बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद से लगातार भारत विरोधी गतिविधियों एवं कारगुजारियों एवं षडयंत्रों में संलग्न है, लगता है पाकिस्तान के शह पर बांग्लादेश का भारत विरोधी रवैया बढ़ रहा है। बांग्लादेश में लगातार भारत विरोधी मुहिम व अल्पसंख्यक हिन्दुओं एवं हिन्दू धर्मस्थलों पर हिंसक हमलों के बाद अब भारत सीमा पर बाड़बंदी को लेकर बेवजह का विवाद खड़ा किया जा रहा है। जबकि इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच पहले ही सहमति बनने के बाद बड़े हिस्से पर बाड़बंदी हो चुकी है। लेकिन टकराव मोल लेने को तैयार बैठे बांग्लादेश के हुक्मरान विवाद के नये-नये मुद्दे तलाश रहे हैं एवं दोनों देशों की आपसी संबंधों को नेस्तनाबूंद कर रहे हैं। बांग्लादेश भारत की शांति व सद्भाव की कामना एवं सहनशीलता को उसकी कमजोरी न माने, ऐसी भूल बांग्लादेश के लिये बहुत भारी पड़ सकती है। दोनों देशों की शांति, सद्भावना एवं सौहार्द के लिये किसी तीसरे देश के दखल को बढ़ने न दिया जाये।
2015 में शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाका पहुंचे। यहां दोनों नेताओं ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसे लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट कहते हैं। इसी के अन्तर्गत भारत ने अब तक 3271 किलोमीटर सीमा कर बाड़बंदी कर दी है। अब केवल 885 किलोमीटर खुली सीमा की बाड़बंदी बाकी है। भारत बचे इलाके की बाड़बंदी कर रहा है लेकिन बांग्लादेश भारत की कोशिशों में अड़ंगा डाल कर दोनों देशों के बीच हुए समझौते को नकार रहा है। बांग्लादेश के गृह मंत्रालय ने ढाका में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को बुलाकर विरोध व्यक्त किया तो इसके जवाब में भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की और बांग्लादेश के डिप्टी हाईकमिश्नर नूूरूल इस्लाम को तलब कर अपना विरोध जताया। भारत अपनी सीमाओं को अभेद्य बना रहा है। सीमाओं के खुले रहने से बांग्लादेश से लगातार अवैध घुसपैठ, हथियारों की तस्करी, ड्रग स्मगलिंग, नकली नोटों का कारोबार और आतंकवादी गतिविधियां लगातार हो रही हैं।
विशेषतः पाकिस्तान अब अपनी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये बांग्लादेश का उपयोग कर रहा है। दरअसल, बांग्लादेश की युनूस सरकार पाकिस्तान के इशारों पर पुराने मुद्दे उछाल कर विवाद को हवा दे रही है। निश्चित ही पाक से उसकी नजदीकियां लगातार बढ़ी हैं और वहां पाक सेना के अधिकारियों की सक्रियता देखी गई है, ऐसी जटिल होती स्थितियों में भारत को अपनी सुरक्षा चिंताओं के लिये कदम उठाने ही चाहिए एवं अपनी सीमाओं को सुरक्षित बनाना ही चाहिए। पाकिस्तान पंजाब, जम्मू-कश्मीर व नेपाल के रास्ते आतंकवादियों को भारत भेजने की कोशिशें लगातार करता रहा है, अब उसने बांग्लादेश को भी इन गतिविधियों के लिये चुना है एवं बांग्लादेश से लगी भारत की खुली सीमा का दुरुपयोग कर रहा है तो भारत को सतर्क एवं सावधान होना ही चाहिए। पाकिस्तान से लगती सीमा पर तमाम चौकसी के बाद भी सीमा पार से जिस तरह जब-तब आतंकियों की घुसपैठ होती रहती है, वह गंभीर चिंता की बात है।
जब पाकिस्तान से लगती सीमा भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बनी हुई है, तब यह शुभ संकेत नहीं कि बांग्लादेश से लगी सीमा भी भारत के लिए चिंता का कारण बने। बड़ी सच्चाई है कि पाक का जन्म ही भारत विरोधी मानसिकता से हुआ है। ऐसे में अतीत से सबक लेते हुए भारत को अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर किसी तरह की चूक नहीं करनी चाहिए। किसी भी तरह की ढिलाई भारतीय सुरक्षा पर भारी पड़ सकती है। भारत की उदारता को बांग्लादेश हमारी कमजोरी न मान ले, इसलिए उसे बताना जरूरी है कि भारत से टकराव की कीमत उसे भविष्य में चुकानी पड़ सकती है। यह भी कि संबंधों में यह कसैलापन, दौगलापन एवं टकराव लंबे समय तक नहीं चल सकता।
उसकी यह कटुता उसके लिये ही कालांतर घातकएवं विनाशकारी साबित हो सकती है। यह विडंबना ही है कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से क्षेत्र में शांति व सद्भाव की जो उम्मीदें थी, उसमें उन्होंने मुस्लिम कट्टरपंथ को आगे करके निराश ही किया है। उनकी सरकार लगातार विघटनकारी, अड़ियल व बदमिजाजी का रुख अपनाए हुए है, दोनों देशों के संबंध बिगाड़ने में पर्दे के पीछे पाकिस्तान की भूमिका को साफ-साफ देख जा रहा है। जबकि शेख हसीना शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के संबंध सामान्य थे तो भारत बांग्लादेश को विश्वास में लेकर बाड़बंदी कर रहा था लेकिन अब यूनुस सरकार लगातार उकसाने वाली कार्रवाई कर रही है।
उसने पाकिस्तानियों का बांग्लादेश में प्रवेश आसान कर दिया है तो पाक के बांग्लादेश को भारत विरोधी प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसी के चलते बांग्लादेश की भारत विरोधी बयानबाजी और कारगुजारी से दोनों देशों के संबंधों में जबरदस्त कड़वाहट आ चुकी है। बावजूद इसके गत दिसम्बर में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अपनी ढाका यात्रा के दौरान बांग्लादेश को आश्वस्त किया था कि भारत उसका दोस्त बना हुआ है और व्यापार, ऊर्जा, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी के मामलों में रिश्ते पहले की तरह बरकरार रहेंगे। उस समय ऐसा लगा था कि दोनों पक्षों ने सीमा पर स्थिति को शांत कर लिया है।
यूनुस सरकार ने भारत विरोधी तत्वों को न केवल हवा दी है बल्कि उनको उग्र कर दिया है। जेल में बंद कई भारत विरोधी तत्वों को बेल दे दी गयी है, ये ही तत्व भारत में अस्थिरता फैलाने की साजिश रच रहे हैं। लिहाजा भारत के लिये बॉर्डर पर घेराबंदी अत्यावश्यक हो गयी है। राजनीतिक आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह के चलते यूनुस सरकार शेख हसीना के पिता की विरासत को निपटाने एवं धुंधलाने की कोशिशों में लगी हुई है। कट्टरपंथी तत्व जनाक्रोश के चलते अपनी सुविधा का मुहावरा गड़ने का प्रयास कर रहे हैं। भारत में पहले से ही लाखों बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं लेकिन ढाका द्वारा आतंकवादियों और दोषी ठहराए गए इस्लामी कट्टरपंथियों की रिहाई के बाद भारत द्वारा बॉर्डर पर कंटीले तारों को लगाने की कोशिश का बांग्लादेश सरकार द्वारा कड़ा विरोध दर्शा रहा है कि पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी भारत में अस्थिरता, अशांति एवं अराजकता फैलाना चाहता है।
बांग्लादेश बाड़ लगाने के समझौते का सम्मान करने के बजाय उसकी समीक्षा करने की बात करके उसमें रौड़ा अटकाना चाह रहा है। वह उन स्थानों पर कंटीले तारों वाली बाड़ लगाने का खास तौर पर विरोध कर रहा है, जहां से बड़े पैमाने पर घुसपैठ और तस्करी होती है और यही से आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने की संभावनाएं हैं। इसके कुछ पुष्ट प्रमाण भी मिले है। इस संदर्भ में बांग्लादेश वैसे ही कुतर्क एवं बेतूके तथ्य प्रस्तुत कर रहा है, जैसे सीमा सुरक्षा के भारत के प्रयत्नों पर पाकिस्तान करता रहता है। हैरानी नहीं कि यह बांग्लादेश से पाकिस्तान की हालिया नजदीकी किसी बड़ी दुर्घटना या आतंकी हमले का सबब बन जाये। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता।
भारत को यह देखना होगा कि कहीं ये दोनों देश मिलकर उसके खिलाफ कोई ताना-बाना तो नहीं बुन रहे हैं? निश्चित रूप से पिछले दिनों बांग्लादेश से रिश्तों में जिस तरह से अविश्वास एवं कडवाहट उपजी है, उसके चलते भारत अपनी सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता। भारत के लिए यही उचित है कि वह पाक-बांग्लादेश के संभावित गठजोड़ से सावधान रहे। भारत को अपनी सुरक्षा चिंताओं के लिये कदम उठाने ही चाहिए। बीएसएफ और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश यानी बीजीबी में कई बार बातचीत के बाद बाड़बंदी मुद्दे पर सहमति बन चुकी है। लेकिन बांग्लादेश भारत की सदाशयता एवं उदारता के बावजूद टकराव के मूड में नजर आता है। ऐसा ही रवैया उसका अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भी रहा है, जिस बारे में वह अब दलील दे रहा है कि हालिया बांग्लादेश में हिन्दुओं से जुड़ी हिंसक घटनाएं सांप्रदायिक नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से हुई हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दोनों देशों के संबंध बिगाड़ने में पर्दे के पीछे पाकिस्तान की भूमिका हो। जिस बांग्लादेश को पाकिस्तानी क्रूरता से मुक्त कराकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत ने तमाम कुर्बानियों के बाद जन्म दिया, उसका यह रवैया दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, बल्कि विडम्बनापूर्ण कहा जाएगा।