राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने आज 1948 में संयुक्त राष्ट्र सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा (यूडीएचआर) की स्मृति में मानवाधिकार दिवस मनाने के लिए नई दिल्ली के विज्ञान भवन में एक समारोह आयोजित किया। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मानवाधिकार दिवस का उत्सव यूडीएचआर में निहित आदर्शों पर विचार करने और एक ऐसे विश्व के निर्माण में योगदान देने के हमारे सामूहिक संकल्प की पुष्टि करने का अवसर प्रदान करता है जहां न्याय और मानवीय गरिमा समाज का आधार हैं।
उन्होंने कहा कि भारत आज एक शानदार उदाहरण के रूप में खड़ा है, जहां सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन, वंचितों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराकर भूख मिटाने और युवाओं को अपने सपने साकार करने के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए बड़ी पहल की जा रही है। सरकार सभी के लिए आवास, स्वच्छ पेयजल, बेहतर स्वच्छता, बिजली, रसोई गैस और वित्तीय सेवाओं से लेकर स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा तक कई सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की गारंटी भी देती है। यह बात महत्वपूर्ण है कि बुनियादी आवश्यकताओं के प्रावधान को एक अधिकार के रूप में देखा जाता है।
उन्होंने मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने, जागरूकता बढ़ाने और हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए नीतिगत बदलावों की सिफारिश करने में नागरिक समाज, मानवाधिकार रक्षकों, विशेष प्रतिवेदकों और विशेष निगरानीकर्ताओं के साथ-साथ एनएचआरसी और एसएचआरसी की सराहना की।
भविष्य में उभरती चुनौतियों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि साइबर अपराध और जलवायु परिवर्तन मानवाधिकारों के लिए नए खतरे हैं। डिजिटल युग परिवर्तनकारी होने के साथ-साथ अपने साथ साइबरबुलिंग, डीपफेक, निजता संबंधी चिंताएं और गलत सूचना के प्रसार जैसे जटिल मुद्दे भी लेकर आया है। ये चुनौतियां एक सुरक्षित, संरक्षित और न्यायसंगत डिजिटल वातावरण को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर देती हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों के साथ-साथ उनके सम्मान की रक्षा करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अब हमारे दैनिक जीवन में प्रवेश कर चुका है, जो कई समस्याओं का समाधान कर रहा है और कई नई समस्याएं भी पैदा कर रहा है। मानवाधिकारों पर अब तक की चर्चा मानव एजेंसी पर केंद्रित रही है, यानी उल्लंघनकर्ता को एक इंसान माना जाता है, जिसमें करुणा और अपराधबोध जैसी कई मानवीय भावनाएं होती हैं। हालांकि, एआई के साथ, अपराधी एक गैर-मानव लेकिन बुद्धिमान एजेंट हो सकता है। इस पर विचार करने की जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के संदर्भ में श्रीमती मुर्मु ने कहा कि यह मुद्दा भी हमें वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों की सोच की समीक्षा करने के लिए मजबूर करता है। एक अलग जगह और एक अलग युग के प्रदूषक दूसरी जगह और दूसरे काल के लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में भारत ने जलवायु के अनुकूल कार्रवाई में सही ढंग से नेतृत्व संभाला है। सरकार की पहल, जैसे कि 2022 ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, ग्रीन क्रेडिट पहल और पर्यावरण के लिए जीवनशैली या ‘लाइफ’, अभियान, भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और हरित धरती के निर्माण के लिए भारत की प्रतिबद्धता का स्पष्ट प्रदर्शन हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में 2022 तक बुजुर्गों की आबादी लगभग 150 मिलियन हो जाएगी तथा अनुमान है कि 2050 तक यह 350 मिलियन तक पहुंच जाएगी। यह जरूरी है कि हम ऐसी नीतियां बनाएं तथा ऐसे उपाय करें जिनसे उनकी गरिमा बनी रहे तथा उनका कल्याण सुनिश्चित हो तथा वे हमारे समाज के मूल्यवान सदस्य के रूप में पूर्ण जीवन जीने के लिए सशक्त बनें।
श्रीमती मुर्मु ने कहा कि हाल के वर्षों में खासकर हमारे बच्चों और युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य भी एक गंभीर मुद्दा बन गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि एनएचआरसी ने इस मुद्दे की गंभीरता को पहचाना है। उन्होंने सभी हितधारकों से हमारे बच्चों और युवाओं को प्रभावित करने वाले तनाव को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय शुरू करने की अपील की। उन्होंने उद्योग और व्यापार जगत के दिग्गजों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि बढ़ती वृहद अर्थव्यवस्था व्यापक तौर पर श्रमिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले। जैसे-जैसे हम नए आर्थिक मॉडल अपनाते हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से कमजोर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की भलाई हमारी प्राथमिकता बनी रहे। हम सभी को मानसिक बीमारी से जुड़े किसी भी कलंक को दूर करने, जागरूकता पैदा करने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने की दिशा में काम करना चाहिए।
इससे पहले, एनएचआरसी, भारत की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती विजया भारती सयानी ने कहा कि मानवाधिकार दिवस हर व्यक्ति के निहित मौलिक अधिकारों की एक शक्तिशाली याद दिलाता है, चाहे उनकी पहचान या पृष्ठभूमि कुछ भी हो। वैश्विक स्तर पर, हम संघर्षों में वृद्धि देख रहे हैं, जिससे लाखों लोग विस्थापित हो रहे हैं और कमजोर और कम आय वाले समुदायों को प्रभावित करने वाले गंभीर मानवीय संकट पैदा हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि तेजी से हो रहे बदलाव और जटिल सामाजिक गतिशीलता के इस दौर में, भारत में एनएचआरसी की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। हम महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलों के माध्यम से हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों का पक्ष रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं, एक ऐसा समाज बनाने का प्रयास कर रहे हैं जहां हर कोई भय या भेदभाव से मुक्त होकर अपनी मौलिक स्वतंत्रता का आनंद ले सके।
इस अवसर पर, संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री एंटोनियो गुटेरेस ने अपने संदेश में कहा कि इस वर्ष का विषय हमें याद दिलाता है कि फिलहाल मानवाधिकारों का उद्देश्य भविष्य का निर्माण करना है। सभी मानवाधिकार अविभाज्य हैं। चाहे आर्थिक, सामाजिक, नागरिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक, जब एक अधिकार का हनन होता है, तो सभी अधिकार कमजोर हो जाते हैं। हमें हमेशा सभी अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए। उनका संदेश भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर श्री शोम्बी शार्प ने पढ़कर सुनाया। भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर ने मानवाधिकारों के हिमायती के रूप में भारत की सराहना की और सहयोग के लिए वैश्विक दक्षिण की ओर इसके प्रयासों की भी सराहना की।
एनएचआरसी, भारत के महासचिव श्री भरत लाल ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि भारतीय संविधान मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के मूल्यों को आत्मसात करता है, और हमारा शासन अंत्योदय यानी अंतिम और सबसे कमजोर व्यक्ति का उत्थान के सिद्धांत द्वारा निर्देशित है। एनएचआरसी, भारत नागरिकों की ओर से और उनके लिए एक विवेक रक्षक की भूमिका निभाता है। हम यह सुनिश्चित करने के अपने संकल्प में दृढ़ हैं कि कोई भी पीछे न छूटे और समाज के सबसे कमजोर वर्गों को दूसरों के समान विशेषाधिकार प्राप्त हों।
उन्होंने मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने की दिशा में आयोग की कुछ हालिया पहलों और गतिविधियों पर प्रकाश डाला। इनमें छोटे और अधिक कमजोर समूहों की दुर्दशा पर ध्यान आकर्षित करने वाली सलाह, मानवाधिकार रक्षकों, व्यापार और मानवाधिकार, स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषयों पर कोर ग्रुप मीटिंग, आश्रय गृहों, जेलों, स्कूलों और अन्य संस्थानों में विशेष प्रतिवेदकों और मॉनिटरों का दौरा, सम्मेलन, खुली चर्चाएं और कमजोर समूहों की जरूरतों की पूर्ति करने के लिए हितधारकों के साथ बैठकें, महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी और वृद्ध व्यक्तियों के अधिकारों पर राष्ट्रीय सम्मेलन, ग्लोबल साउथ के एनएचआरआई और अरुणाचल प्रदेश के एसएचआरसी के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आदि शामिल हैं।
इस अवसर पर एनएचआरसी के तीन प्रकाशन भी जारी किए गए। इनमें हिन्दी और अंग्रेजी पत्रिकाएं शामिल हैं, जिनमें मानवाधिकार संबंधी मुद्दों पर विशेषज्ञों द्वारा विद्वत्तापूर्ण लेख प्रकाशित किए गए हैं, तथा मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एनएचआरसी द्वारा जारी की गई ‘एडवाइजरीज’ नामक पुस्तक भी शामिल है।
समारोह में राज्य मानवाधिकार आयोगों के सदस्य, न्यायपालिका के सदस्य, राजनयिक, एनएचआरसी के वरिष्ठ अधिकारी, विशेष प्रतिवेदक एवं मॉनिटर, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, नागरिक समाज के प्रतिनिधि, मानवाधिकार रक्षक तथा अन्य राष्ट्रीय एवं देश-विदेश के गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।
मानवाधिकार दिवस के महत्व को ध्यान में रखते हुए आयोग ‘मानसिक स्वास्थ्य: कक्षा से कार्यस्थल तक तनाव से निपटना’ विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का भी आयोजन कर रहा है।