‘बटेंगे तो कटेंगे’ इस सियासी नारे ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के बाद महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनावी माहौल में भी खूब सुर्खियां बटोरी हैं। साथ में पीएम मोदी का समर्थक नारा ‘एक हैं तो सेफ हैं’ ने भी भारतीय राजनीति में अपनी जगह पक्की कर ली है, जिसे राहुल गांधी अपने चिरपरिचित अंदाज में बीजेपी की उपलब्धि बनाने पर तुले हुए हैं। एक बात तो साफ़ है कि यह दोनों ही नारे सिर्फ चुनावों तक ही सीमित नहीं रहने वाले हैं। इनका कालजयी बनना भी निश्चित है। सालों साल, चुनाव हों या न हो, नेता हो या आम इंसान, जुबान पर यह नारे जरूर रहेंगे, और तब इनका शोर अधिक सुनने को मिलेगा जब बात जाति, धर्म की राजनीति की होगी। क्या हम कभी एक हो पाएंगे? क्या हम कभी सिर्फ एक भारतीय के रूप में पहचाने जाएंगे? क्या हम ठाकुर, ब्राह्मण, अजा, अजजा या हिन्दू-मुसलमान के फेर से बाहर निकल पाएंगे? विश्वगुरु बनने का जो सियासी ख्याब हमें दिखाया गया है, क्या वह इसी बंटवारे के रास्ते पर चलकर पूरा होगा? ऐसे कई अन्य सवाल हैं जिनका जवाब हमारे अंदरूनी बंटवारे की मजबूत जड़ों के कारण शायद कभी न मिले।
यह ऐसा समय है जब भारत दुनिया की बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर है। आईएमएफ का अनुमान है कि 2025 तक भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। वहीं 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। वैश्विक रूप से निखरती भारत की छवि, बढ़ता निवेश, और यहाँ की युवा शक्ति के बूते आज एक देश के रूप में हमने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है, और जापान, जर्मनी या अमेरिका जैसे देशों की बराबरी में आ कर खड़े हो गए हैं। लेकिन अफ़सोस कि एक भारतीय के रूप में हम एक नहीं हो पाए हैं।
एक भारतीय के रूप में एकता न होने का दोष सिर्फ राजनीति को भी नहीं दिया जा सकता, क्योंकि राजनीति तो लोगों को उन मामलों में भाग लेने से रोकने के लिए कहती है जो उनसे सीधे तौर पर सबंध रखते हैं। एक भारतीय के रूप में हमारी अखंडता हमारे अपने विवेक और देश व देश के नागरिकों के प्रति संवेदनशीलता पर निर्भर करती है। राजनीति तो अपना योगदान पहले हिन्दू-मुस्लिम में देगी, फिर हिन्दू में भी जातियां बांटकर, ऊंच-नीच कर के देती रहेगी। हालांकि यह बात सिर्फ उन आम लोगों को ही समझने की जरुरत है जो राजनीतिक नारों के आवेश में सोचने-समझने की शक्ति खो बैठते हैं।