डिजिटल होते बच्चों पर बढ़ते खतरे गंभीर चुनौती

डिजिटल होते बच्चों पर बढ़ते खतरे चिन्ता का बड़ा कारण बन रहे हैं। बच्चों के स्क्रीन पर बहुत अधिक समय बिताने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं तो बढ़ ही रही हैं, बच्चे अलगाववादी, हिंसक एवं अस्वस्थ गतिहीन जीवनशैली के अंग बनते जा रहे हैं। छोटी अवस्था में बच्चे अधिक समय ऑनलाइन बिताने के कारण साइबरबुलिंग, ऑनलाइन शिकारियों और अन्य जोखिमों के शिकार भी हो रहे हैं। सोशल मीडिया बच्चों एवं युवाओं के संवाद का जैसे-जैसे अभिन्न माध्यम बन रहा है, वैसे-वैसे तमाम तरह के जोखिम एवं खतरे भी जुड़ते जा रहे हैं, जिनसे बच्चों एवं किशोरों को बचाने के लिये भारत में वर्ष 2023 में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट लाया गया, इस एक्ट के नियमों के तहत नाबालिगों के लिये सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिये माता-पिता या अभिभावकों की सहमति अनिवार्य है। निश्चिय ही यह बच्चों पर बढ़ रहे खतरों से सुरक्षा देने के लिये एक प्रभावी एवं सराहनीय कदम है।

पांच वर्ष से अठारह वर्ष के बच्चों में मोबाइल, इंटरनेट एवं टेक्नोलॉजी एडिक्शन की लत बढ़ रही है, जिनमें स्मार्ट फोन, स्मार्ट वॉच, टैब, लैपटॉप आदि सभी शामिल हैं। यह समस्या केवल भारत की नहीं, बल्कि दुनिया के हर देश की है। ऐसे अनेक ऑनलाइन लत के शिकार रोगी बच्चें अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, जिनमें इस लत के चलते बच्चे बुरी तरह तनावग्रस्त थे। कुछ दोस्त व परिवार से कट गए, कुछ तो ऐसे थे जो मोबाइल न देने पर पेरेंट्स पर हमला तक कर देते थे। बच्चे आज के समय में अपने आप को बहुत जल्दी ही अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ा महसूस करने लगे हैं। अपने ऊपर किसी भी पाबंदी को बुरा समझते हैं, चाहे वह उनके हित में ही क्यों ना हो। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023 में दिल्ली के एक व्यक्ति ने डिजिटल माध्यमों की खामियों का लाभ उठाते हुए सात सौ से अधिक महिलाओं को स्नैपचैट का उपयोग करके ब्लैकमेल करने का प्रयास किया था। इसी तरह इंस्टाग्राम पर धमकाने के बाद ब्रिटेन में एक किशोर की दुखद आत्महत्या ने सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक प्रभावों की घातकता को उजागर किया।

इंटरनेट की यह आभासी दुनिया ना जाने और कितने मासूम व छोटे बच्चों को अपने जाल में फंसाएगी और उनका जीवन तबाह करेगी? बच्चों के इंटरनेट उपयोग पर निगरानी व उन्हें उसके उपयोग की सही दिशा दिखाना बेहद ज़रूरी है। यदि मोबाइल की स्क्रिन और अंगुलियों के बीच सिमटते बच्चों के बचपन को बचाना है, तो एक बार फिर से उन्हें मिट्टी से जुड़े खेल, दिन भर धमा-चौकड़ी मचाने वाले और शरारतों वाली बचपन की ओर ले जाना होगा। ऐसा करने से उन्हें भी खुशी मिलेगी और वे तथाकथित इंटरनेट से जुड़े खतरों से दूर होते चले जाएंगे। इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग की वजह से साइबर अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है। हमारी सरकार एवं सुरक्षा एजेंसियां इन अपराधों से निपटने में विफल साबित हो रही हैं। आज के डिजिटल युग में, माता-पिता के पालन-पोषण का तरीका भी काफी हद तक बदल गया है। टेक्नोलॉजी के बढ़ते चलन और डिजिटल उपकरणों के व्यापक उपयोग के साथ, डिजिटल युग में बच्चों के पालन-पोषण में और ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

आभासी दुनिया के तिलिस्मी संसार के कारण जीवन में आ रहे बदलाव ने कई ज्वलंत एवं चुनौतीपूर्ण मुद्दों को सामने ला दिया है, जिनसे माता-पिता को जूझना पड़ता है, जिससे पालन-पोषण का कार्य और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। ऑनलाइन सुरक्षा से लेकर स्क्रीन टाइम को प्रबंधित करने और लगातार विकसित हो रहे डिजिटल परिदृश्य का हिस्सा बनने तक, माता-पिता के लिए खुद ही यह काफी नया सा है। खुद को जानकारी से लैस करके और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाकर, हम अपने बच्चों को जिम्मेदारी से डिजिटल दुनिया में सावधानीपूर्वक हिस्सा बनने के लिए सशक्त बनाते हुए उनके लिए एक स्वस्थ और संतुलित डिजिटल वातावरण बना सकते हैं। अपने बच्चों को तकनीक का उपयोग ऐसे तरीकों से करने में मदद करें जो रचनात्मकता और सीखने को बढ़ावा दें।

उन्हें शैक्षिक ऐप तलाशने, डिजिटल कला बनाने या कोडिंग जैसे नए कौशल सीखने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उन्हें तकनीक को सिर्फ़ मनोरंजन के बजाय विकास एवं ज्ञान अर्जन के साधन के रूप में देखने में मदद मिल सकती है। तकनीक के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों को जानकर और स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करके, हम बच्चों को उनके स्क्रीन समय के साथ एक स्वस्थ संतुलन बनाने में मदद कर सकते हैं। इस तरह, वे बचपन की खुशियों का अनुभव करते हुए तकनीक के लाभों का आनंद ले सकते हैं, जिसमें बाहर खेलना, दोस्तों के साथ समय बिताना और अपने आस-पास की दुनिया की खोज करना शामिल है। मोबाइल एवं डिजिटल साइट पर कुल निर्भरता बढ़ गई है। लोग अपने फोन एवं इन्टरनेट का इस्तेमाल खाना खाते समय, लिविंग रूम में और यहां तक कि परिवार के साथ बैठकर उपयोग करते हैं। कम से कम अस्सी प्रतिशत स्मार्टफोन उपयोगकर्ता अपने फोन पर तब भी होते हैं, जब वे अपने बच्चों के साथ समय बिता रहे होते हैं और वे अपने बच्चों, परिवेश पर ध्यान नहीं देते हैं और जब उनके बच्चे उनसे कुछ पूछते हैं तो वे चिढ़ जाते हैं।

दरअसल, भारत सरकार के डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के नियम भी सोशल मीडिया कंपनियों को मजबूत उपायों के जरिये माता-पिता की सहमति से जवाबदेह बनाने का प्रयास ही है। जिससे अभिभावकों को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों में भागेदारी में मार्गदर्शन करने का अधिकार मिल सके। इन नियमों को अधिक प्रभावी एवं कारगर बनाने में एआई संचालित आयु सत्यापन, डिजिटल साक्षरता कार्यशालाएं आयोजित करने और इसके साथ ही पारदर्शी शिकायत तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इन उपायों की नियमित निगरानी, हितधारकों की प्रतिक्रिया तथा वैश्विक मानकों के साथ तालमेल से इस ढांचे को प्रभावी बनाया जा सकेगा। निस्संदेह, इन नियमों के अनुपालन से भारत में बच्चों के लिये सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण बनाने के साथ ही वैश्विक प्रयासों में योगदान दिया जा सकता है।

पूरी दुनिया में 58 फीसदी किशोर टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्मों के दैनिक उपयोगकर्ता हैं, जो नुकसानदायक सामग्री के संपर्क में आ सकते हैं। ऐसे वक्त में जब आज डिजिटल दुनिया से जुड़ाव अपरिहार्य है, बच्चों की सुरक्षा और भलाई को प्राथमिकता बनाना न केवल एक जिम्मेदारी है, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता भी है। बच्चों में बढ़ती ऑनलाइन गैमस् की आदत भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है, इसके घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं और लोगों के बीच इसे लेकर चिंता बढ़ रही हैं। इसलिये दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह बच्चों को ऑनलाइन गेम की लत से बचाने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने पर गंभीरता से विचार करें। आज इंटरनेट का दायरा इतना असीमित है कि अगर उसमें सारी सकारात्मक उपयोग की सामग्री उपलब्ध हैं तो बेहद नुकसानदेह, आपराधिक और सोचने-समझने की प्रक्रिया को बाधित करने वाली गतिविधियां भी बहुतायत में मौजूद हैं।

आवश्यक सलाह या निर्देश के अभाव में बच्चे ऑनलाइन गेम या दूसरी इंटरनेट गतिविधियों के तिलिस्मी दुनिया में एक बार जब उलझ जाते हैं तो उससे निकला मुश्किल हो जाता है। इस दिशा में स्थायी परिवर्तन के लिये माता-पिता, शिक्षक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बीच बेहतर तालमेल बनाना वक्त की जरूरत है। एक और रणनीति यह है कि बच्चों को तकनीक का संयम से इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करें और इसे पढ़ने, बाहर खेलने और परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने जैसी अन्य गतिविधियों के साथ संतुलित करें। इस दिशा में निगरानी करने वाली सरकारी एजेंसियों की सजगता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह एक गंभीर चुनौती है और इस चुनौती का गंभीरता के साथ सामना करने की जरूरत है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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