रायपुर: एम्स रायपुर ने चिकित्सा इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मार्गदर्शन में अपना पहला स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह जटिल और जीवनरक्षक प्रक्रिया, जिसे किडनी पेयर्ड ट्रांसप्लांट (केपीटी) भी कहा जाता है, एम्स रायपुर को नए एम्स संस्थानों में पहला और छत्तीसगढ़ राज्य का पहला ऐसा सरकारी अस्पताल बना देती है जिसने यह उपलब्धि हासिल की है।

यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि उस दिशा में एक बड़ा कदम है, जहां अंतिम चरण के किडनी रोग से जूझ रहे रोगियों को नवाचारपूर्ण और प्रभावी उपचार समाधान मिल सकें। इस प्रकार के स्वैप ट्रांसप्लांट से प्रत्यारोपण की संख्या में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।
‘वन नेशन, वन स्वैप ट्रांसप्लांट’ की दिशा में अग्रसर
राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वैप डोनर ट्रांसप्लांट को लागू करने की सिफारिश की है। इसके साथ ही एक राष्ट्रीय ‘वन नेशन, वन स्वैप ट्रांसप्लांट’ कार्यक्रम की भी शुरुआत की गई है, जिससे अंगदान की उपलब्धता में और वृद्धि की जा सके।
स्वैप ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में, दो अलग-अलग रोगियों के पास दान करने वाले इच्छुक परिजन होते हैं, लेकिन रक्त समूह या एचएलए एंटीबॉडी की असंगति के कारण वे सीधे एक-दूसरे को अंग नहीं दे सकते। ऐसे में एक-दूसरे के संगत दाताओं से अदला-बदली कर दोनों रोगियों को जीवन रक्षक किडनी प्रदान की जा सकती है।
बिलासपुर के दो रोगियों को नई ज़िंदगी
इस ऐतिहासिक ट्रांसप्लांट में, बिलासपुर के 39 और 41 वर्षीय दो पुरुष अंतिम चरण के किडनी रोग (ESRD) से पीड़ित थे और पिछले तीन वर्षों से डायलिसिस पर निर्भर थे। उनकी पत्नियां जीवित दाता बनने को तैयार थीं, परंतु एक जोड़ी में बी+ और ओ+, और दूसरी में ओ+ और बी+ जैसे असंगत रक्त समूह के कारण प्रत्यक्ष प्रत्यारोपण संभव नहीं था।
इस चुनौती का समाधान एम्स रायपुर की ट्रांसप्लांट टीम ने स्वैप ट्रांसप्लांट करके किया। प्रत्येक दाता ने अपनी किडनी दूसरे रोगी को दी, जिससे संगतता बनी और दोनों मरीजों को नई जिंदगी मिली। यह जटिल सर्जरी 15 मार्च 2025 को की गई थी, और चारों – दोनों दाता और दोनों प्राप्तकर्ता – ट्रांसप्लांट आईसीयू में स्वस्थ रूप से उबर रहे हैं।
विशेषज्ञ टीम ने निभाई अहम भूमिका
इस उपलब्धि के पीछे एम्स रायपुर की ट्रांसप्लांट टीम की अथक मेहनत रही। इसमें प्रमुख रूप से शामिल रहे:
- डॉ. विनय राठौर (ट्रांसप्लांट फिजीशियन)
- डॉ. अमित आर. शर्मा, डॉ. दीपक बिस्वाल और डॉ. सत्यदेव शर्मा (ट्रांसप्लांट सर्जन)
- डॉ. सुब्रत सिंहा, डॉ. मयंक, डॉ. जितेंद्र और डॉ. सरिता रामचंदानी (एनेस्थिसियोलॉजिस्ट)
- और साथ में ओटी एवं ट्रांसप्लांट नर्सिंग स्टाफ
छत्तीसगढ़ में अंग प्रत्यारोपण की नई दिशा
एम्स रायपुर ने छत्तीसगढ़ में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है। संस्थान ने जीवित और मृत दोनों प्रकार के दाताओं से किडनी प्रत्यारोपण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संचालित किया है। बीते दो वर्षों में 6 मृत दाताओं ने अपने अंग दान किए हैं।
एम्स रायपुर, मृतक दाता किडनी प्रत्यारोपण शुरू करने वाला पहला नया एम्स है। इसके साथ ही यह संस्थान बाल चिकित्सा किडनी प्रत्यारोपण शुरू करने वाला राज्य का पहला एम्स भी बन चुका है।
उत्कृष्ट परिणाम, मजबूत भरोसा
अब तक एम्स रायपुर ने 54 किडनी ट्रांसप्लांट किए हैं, जिनमें ग्राफ्ट उत्तरजीविता दर 95% और रोगी उत्तरजीविता दर 97% रही है। यह संस्थान की उच्च चिकित्सा गुणवत्ता और रोगी देखभाल में उत्कृष्टता का प्रमाण है।