बिलासपुर: अब निजी अस्पतालों में जन सेवा ,मानव सेवा की भावना कम ही दिखाई देती है। यह मानवसेवा संस्थान नहीं बल्कि व्यावसायिक प्रतिष्ठान बन चुके हैं। न्यायधानी में ही जगह-जगह सैकड़ो निजी अस्पताल खुल चुके हैं, इन अस्पतालों को देखने से लगेगा जैसे कोई फाइव स्टार होटल हो। इन अस्पतालों में लाखों के महंगे महंगे मशीन भी उपलब्ध किए जाते हैं, लेकिन सामान्य मरीज और कमजोर वर्ग के मरीजों के लिए इन अस्पतालों में इलाज कराना अत्यधिक मंहगा तो है ही साथ ही यहां के डॉक्टर व स्टाफ द्वारा मानव सेवा की भावना भी अब धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है, अब तो केवल निजी अस्पतालों में व्यावसायिक दृष्टिकोण ही अपनाया जा रहा है, जो इस पवित्र कार्य के गरिमानुरूप नहीं कहा जा सकता। निजी अस्पतालों के द्वारा अपनाई गई यह नीति कमोबेश प्रदेश ही नहीं सारे देश में दिखाई पड़ती है।
आयुष्मान कार्ड को महत्व नहीं देते
पिछले वर्ष जिले में निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों से अतिरिक्त शुल्क वसूलने की शिकायतों के बाद स्वास्थ्य विभाग ने सख्त कार्रवाई की है। आयुष्मान कार्ड धारकों से अनाधिकृत रूप से पैसे लेने के आरोप में आरबी हॉस्पिटल, नोबेल हॉस्पिटल, न्यू लाइफ हार्ट केयर हॉस्पिटल और श्री मंगला हॉस्पिटल को नोटिस जारी किए गए। वहीं ओमकार हॉस्पिटल पर 1 लाख 82 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया ।बता दें आयुष्मान भारत योजना के तहत, मरीजों को सरकारी और पंजीकृत निजी अस्पतालों में निःशुल्क इलाज की सुविधा दी जाती है। सरकार इन अस्पतालों को पैकेज के अनुसार भुगतान करती है। बावजूद इसके, जिले के कई निजी अस्पताल आयुष्मान कार्ड के बावजूद मरीजों से अतिरिक्त पैसे वसूल रहे हैं। मरीजों की लगातार शिकायतों के बाद स्वास्थ्य विभाग ने यह कार्रवाई की।
शिकायतों में बताया गया कि इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद अस्पतालों द्वारा अतिरिक्त शुल्क लिया जा रहा था। इस वजह से मरीजों को मजबूरी में अतिरिक्त पैसे जुटाने पड़ रहे थे। इन शिकायतों के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग ने कड़ा रुख अपनाते हुए संबंधित अस्पतालों को नोटिस थमाए और ओमकार हॉस्पिटल पर जुर्माना लगाया।
सुप्रीम कोर्ट को देना पड़ा दखल
सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों की लूट-खसोट की वृत्ति से परेशान मरीजों एवं उनके परिजनों को राहत दिलाने के लिए अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने की पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक महीने के अंदर अस्पतालों के लिए मानक दर तय करने का निर्देश जारी किया है. यही नहीं, कोर्ट ने तय अवधि में सरकार द्वारा मानक दरें तय नहीं किये जाने की स्थिति में निजी अस्पतालों में भी सरकारी अस्पतालों की दर लागू करने पर विचार करने की बात कही है। देशभर मे प्राइवेट अस्पताल की बढ़ती मनमानी के बीच मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा ने जोर देकर कहा है कि निजी अस्पताल प्राइवेट कारपोरेट कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं। समाज की सेवा करने के बजाय इनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना है।
जरूरत है सख्त नियम निर्देशों की
अब जरूरत है कि सरकार इन निजी फर्जी और मुनाफाखोर अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए सख्त कानून बनाएं। बताते चलें कि निजी अस्पतालों की मामाना लूट-खसोट से मरीज एवं उनके परिजन खासे परेशान रहते हैं। लेकिन इसकी जानकारी रहते हुए भी राज्य या केंद्र की सरकारें न अपने अस्पतालों की स्थिति में सुधार ला पाई हैं और न ही निजी अस्पतालों की मनमर्जी को रोकने की मंशा ही रखती हैं। और तो और, केंद्र और राज्यों की सरकारें अब तक क्लिनिकल एस्टेब्लिसमेंट के नियम भी लागू नहीं करा पाई हैं। ऐसी स्थिति में मरीजों एवं उनके परिजनों को निजी अस्पतालों की मनमानी एवं लूटने की वृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार को एक माह के अंदर स्टैंडर्ड रेट तय करने को लेकर सख्ती बरतते हुए सरकारों को आदेश दिये हैं।
सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव
निजी अस्पताल में मरीजों को इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। वहीं सरकारी अस्पतालों में इलाज व सर्व सुविधा तत्काल नहीं मिलना भी इसका बहुत बड़ा कारण है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों का नहीं मिलना और जांच मशीनों का अभाव सामान्य बात है। इन सभी कारणों से मरीज निजी अस्पतालों में जाते हैं, जहां उनका आर्थिक शोषण किया जाता है।
मिलीभगत का नतीजा
निजी अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश नहीं लगने का प्रमुख कारण सरकारी कारिंदों की मिलीभगत का होना है। रक्षक ही जब भक्षक बन जाते हैं तो सभी जनहित की योजनाओं का धरातल पर उतरना मुश्किल हो जाता है। चिरंजीवी योजना बेहतर योजना है किंतु निजी अस्पतालों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह भी कारगर नहीं हो पाएगी । निर्दोष जनता को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है।
असल मुद्दे से ध्यान भटकाने का प्रयास
हमारे यहां सारे निजी अस्पतालों में सरकारी आदेशों की अनदेखी करना और मनमानी रकम वसूल करना एक आम सी बात है। शीर्ष सरकारी अफसरों और निजी अस्पतालों के मालिकों की सांठगांठ से सारे कायदे-कानून ताक पर रख दिए जाते है और जनता को भ्रमित करने के लिए नेताओं द्वारा प्राइवेट अस्पतालों की लूट खसोट का रोना शुरू कर दिया जाता है, जबकि पक्ष-विपक्ष के नेताओं को अंदर का सारा खेल पता होता है। आरोप-प्रत्यारोप से असल मुद्दे को भटकाने की सस्ती राजनीति का ही परिणाम है जो आज निजी अस्पताल लूट खसोट का केंद्र है। सरकार अपनी चिकित्सा सेवाओं की बेहतरी के लिए हर बजट में करोड़ों रुपयों आवंटित करती है फिर भी इनकी व्यवस्था में अपेक्षित सुधार नहीं आ पाता।
अस्पतालों में लूट खसोट
एक ओर सरकारी अस्पतालों की खस्ताहाल व्यवस्थाओं की तस्वीरें आती रहती हं, वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों के तथाकथित सर्वसुविधा युक्त व्यवस्थाओं के नाम पर लूट खसोट की कहानी भी रोज उजागर होती रहती है। निजी अस्पतालों में बेहतर इलाज के नाम पर मरीजों से वसूली आम है। निजी अस्पताल सरकारी दांवपेच से बचना जानते हैं। समाज सेवा व सीएसआर के नाम पर दी जाने वाली राशि से ये अपनी छवि धूमिल होने से बचा लेते है।
त्वरित और कड़ी कार्रवाई की जरूरत
जिस प्रकार डॉक्टर यूनियन या कर्मचारी यूनियन होती है, उसी प्रकार पेशेंट यूनियन दबाव समूह के रूप में बनाई जाए। इस यूनियन में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा निजी अस्पतालों के खिलाफ अव्यवस्था व लापरवाही मिलने पर त्वरित कार्रवाई की कोशिश की जाए। लापरवाह डॉक्टर तथा स्टाफ के लाइसेंस जब्त होने चाहिए। उनके नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए, ताकि दूसरे भी सीख लें। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की फीस भी निर्धारित की जानी चाहिए, वे कोई दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। हालत यह है कि आजकल कुछ डॉक्टर तो तत्काल टिकट की तरह तत्काल मरीजों को देखने की तीन गुनी फीस लेते हैं। निजी अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण भोजन के नाम पर मरीजों से अधिक पैसे वसूले जाते है। जूस के नाम पर प्रिजर्वेटिव्स जूस और नाश्ते के नाम पर फास्ट फूड देते हैं। प्रशिक्षित स्टाफ भी नहीं रहता इन अस्पतालों में, ना ही उपकरणों की सुध लेने वाला कोई है। सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। इन अस्पतालों में शिकायत पेटिका होनी चाहिए। साथ ही इनको आरटीआइ के दायरे में लाया जाना चाहिए। निजी अस्पतालों के लिए लोकायुक्त जैसे पद सृजित किए जा सकते हैं, जो की शिकायत मिलने पर कार्रवाई करें।
