ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती देने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया

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डॉ. राम मनोहर लोहिया भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महानायकों में से एक थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के सामने निर्भीकता और साहस के साथ अपनी आवाज बुलंद की। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक प्रखर समाजवादी विचारक और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने समाजवाद के प्रचार-प्रसार और जातिवाद, ऊँच-नीच तथा धार्मिक भेदभाव से मुक्त भारत का सपना देखा। उनका मानना था कि “सर्वजन समभाव” की भावना से ओतप्रोत समाज ही सही मायने में स्वतंत्र और समृद्ध हो सकता है।

डॉ. लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर के शहजादपुर मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता हीरालाल लोहिया एक शिक्षित व्यक्ति थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय थे, जिससे लोहिया जी को भी स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बचपन से ही मिली। उन्होंने 1916 में अपनी प्राथमिक शिक्षा टंडन पाठशाला, अकबरपुर से प्राप्त की और बाद में विश्वेश्वरनाथ हाई स्कूल, अकबरपुर से माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उच्च शिक्षा के लिए वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गए, जहाँ से उन्होंने बी.ए. किया और इसके बाद बर्लिन विश्वविद्यालय (जर्मनी) से अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

डॉ. लोहिया युवावस्था में ही ब्रिटिश शासन के अत्याचारों से व्यथित थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने प्रखर विचारों के कारण ब्रिटिश हुकूमत की आँखों में खटकने लगे। ब्रिटिश शासन की नीतियों और दमनकारी उपायों के खिलाफ उन्होंने लार्ड लिनलिथगो को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से उनके शासन की अमानवीयता को उजागर किया। लोहिया ने लिखा कि ब्रिटिश सरकार ने केवल “हजार से भी कम देशभक्तों को मारा” ऐसा कहकर सच्चाई को छुपाने की कोशिश की, जबकि वास्तविकता यह थी कि 50,000 से अधिक भारतीयों की हत्या ब्रिटिश शासन के हाथों हुई थी। उन्होंने यह भी चुनौती दी कि यदि उन्हें दो सप्ताह तक बिना पुलिस हस्तक्षेप के देशभर में घूमने दिया जाए, तो वे दस हजार से भी अधिक पीड़ित परिवारों की सूची प्रस्तुत कर सकते हैं।

डॉ. लोहिया महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और अहिंसक संघर्ष को ही स्वतंत्रता प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग मानते थे। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे अंडरग्राउंड रहकर आंदोलन को संगठित करने का कार्य कर रहे थे। उन्हें इस दौरान कई बार गिरफ्तार किया गया और कठोर यातनाएँ दी गईं, लेकिन वे अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे। उन्होंने कहा था कि यदि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम हिंसक होता, तो ब्रिटिश सेना भारतीय और अंग्रेज सैनिकों के बीच विभाजित हो जाती और तब भारत की स्वतंत्रता का मार्ग और भी सुलभ हो सकता था। किंतु उन्होंने हमेशा गांधीवादी मार्ग को ही उचित माना।

आजाद भारत और समाजवाद

भारत की स्वतंत्रता के बाद डॉ. लोहिया ने अपने समाजवादी विचारों को मजबूत करने के लिए कार्य किया। वे एक ऐसे भारत की कल्पना करते थे जहाँ सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और राजनीतिक स्वतंत्रता सभी को समान रूप से प्राप्त हो। उनका मानना था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से ही देश का विकास संभव नहीं है, बल्कि समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता भी आवश्यक है।

डॉ. लोहिया ने विशेष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर बल दिया:

  1. जातिप्रथा का उन्मूलन – वे जातिवाद के कट्टर विरोधी थे और समाज में समरसता स्थापित करना चाहते थे।
  2. नारी सशक्तिकरण – वे महिलाओं के अधिकारों के प्रबल समर्थक थे और उन्हें राजनीति में अधिक भागीदारी देने के पक्षधर थे।
  3. गरीबी उन्मूलन – वे चाहते थे कि समाज के सबसे निचले वर्ग तक आर्थिक संसाधनों की समान पहुँच हो।
  4. हिन्दी का प्रचार – वे अंग्रेज़ी के वर्चस्व को समाप्त कर हिंदी को अधिक महत्व देने के पक्षधर थे।

डॉ. लोहिया भारतीय राजनीति में एक अहम स्तंभ के रूप में उभरे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की नीतियों की आलोचना की और एक स्वतंत्र समाजवादी धारा को विकसित किया। उन्होंने कई जन आंदोलनों को दिशा दी और समाजवादी पार्टी को मजबूत किया। उनकी विचारधारा आज भी भारतीय राजनीति को प्रभावित करती है।

डॉ. लोहिया ने कहा था, “जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं”। इस कथन से उन्होंने भारतीय जनता को यह संदेश दिया कि परिवर्तन के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए और सरकारों से जवाबदेही की मांग करनी चाहिए।

12 अक्टूबर 1967 को डॉ. राम मनोहर लोहिया का निधन हो गया। हालांकि, उनका जीवन और विचारधारा आज भी जीवंत है। वे उन नेताओं में से थे जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समाज के लिए समर्पित कर दी। आज उनकी जयंती के अवसर पर हम सभी को उनके विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिए और समाज में समानता, समरसता और न्याय की स्थापना के लिए कार्य करना चाहिए। डॉ. लोहिया का सपना केवल राजनीतिक आजादी तक सीमित नहीं था, बल्कि वे एक ऐसे भारत की कल्पना करते थे जो सामाजिक और आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर हो।

डॉ. राम मनोहर लोहिया केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक महान विचारक, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुली चुनौती दी और स्वतंत्र भारत में समाजवाद की नींव रखने का प्रयास किया। वे जातिवाद, असमानता और अन्याय के घोर विरोधी थे और उन्होंने एक समतावादी समाज की स्थापना का सपना देखा था। आज, जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि हम उनके विचारों को आत्मसात करें और एक ऐसे भारत के निर्माण में योगदान दें जो सामाजिक समानता और न्याय की मूल भावना को आगे बढ़ाए।

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