महाकुंभ की ऐतिहासिक सफलता पर अनर्गल प्रलाप क्यों?

महाकुंभ केवल एक धार्मिक समागम ही नहीं है, यह भारत की संस्कृति का भी परिचायक एवं आत्मा है। इस बार महाकुंभ में जितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया, वह अकल्पनीय है, विश्व में इतने विशाल जनसमूह को आकर्षित एवं नियोजित करने वाले धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। इस सफल एवं ऐतिहासिक आयोजन से विपक्षी दल एवं नेता बौखलाये हुए हैं और अपने बेतूके एवं अनर्गल प्रलाप से न केवल इस आयोजन की सफलता-गरिमा को धुंधलाना चाहते हैं बल्कि सनातन संस्कृति का उपहास उड़ा रहे है। टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने महाकुम्भ को मृत्युकुम्भ कहा तो सपा सांसद जया बच्चन एवं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कहते हैं कि शवों को गंगा में बहा दिया गया, लालू यादव कहते हैं फालतू है महाकुम्भ।

इस प्रकार के गैर जिम्मेदाराना बयान सनातन धर्म के जुड़े हुए सबसे बड़े आयोजन के प्रति दिए गए हैं। ऐसे एवं कुछ अन्य विपक्षी नेताओं के भ्रामक, त्रासद एवं गुमराह करने वाले बयानों से वहां जाने वाले लोगों को भयभीत, आतंकित और आशंकित किया गया। इन विपक्षी नेताओं का एक वर्ग, धर्म का मखौल एवं उपहास उड़ाते हुए लोगों को तोड़ने में जुटा है और बहुत बार विदेशी ताकतें भी इन लोगों का साथ देकर देश और धर्म को कमजोर करने की कोशिश करती दिखती हैं। यह समझ आता है कि कुछ तथाकथित प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्षतावादी लोगों को सनातन धर्म से जुड़ा हर पर्व और परंपरा रास नहीं आती, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वे अन्य मतावलंबियों के ऐसे धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों पर उसी तरह की टीका टिप्पणी करते हैं जैसी उन्होंने महाकुंभ को लेकर की। आखिर हिन्दू समाज अपने अस्तित्व एवं अस्मिता पर हो रहे इन हमलों एवं आघातों के लिये कब जागरूक एवं संगठित होगा?

प्रयागराज महाकुंभ 2001, इस सहस्राब्दी का पहला कुंभ था, जो एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के चलते 144 साल बाद हुआ है। जिसमें लगभग 62 करोड़ से अधिक लोगों के स्नान, रहने, चिकित्सा, यातायात व्यवस्था, भीड़ प्रबंधन, स्वच्छता और सुरक्षा की शानदार एवं ऐतिहासिक व्यवस्थाएं करके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने न केवल देश बल्कि दुनिया को चौंकाया है। यह दुनिया का पहला विशाल आयोजन है, जिससे भारत एवं सनातन धर्म का गर्व एवं गौरव दुनिया में बढ़ा है। बावजूद इसके विपक्षी नेता जिस तरह की बातें कह एवं कर रहे हैं, निश्चित ही यह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता, सनातन विरोधी मानसिकता को ही दर्शा रहा है, वे लगातार विभाजनकारी राजनीति को प्रोत्साहन देते हुए भूल जाते हैं कि उनके ऊपर देश को तोड़ने नहीं, जोड़ने की जिम्मेदारी है। वे जानते नहीं कि वे क्या कह रहे हैं। उससे क्या नफा-नुकसान हो रहा है या हो सकता है। वे तो इसलिए बोल रहे हैं कि वे बोल सकते हैं, उन्हें बोलने की आजादी है, लेकिन इसका नुकसान देश को भुगतना पड़ रहा है। विडम्बना देखिये कि इसका नुकसान उनको एवं उनके दल को भी हो रहा है। भारत में सनातन विरोध की राजनीति करके वे अपनी ही जड़े उखाड़ रहे हैं, यह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शा रहा है।


मध्यप्रदेश के छतरपुर में बागेश्वर धाम मेडिकल एवं साइंस रिसर्च सेंटर की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाकुंभ का उल्लेख करते हुए जिस तरह कुछ विपक्षी नेताओं पर निशाना साधा, उसकी आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि कुछ लोग वास्तव में अनावश्यक और अनर्गल टीका-टिप्पणी करने में लगे हुए हैं। पुरानी कहावत है, मियाँ को न पाऊँ तो बीवी को नोच खाऊँ वाली स्थिति विपक्षी नेताओं एवं दलों की हो चुकी है। इसे छिद्रान्वेषी मानसिकता ही कहा जाएगा।  इस प्रकार की उद्देश्यहीन, अनर्गल, उच्छृंखल एवं विध्वंसात्मक आलोचना से किसी का हित सधता हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता।

विपक्षी नेता अपने नजरिए को बदलें और देश में नफरत और झूठ की राजनीति करके भ्रम फैलाने की ओछी राजनीतिक हरकतों से बाज आएं। विपक्ष जिस भाषा का प्रयोग कर रहा है, वह किसी भी सभ्य समाज को शोभा नहीं देती। विपक्षी नेताओं ने सारी हदें लांघते हुए जो तुलनाएँ की, जो अनर्गल प्रलाप किया है वह निश्चित रूप से अतिरेक या अतिशयोक्ति कही जा सकती हैं। प्रतीत होता है हर दिखते समर्पण की पीठ पर स्वार्थ चढ़ा हुआ है। इसी प्रकार हर अभिव्यक्ति में कहीं न कहीं स्वार्थ की राजनीति है, सत्तापक्ष को नुकसान पहुंचाने की ओछी मनोवृत्ति है।

कुछ विपक्षी नेताओं ने चुन-चुनकर इस आयोजन की समस्याओं को गिनाने में अतिरिक्त दिलचस्पी दिखाई और इस क्रम में वहां मची भगदड़ का जिक्र करते हुए यहां तक कहा कि उसमें हजारों लोगों की मृत्यु हुई है। यह गैरजिम्मेदारी, मानसिक दिवालियापन एवं अपरिपक्व सोच के अतिरिक्त और कुछ नहीं। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों को कठघरे में खड़ा किया, क्योंकि वे हिंदू आस्था पर जानबूझकर प्रहार ही कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने सही कहा कि महाकुंभ भारत की संस्कृति, आस्था और एकता का प्रतीक है। यह ठीक है कि जिस आयोजन में प्रतिदिन एक-दो करोड़ लोगों की भागीदारी होती हो, वहां कुछ समस्याएं हो सकती हैं और वे दिखीं भी, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि इस आयोजन को विफल बताने की कोशिश की जाए अथवा यह कहा जाए कि श्रद्धालुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। अच्छा हो कि विपक्षी नेता यह समझें कि ऐसे आयोजनों पर उनकी बेजा एवं बेतूकी टिप्पणियां उन्हें राजनीतिक रूप से नुकसान ही पहुंचाती हैं।

हिन्दू आस्था से नफरत करने वाले ये लोग सदियों से किसी न किसी शक्ल में रहते रहे हैं। गुलामी की मानसिकता से घिरे ये लोग हिन्दू मठों, मंदिरों, संतों, संस्कृति व सिद्धांतों पर हमला करते हुए राजनीति करते रहे हैं। ऐसे लोग भूल जाते है कि हिन्दू भारत का बहुसंख्य वर्ग है, भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, उसका विरोध करते हुए वे अपनी राजनीति जमीन को ही खोखला करते हैं। मोदी-योगी एवं भाजपा विरोध करते हुए वे राष्ट्र एवं सनातन विरोध पर उतर आते हैं। हिन्दू पर्व, परंपराओं और प्रथाओं को गाली देते है, जो धर्म एवं संस्कृति स्वभाव से ही प्रगतिशील है, विश्व  मानवता को जोड़ने वाली है, उस पर कीचड़ उछाल कर वे सछिद्र नाव में सवार है। हिन्दू समाज को बांटना, उसकी एकता को तोड़ना ही इनका एजेंडा हैं।

महाकुम्भ कोई नया आयोजन नहीं है, बल्कि यह वैदिक परंपरा से चला आ रहा है। ऋग्वेद, अथर्ववेद और श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसका उल्लेख है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की आत्मा है और इसे संकीर्ण राजनीतिक नजरिए से देखना अनुचित है। विपक्षी दलों के बयान ना सिर्फ़ उनके सनातन विरोधी चरित्र को दिखाता हैं बल्कि उनकी गिद्धदृष्टि को भी उजागर करता है जो महाकुंभ के खिलाफ़ दुष्प्रचार की आंधी से हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को धुंधलाने की कुचेष्टा एवं षडयंत्र है। यह सनातन धर्म पर प्रहार न केवल निंदनीय है बल्कि शर्मनाक भी है।

जबकि विदेशों से आये मेहमानों ने महाकुंभ के भव्य, व्यवस्थित एवं सफल आयोजन की भरपूर सराहना की है, इटली से आए एक श्रद्धालु ने कहा, यहां आकर जो मेरा अनुभव है, वह काफी शानदार रहा है। इटली के ही एक फोटोग्राफर ने कहा कि वह महाकुंभ की तस्वीरें लेने आए हैं। कुंभ में घूमने के दौरान कुछ लोगों से मिलने का मौका मिला। मुझे भारत की विविधता काफी अच्छी लगती है। उन्होंने बताया कि वह अब तक पांच कुंभ मेलों में शामिल हो चुके हैं, लेकिन यह उनमें सबसे बेहतर है। ब्रिटेन से आई एक श्रद्धालु ने कहा, बहुत खुश हूं। यह एक बहुत ही खास जगह है। यह काफी जादुई लगता है। बहुत, बहुत अच्छा, एक प्यारा अनुभव। ब्रिटेन के ही एक अन्य श्रद्धालु ने कहा कि यहां गंगा नदी में स्नान का अनुभव काफी अच्छा है। मैं समझता हूं कि भारत सबसे बढ़िया देश है। इस तरह भारत के गौरव को बढ़ाने वाली इन टिप्पणियों से न केवल महाकुंभ बल्कि सनातन संस्कृति का दुनिया में परचम फहराया है बल्कि उसमें चार चांद लगे हैं।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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