गहलोत के इस्तीफे का झटका, बड़े संकट का संकेत


ललित गर्ग

दिल्ली में विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी को एक बड़ा झटका लगा। दिल्ली सरकार के प्रमुख मंत्री कैलाश गहलोत ने जिस तरह से चुनावी वादों को पूरा न करने जैसे ऐसे अनेक मुद्दों का जिक्र करते हुए अपने पद एवं प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है जो अरविंद केजरीवाल की छवि पर सीधी चोट करने वाले हैं। दिल्ली के विकास की बजाय ‘आप’ सरकार का सारा समय केंद्र सरकार से झगड़ा करने में बीतने की बात कहकर गहलोत ने आम आदमी पार्टी की एक बड़ी कमजोरी को उजागर किया है, जो ‘आप’ के लिये एक बड़ा राजनीतिक संकट का संकेत है। अरविंद केजरीवाल ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू करके इस पार्टी का गठन किया, लेकिन खुद एवं उसके अन्य बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की यात्रा कर आये, अनेक मतभेदों, विवादों एवं केजरीवाल के अहंकार, गलत नीतियों के चलते पार्टी के कई दिग्गज नेता पार्टी से दूर होते चले गए, जिनमें किरण बेदी, कवि कुमार विश्वास, आशुतोष, आशीष खेतान, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, शाजिया इल्मी और कपिल मिश्रा और अब कैलाश गहलोत जैसे नाम शामिल हैं। लगता है अब आम की झाडू ही नहीं, बल्कि आप के राजनीतिक मूल्य भी तार-तार हो गये हैं। आम आदमी पार्टी के बढ़ते संकट एवं गिरते राजनीतिक मूल्यों के कारण उसकी चुनौतियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है।


कैलाश गहलोत ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल और दिल्ली की सीएम आतिशी को इस्तीफा भेजा है। दिल्ली की सीएम आतिशी ने गहलोत का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। गहलोत ने अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए एक लम्बा पत्र केजरीवाल को भेजा है। उन्होंने इस्तीफे में यमुना की सफाई और शीशमहल निर्माण का मुद्दा उठाया है। गहलोत ने पत्र में आरोप लगाते हुए लिखा है कि जिस ईमानदार राजनीति के चलते वह आम आदमी पार्टी में आए थे, वैसा अब नहीं हो रहा है। उन्होंने पार्टी के संयोजक व पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के सरकारी आवास को शीशमहल करार देते हुए कई आरोप भी लगाए हैं। ऐतिहासिक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी इस पार्टी का यह हश्र एवं दूरगति राजनीतिक महत्वाकांक्षा का परिणाम है। आम आदमी पार्टी खुद को ईमानदारी के उच्चतम मानकों पर रखने का दावा भले ही करती रही हो, लेकिन उसने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए राजनीतिक एवं नैतिक मूल्यों को ध्वस्त ही किया है। आप का उदय एक ताज़ी हवा का झोंका था लेकिन आज वह दूषित राजनीति का पर्याय बन गया है।  


दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कैलाश गहलोत का इस्तीफा आम आदमी पार्टी के लिये उल्टी गिनती का द्योतक है, यह राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाला है, क्योंकि गहलोत ने एक तो यह कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार यमुना को साफ नहीं कर सकी और स्थिति यह है कि वह पहले से अधिक गंदी हो गई है। इसके अलावा उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि ‘आप’ सरकार का सारा समय केंद्र सरकार से झगड़ा करने में बीतता है। भले ही ‘आप’ कैलाश गहलोत की इन बातों को यह कहकर खारिज कर सकती है कि वह भाजपा की भाषा बोल रहे हैं और यह भी कहा जा सकता है कि गहलोत पर ईडी-सीबीआइ आदि का दबाव था। निश्चित ही गहलोत के खिलाफ ईडी और इनकम टैक्स के कई मामले चल रहे थे। कैलाश गहलोत पर ईडी और इनकम टैक्स की कई रेड भी हो चुकी थी। वह जांच का सामना कर रहे थे। आप के इन बयानों में कुछ सच्चाई भी हो सकती है कि उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। लेकिन बड़ा तथ्य है कि ‘आप’ दिल्ली की जनता के साथ न्याय नहीं कर सकी है, वह केंद्र सरकार से बात-बात में झगड़ा मोल लेने के लिए जानी जाती है। इससे इन्कार नहीं कि केंद्र सरकार भी आम आदमी पार्टी से उलझती हुई दिखती है, लेकिन दिल्ली सरकार की छवि ऐसी बन गई है कि वह केंद्र सरकार पर दोषारोपण करने का मौका ढूंढ़ती रहती है। दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच हर मुद्दे पर खींचतान जारी रहने से सबसे अधिक नुकसान दिल्ली की जनता को हुआ है। दिल्ली की कई समस्याएं नहीं सुलझ पाने, दिल्ली का अपेक्षित विकास न हो पाने एवं अपने चुनावी वादों को पूरा न करने के कारणों के लिये ‘आप’ नेताओं ने हमेशा ही केन्द्र सरकार एवं भाजपा को दोषी ठहराया है। गहलोत ने कहा कि पार्टी से जुड़ी उनकी यात्रा का उद्देश्य दिल्ली के लोगों की सेवा करना था, लेकिन अब उन्होंने महसूस किया कि पार्टी सिर्फ अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए लड़ रही है, जिससे दिल्लीवासियों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करने में मुश्किलें आ रही हैं। ऐसे में उनके सामने पार्टी से अलग होने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।


‘आप’ टकराव की राजनीति में व्यस्त रही, अच्छे गवर्नेंस और बेहतर राजनीति का दामन उसके हाथ से लगातार छूटता रहा। दिल्ली में पार्टी ने असंख्य मुद्दे उठाये लेकिन वह इन सबको आखरी मंज़िल तक नहीं पहुंचा पायी। यह भविष्य ही बताएगा कि कैलाश गहलोत का त्यागपत्र आम आदमी पार्टी को राजनीतिक रूप से महंगा पड़ेगा या नहीं, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि उन्होंने अपने इस्तीफे में जिस तरह ‘आप’ की गलत नीति एवं केजरीवाल की अति-महत्वाकांक्षाओं का जिक्र किया, वह अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ पूरी आम आदमी पार्टी की साख को करारा आघात देने वाला है। यह एक तथ्य है कि आम आदमी पार्टी आज तक इस प्रश्न का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकी कि आखिर अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री रहते अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर 45 करोड़ रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी? कैलाश गहलोत ने अपने पत्र में यह भी आरोप लगाया है कि ‘आप’ अपनी रीति-नीति से भटक गई है। केजरीवाल और उनके सहयोगी इससे सहमत नहीं होने वाले, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘आप’ की भ्रष्टाचार विरोधी राजनीतिक दल की छवि का बहुत अधिक क्षरण हुआ है। ‘आप’ ने नई तरह की एवं मूल्यों की राजनीति करने के जो तमाम दावे किए थे, वे दावे यदि खोखले नजर आने लगे हैं तो इसके लिए अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी अन्य किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। एक बड़ा सवाल है कि ‘आप’ की इस दुर्दशा के चलते क्या वह दिल्ली पर अपनी मजबूत पकड़ को क्या कायम रख पायेगी? क्या दिल्ली में भाजपा या अन्य दलों के लिये अब सत्ता तक पहुंचने की संभावनाएं बढ़ गयी है?


आप एवं उसकी सरकार के लिये अभी भी देर नहीं हुई है, ज़रूरत है कि वह जन मुद्दों के बीच प्राथमिकता तय करे। अनावश्यक टकराव से बचते हुए अपने एजेंडे को अमलीजामा पहनाये। जहां सत्ता में है, वहां अच्छा शासन दें और जहां विपक्ष में है, वहां ज़्यादा रचनाशील और प्रतिरोधात्मक ताक़त बने। एक बड़ा मुद्दा है कि वह नेतृत्व और सांगठनिक संरचना को लोकतांत्रिक तरीके से मजबूत बनाये। अभी तक पूरी पार्टी अरविन्द केजरीवाल-केंद्रित है, वह पार्टी भले बन गई हो पर उसकी सांगठनिक संरचना एक ऐसे एनजीओ जैसी है, जिसका एक सर्वशक्तिमान निदेशक है और पूरा संगठन उसके निर्देश और रहमोकरम पर चलता है। यही कारण है कि एक से बढ़कर एक कद्दावर के आप नेता पार्टी छोड़ते रहे हैं। अगर ‘आप’ को राजधानी दिल्ली के दायरे में या इस दायरे के बाहर अपनी सुसंगत राजनीति से लोगों को लंबे समय तक प्रभावित करना है तो कथनी और करनी में समानता दिखानी होगी। आप को अपना दोगलापन दूर करना होगा। ‘आप’ के जीवन में सत्य खोजने पर भी नहीं मिलता। दोहरे मापदण्ड अपनाने के कारण ‘आप’ की हर नीति, हर निर्णय एवं हर कथन समाधानों से ज्यादा समस्याएं पैदा करता रहा है। जिन्दा कौमें पांच वर्ष तक इन्तजार नहीं करती, दिल्ली की जनता ने कई गुणा इंतजार कर लिया है। यह विरोधाभास नहीं, दुर्भाग्य है या सहिष्णुता कहें? जिसकी भी एक सीमा होती है। जो पानी की तरह गर्म होती-होती 50 डिग्री सेल्सियस पर भाप की शक्ति बन हाती है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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