दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका को फीस विवाद के चलते छात्रों के साथ अमानवीय व्यवहार करने पर कड़ी फटकार लगाई है। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि स्कूल ने छात्रों को “वस्तु” की तरह, जो निंदनीय है और ऐसे स्कूल को बंद कर देना चाहिए।

कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि छात्रों को फीस न भरने पर लाइब्रेरी में बंद करना और कक्षाओं में न जाने देना पूरी तरह अमानवीय और अपमानजनक है। अदालत ने स्कूल पर केवल “पैसा कमाने की मशीन” के रूप में चलने का गंभीर आरोप भी लगाया।
इस दौरान कोर्ट परिसर में छात्र अपनी यूनिफॉर्म, किताबें और बैग के साथ अपने माता-पिता के साथ मौजूद थे। कोर्ट ने कहा, “मैं चिंतित हूं कि छात्रों के साथ असभ्य और अमानवीय तरीके से व्यवहार किया गया… फीस भरने में असमर्थता, स्कूल को छात्रों का अपमान करने का अधिकार नहीं देती।”
दक्षिण-पश्चिम जिले के जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली आठ सदस्यीय निरीक्षण समिति की रिपोर्ट में छात्रों के साथ कई भेदभावपूर्ण व्यवहार उजागर किए गए। यह रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसमें स्कूल की स्थिति को “चिंताजनक” बताया गया।
अभिभावकों ने आरोप लगाया कि “अनधिकृत शुल्क” न भरने पर स्कूल प्रबंधन उनके बच्चों को प्रताड़ित कर रहा है।
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि स्कूल किसी भी छात्र को लाइब्रेरी में बंद न करे, सभी को कक्षा में बैठने दे, उन्हें उनके दोस्तों से अलग न करे और स्कूल की सुविधाओं से वंचित न रखे।
न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “ऐसे व्यवहार के लिए स्कूल की प्रिंसिपल पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए।”
यह सुनवाई छात्रों की ओर से दाखिल याचिका पर हो रही थी। छात्रों की ओर से पेश वकील ने कहा कि वे निर्धारित शुल्क चुकाने को तैयार हैं, जबकि स्कूल के वकील ने दावा किया कि दिसंबर में ही नोटिस दिए गए थे, लेकिन छात्रों ने मार्च तक शुल्क नहीं भरा, इसलिए उन्हें स्कूल आने से रोका गया।
दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की ओर से कोर्ट को बताया गया कि 8 अप्रैल को स्कूल को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, जिसमें पूछा गया है कि क्यों न उसके खिलाफ डि-रैकग्निशन (मान्यता रद्द) की कार्रवाई की जाए।