक्षात्कार दोपहर की होगी और सुबह आठ बजे से शारीरिक परीक्षण होगा। दोनों स्थान अलग-अलग जगह पर थे।आवश्यक जानकारी मिल जाने के बाद हम एक भोजनालय में खाना खाने बैठ गए। इस समय दोपहर के बाहर बजने वाले थे।

हम दोनों ने तब विचार किया कि दोपहर काटने के लिए पिक्चर देखा जाए, सो बसंत टाकिज में ऋषि कपूर की अनमोल पिक्चर चल रही थी वहीं टिकट कटाकर बैठ गए। पिक्चर शुरु हुए अभी आधा घण्टा ही हुआ होगा कि धड़ाधड टाकिज के सभी दरवाजों से कई पुलिस वाले हॉल में घुस आए। उनके साथ कुछ कुत्ते भी थे। मैं और रजनीश बॉलकनी क्लास में बैठे थे, पुलिस वालों ने हॉल के सभी दरवाजे बंद कर दिए,चलती हुई पिक्चर भी बंद करा दिया । ये सब देखकर सभी दर्शको सहित हम दोनो भी उलझन में पड़ गए कि ये क्या हो रहा है। हम चुपचाप देखने लगे। पुलिस वालो की संख्या करीब चालीस-पचास थी जिसमें एस पी.,डी एस पी, इंस्पेक्टर, सिपाही शामिल थे। वे लोग बारी-बारी से कुर्सियों की लाईनों में दो कुत्तों के साथ जाकर सभी दर्शकों की पहचान कर रहे थे। प्रशिक्षित कुत्ते भी भौंक  गुर्राकर बारी बारी से बैठे दर्शकों को सूंघ सूंघ कर आगे बढ़ रहे थे। पुलिस दल के साथ एक अन्य व्यक्ति भी था, वह शायद पुलिस को जिसकी तलाश थी उसकी पहचान के लिए लाया गया था। हॉल में बैठे सभी दर्शकों की सिट्टी-पिट्टी गुम थी, कुछ ऐसा ही हल हम दोनों का भी था।

इस बीच बालकनी क्लास में भी एक कुत्ते सहित कुछ पुलिस वाले अपना काम कर रहे थे। धीरे-धीरे वे हमारी वाली लाइन में पहुंच गए। जब वे लोग हमारी ही ओर आने लगे तो हृदय की धड़कन तेज हो गई, आखिर कुत्ता सूंघते हुए मेरे तक आ पहुंचा.उसने मुझे सुंघा और आगे बढ़ गया। इस दौरान वह व्यक्ति भी (पहचानकर्ता) साथ चल रहा था। अब कुत्ता मेरे बगल में रजनीश को सूंघ रहा था,यह क्या,वह तो उसी के पास रुक गया और गुर्राने लगा। अब तो वह व्यक्ति भी रजनीश को अजीब सी नजरों में घूरने लगा, पुलिस वालों ने यह देखकर उससे कुछ बातें की, उसने उन्हें न जाने क्या कहा कि सभी पुलिस वाले धड़धड़ाते हुए हमारे पास ही इक‌ट्ठा हो गए। सभी रजनीश से सवालों की झड़ी लगाने लगे, वह  अकस्मात घटे इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से बदहवास सा हो उठा। इसी कारण वह उलटे सीधे उत्तर देने लगा।

मैंने सोचा ऐसे में तो हम फिजूल ही फंस जाएगे, तब मैंने उठकर अपना परिचय पत्र (मैं उन दिनों समाचार पत्र में उप संपादक था) निकालकर पुलिस वालो को बताया कि रजनीश मेरा दोस्त है, यहाँ हम इसके इंटरव्यू के सिलसिले में आए हैं। मैं उन्हें समझा ही रहा था तभी उनके साथ के व्यक्ति ने पुलिस वालों से फिर कुछ कहा, तब वे लोग हमें हॉल छोडकर न जाने की चेतावनी देकर आगे बढ़ गए। इस बारे में पूछताछ करने पर ज्ञात हुआ कि कहीं डाका पड़ा था जहां डकैतों ने दो लोगों की हत्या भी कर दी थी, उन्हीं डकैतों की टॉकिज में होने की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा छापा मारा गया था। खैर पिक्चर फिर शुरु हुई पर हम दोनों का मन उसमें बिलकुल भी नहीं लग रहा था। पिक्चर छूटने पर जब हम भीड़ के साथ हॉल के बाहर निकल रहे थे तो हमने देखा कि बडे़ से गेट का एक पल्ला ही खोलकर दर्शको को बाहर जाने दिया जा रहा था, गेट के बाहर वही – पुलिस वाले गेट को घेरे खड़े प्रत्येक निकलने वाले दर्शक को ध्यान से देखते जा रहे थे। यह देख कर रजनीश की जान सूख गई,उसने मुझसे फुसफुसाते कहा , अंदर तो बच गया भाई कहीं फिर यहां पर न धर लिया जाऊं। मैंने उसे ढाढस बंधाया, तब तक गेट आ गया था गेट से हम निकल रहे थे तो पुलिस के साथ का व्यक्ति फिर रजनीश को ध्यान से देखने लगा। डरते डरते हम दोनों धीरे-धीरे आगे निकल आ गए थे, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी नजरें हमारा ही पीछा कर रही था।

मैंने तुरंत ही रजनीश से कहा चल जल्दी कदम बढ़ा, आटो कर और यहां से तुरंत निकल जाते हैं, ऐसा न हो वे लोग फिर आ धमकें । सड़क में आकर हमने तुरंत ही आटो किया और होटल पहुंच गए। कमरे में पहुंचकर ही जान में जान आई। टॉकिज की इस अप्रत्याशित डराने वाली घटना पर चर्चा करते हुए ही हम दोनों फ्रेश हुए और फिर तैयार होकर बाहर निकले। उस समय शाम के सात बजने वाले थे। हम लोग थोड़ा घूम फिर कर खाना खाने के बाद जल्दी ही कमरे में पहुंच गए। कुछ तो पुलिस का डर भी हमें था कि फिर वे हमें कहीं मिल न जाएं। अत: साढ़े आठ बजे रात को ही हम होटल पहुंच गए। होटल के मैनेजर का केबिन नीचे घुसने पर ही पड़ता था. उसके बगल से ऊपर जाने की सीढ़ी थी. होटल में घुसते ही अजीब सा एहसास होने लगा था, कुछ डर लगने वाला माहौल महसूस किया था हमने। देखा मैनेजर के केबिन में ताला पड़ा हुआ था उसके बाहर केवल एक कंडिल जल रहा था जो अंधेरे को दूर करने में अपर्याप्त था। फिर मात्र एक चौकीदार जो जमीन पर बिस्तर डालकर नींद में सोया हुआ था। पूरे लाज में विरानी छाई थी। हमने चौकीदार से पूछने की कोशिश की पर वह उठा ही नहीं।

अजीब सी डरावनी खामोशी व्याप्त थी, इस बीच हवाएं भी तेज चलने लगी। हवा की सांय सांय की  तेज आवाज कुछ भयभीत करने लगी थी। इस बीच हम दोनों ने लाज के उपर सभी जगह देखा पर किसी भी आदमी की सूरत नही दिखी। लगा पूरे लॉज में केवल हम दोनों ही थे, वह भी नीम अंधेरे में।  हम दोनों बातें करने लगे कि कैसा लाज है यार, न मैनेजर का पता है और न ही कोई कस्टमर ही दिख रहा है। हमे  केवल सोता हुआ चौकीदार ही नजर आया था । अब तक तो हम लोगों को बड़ा ही अजीब ही लगने लगा । वहां के वीरान और अंधेरे के बीच के फैले रहस्यमयी वातावरण से अब हम भयभीत होने लगे थे। आसमान में बादलों ने भी पानी बरसाने की पूरी तैयारी कर ली थी, सो रह रहकर बिजली भी कड़क रही थी। इतने में ही पानी धीरे-धीरे बरसना शुरु हो गया। होटल में किसी का न मिलना, और वहां के रहस्यमयी माहौल ऊपर से तेज हवा के साथ बिजली कड़कने और पानी गिरने की आवाज से हम लोग बहुत डर चुके थे। मंजर बहुत डरावना हो चुका था किसी भूतहे हवेली की तरह। तब हम दोनों सीधे अपने कमरे में पहुंचकर विस्तर में घुस गये। थके हुए होने के कारण थोड़ी ही देर में हमें नींद आ गई। लगभग अर्धरात्रि एक बजे के आसपास अचानक  मेरी नींद किसी आवाज से खुल गई, मैंने उनींदे उनींदे ही आवाज की ओर ध्यान दिया कि किस आवाज से मेरी नीट टूटी है।

तभी अचानक चूड़ियों के खनकने की आवाज के साथ औरत के खिलखिलाने की आवाज कानों में पड़ी। एक तो पहले ही मैं डरा हुआ था,उस आवाज ने और भी डरा दिया। मुझे लगा कि ये आवाज जो अपने ही कमरे के बाथरूम से आ रही है। यह जानकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैंने सोचा कि कमरा तो अंदर से बंद किया हुआ है, फिर कैसे कोई महिला बाथरूम में अंदर  घुस गई। मैंने धीरे से रजनीश को देखा तो वह बेसुध सोया हुआ था,लेकिन उसे देखकर मुझे कुछ हिम्मत मिली, और फिर मैंने डरते-डरते बाथरूम का दरवाजा खोलकर देखने का निश्चय किया,  उठकर मैंने धीरे से बाथरूम का दरवाजा खोला, यह क्या…?अंदर तो बाथरूम पूरी तरह से खाली था, फिर महिला की आवाज किधर से आ रही थी । यह जानने के लिए मैने कमरे के बाहर देखने का निश्चय किया, लेकिन बाहर भी कोई नही दिखा तब आगे बढकर देखने लगा। गैलरी सूनसान पडी थी, बगल के दरवाजे पर देखा तो ताला पड़ा था। फिर मैंने दूसरी तरफ के कमरे को देखा वहां भी ताला लगा था। आसपास जितने भी कमरे थे सभी के दरवाजों को मैंने देख लिया। सभी में ताला लगा हुआ था।

मुझे काफी आश्चर्य मिश्रित भय लगने लगा। अब तक तो मैं काफी भयभीत महसूस करने लग गया था । ये जानकर की भी, के केवल हम दोनों ही पूरे लॉज में अकेले थे । मैं मारे डर के ठंड के मौसम में भी पसीने पसीने हो कर घबराने लग गया था…। तभी अचानक एक औरत के हंसने की आवाज फिर सुनाई दी। तब मारे डर के मैंने जल्दी ही कमरे का दरवाजा बंद किया और रजनीश के बगल में आकर सर तक रजाई ओढ़ कर सो गया। उस रात शायद रजनीश मेरे साथ नहीं होता तो मैं तो डर के मारे पूरी तरह बदहवास ही हो जाता। खैर सोने के बाद पता नहीं कब मेरी आंख लग गई। सुबह जब हम उठे तो हम दोनों का ही एक आश्चर्य इंतजार कर रहा था। हुआ यह कि जब हम दोनों ने आपस में एक दूसरे को यह बताया की करीब आधी रात को जो जो मेरे साथ घटित हुआ था ठीक वही रजनीश के साथ भी घटा था।

यह सुनकर हम दोनों आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह देखने लगे । मैंने आश्चर्य से   रजनीश से पूछा जब तू उठा था भाई, तो मैं क्या कर रहा था। उसने बताया तू तो पूरी तरह नींद में था।  यानी हम दोनों के साथ आधी रात को ठीक वैसी ही घटना घटी थी। फिर तो हम दोनों की आंखों ही आंखों में इशारा हुआ ,और कुल मिलाकर हम दोनों ने  निश्चय किया कि जितनी जल्दी हो इस लाज को छोड देना ही अच्छा है। सो जल्दी-जल्दी हम लोग नहाए धोये और तैयार होकर अपना सामान समेटकर नीचे आ गए। वैसे भी आठ बजे से रजनीश का शारीरिक परीक्षण शुरू होने वाला था। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन अब हमारे सामने होने वाला था।

जब हम नीचे जाकर लॉज का बिल चुका कर बाहर आए फिर न जाने क्यों, जाते-जाते सामने की किराने दुकान वाले से हमने इस बारे में पता करने की सोचकर उससे पूछा कि भाई साहब इस लाज में हमारे अलावा एक भी कस्टमर नहीं दिखा क्या बात है….? हमारी बात सुनकर उसने जो जवाब दिया उसे सुनकर तो हम पूरी तरह सन्न रह गए। उसने बताया कि इस होटल के ऊपरी मंजिल के एक कमरे में जो ठीक हमारे कमरे के बगल में ही था । उसमें चार महीने पहले एक औरत ने आत्महत्या कर लिया था, और उस महिला की आत्मा होटल में रात को भटकती रहती है। बीती रात आप लोगों को कुछ दिखा क्या…? यह सुनकर हम दोनों का मुंह खुला का खुला रह गया।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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