“सावधान” आज एक अप्रैल है

1 अप्रैल मूर्ख दिवस पर विशेष–

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

 जी हाँ! आज एक अप्रैल का दिन है, जिसे सभी दुनिया भर के लोग “मूर्ख दिवस” (अप्रैल फूल) के रूप में मनाते हैं। वैसे इस विषय पर काफी विवाद हैं कि “मूर्ख दिवस” हमारे देश से सर्वप्रथम  प्रचलन में आया अथवा विदेशों से होते हुये हमारे यहाँ आया? खैर हमें इस पचड़े में नहीं पड़ना है। हमें तो इस मूर्ख दिवस के अवसर पर कुछ चुनिंदा एवं मजेदार मूर्ख बनाने एवं बनने की कुछ घटनाओं से दो चार होना हैं। यहाँ यह कहना जरूर लाजिमी होगा कि जिस दिमाग में भी इस मूर्ख दिवस का फितूर आया होगा वह कोई महामसखरा व विनोदप्रिय व्यक्ति ही हो सकता हैं। वैसे इस संबंध में एक बात याद आ रहीं है। (यह बात मूर्ख दिवस मनाये जाने के पूर्व की हैं।)     

 किसी समय किसी स्थान के बुद्धिजीवी व्यक्तियों ने वह महसूस किया था, कि हम रोजाना रोजी रोटी तथा अन्य सामान्य जन जीवन के कार्यों को निपटाते निपटाते. कुछ दूर होते जा रहे हैं। आपसी संबंधों में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। जीवन नीरस होता जा रहा है, अस्तु कुछ ऐसा किया जाये कि किसी बहाने एक दूसरे के करीब आने का मौका मिले व मनोरंजन भी हो। तभी किसी फितरती इंसान ने इस मूर्ख दिवस का यानि मूर्ख बनाने का सुझाव दिया जो उपस्थित सभी लोगों को खूब भाया। शायद, “तभी से मूर्ख दिवस मनाने की प्रथा शुरु हुई। 

 अमेरिका के विख्यात राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन बहुत विनोदप्रिय थे। एक बार उन्होंने वाशिंगटन के राष्ट्रपति निवास “व्हाईट हाऊस” के उद्यान में घूमते समय एक बार क्यारी में भटक आये माली के पुत्र की गोद में उठा लिया और उसे व्हाईट हाऊस के छोटे से कमरे में ले गये? वहाँ उन्होंने बालक को ऊपर उठाकर कहा कि इनाम लेना चाहते हो तो इन दो दिवारों और बुत पर अपने पैरों के निशान बराबर की दूरी पर बना दो। फिर वे बच्चे को गोद में उठाये – उठाये ही बगीचे में वापिस पहुँचा दिया। जब व्हाइट हाऊस के सुरक्षा कर्मचारियों को उक्त पद चिन्ह दिखाये गये तो वे जासूसों की मदद से घंटों तक इस बात का पता लगाने के लिये परेशान रहे कि एक खिड़की से कमरे में आकर दीवार, छत और दूसरे दीवार पर चलकर दूसरी खिडकी से बाहर निकलने वाला प्राणी कौन था, और कहाँ से आकर कहां गया कि कहीं भी उसके पदचिन्ह नहीं है। यह घटना भी घटी थी एक अप्रैल को ही।

 ब्रिटेन में प्रेक्टिकल मजाक करने वालों में विलियम होसकोल रहे हैं, जो भूतपूर्व प्रधानमंत्री नेवेली चेम्बरलेन के साले थे। कोल ने एक बार अपने कुछ साथियों को मजदूरों की पोशाक पहनाई और सड़क रोकने के निशान बना, खुदाई के औज़ार लेकर लंदन के सबसे व्यस्त और भीड़ भरे इलाके पर धावा बोल दिया। इन लोगों ने बान स्ट्रिट के पास मुख्य सड़क के हिस्से के चारों ओर स्स्से तान दिये और बडे इत्मीनान से सड़क की खुदाई शुरू कर दी। पी डब्ल्यू डी गेंग प्रतीत होने वाले इस दल की सहायता के लिये शीघ्र दो पुलिस मेन भी आ पहुंचे, जिन्होंने दोनों ओर खड़े होकर यातायात को  रोकना शुरु कर  दिया। कोल और उनके साथी सड़क को गज – गज भर खोदकर शाम को गायब हो गए तब तक क्या अगले दिन भी किसी को शक नहीं हुआ कि यह सब नकली था। जब दो दिन तक सड़क यों ही रुकी रहीं और काम पर नहीं लौटे तो पी डब्ल्यू डी से पूछताछ की गई तब यह राज खुला कि वे सभी लोग बुरी तरह से मूर्ख बनाये गये थे।

 जर्मनी और नार्वे के लोग तो इस पर्व में इतनी ज्यादा रुचि रखते हैं कि एक दिन से उनका मन नहीं भरता और अप्रैल माह के अंतिम दिन को भी उसी रूप में मनाते हुए अपने मन की कसर पूरी करते हैं। जर्मनी में ही घटित एक अप्रैल को घटित एक घटना का विवरण है।  एक बार  न्यूरेअम्बस नगर के प्रमुख बाज़ार में, एक नया विशाल जनरल स्टोर अप्रैल से खुलने वाला था। स्टोर का मालिक अपने कर्मचारी दल को साथ लेकर स्टोर का उद्घाटन करने पहुँचा तो वह देखकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि उसके दुकान के सामने उम्मीद से कही ज्यादा भारी भीड़ इकट्ठी हो गई हैं। जैसे तैसे वह भीड़ को हटाकर दुकान के पास पहुँचा और जैसे ही मुख्य दरवाजा खोलने के लिये बढ़ा तो उसकी नजर दरवाजे की ऊपर वाले भाग पर पड़ी और चकराकर गिरने ही वाला था कि उसे उसके कर्मचारियों ने पकड़ लिया और जब वे प्रश्न सूचक नेत्रों से उसकी ओर देखे तो कुछ पाया कि वह ऊपर की ओर इशारा कर रहे थे – जहाँ शायद रात को ही किसी • मसखरे ने बड़े – बड़े शब्दों में लिखा था – “पहले दिन हर चीज आधी कीमत में मिलेगी।” कभी- कभी मूर्ख बनाने के चक्कर में ऐसा वाक्यात भी घटित हो

जाता है कि मूर्ख बनाने वाल ही स्वयं मूर्ख बन जाता है। अब जैसा कि निम्न घटना में आप स्वयं पता लगाने की जहमत उठायें कि कौन किसको मूर्ख बना गया। घटना वही एक अप्रैल की हैं। 

 जबलपुर में हमारे एक मित्र रहते हैं। कमल ठाकुर। उन्होंने क्या किया कि झूठ मूठ का ही अपनी शादी की निमंत्रण पत्र अपने कुछ इष्ट मित्रों को बांट दिया । उन्होंने सोचा था कि एक अप्रैल को जब सभी लोग उनके द्वारा दर्शाये वैवाहिक स्थल पर पहुँचेंगे तो वहाँ कुछ भी न पाकर वे सभी अच्छा मूर्ख बनेंगे। लेकिन इस दिन कुछ हुआ यूँ कि कुछ मित्र तो जरूर उनके जाल में फँसकर उनके बताये स्थान पर पहुँचकर अच्छा बुद्धू बन बैठे। लेकिन उनके कुछ मित्र शायद कुछ ज्यादा ही चतुर थे उन लोगों ने सीधे ही उनके घर पर गिफ्ट पैक भेज न आ पाने पर संवेदना प्रकट किया । जब सभी गिफ्ट पहुँचे तो वे बहुत खुश हुये कि चलो इसी बहाने उपहार भी प्राप्त हुआ और जब उन्होंने उपहारों के पैकेट खोलना शुरू किया तो उनकी हालत देखने योग्य थीं। शायद आप सभी समझ ही गये होंगे। उन पैकेटों में उन्हें मूर्ख बनाने की एक से एक अमूल्य सामग्री मुंह बाए उनके सामने विद्यमान थी।

    ऐसे ही एक अन्य घटना में एक व्यक्ति ने तो हद ही कर डाला। अप्रैल फूल दिवस का उसने तो बड़ी अजीबो गरीब तरीके से उपयोग कर डाला था। हालांकि जिससे लोग बुद्धू तो बने ही लेकिन और भी कुछ हुआ जो कि उसका उद्देश्य ही नहीं है। है न आश्चर्य की बात, साथ ही साथ उसने अपने जीवन को अहम मोड़ दे दिया। हुआ कुछ यूँ एक महाशय थे उनको चढ़ा इश्क का भूत! किसी लड़की से उन्हें बेपनाह मुहब्बत हो गई। लड़की भी उनकी और आकर्षित थी। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पा रही थीं यानि इज़हारे मोहब्बत नहीं हो पाया था। सो उसका इलाज हमारे इस मजनूं महोदय ने मूर्ख दिवस में ही खोज डाला । इत्तफाक ऐसा ही हुआ कि जब वो तड़फ रहे वे प्यार के इजहार के लिये तभी अप्रैल फूल का दिवस भी आने वाला था।” अकस्मात उन्होंने एक पत्र अपनी प्रेमिका को जो ऊपरी तौर पर देखने से लगता था अप्रैल फूल बनाने के लिये किसी ने (लड़की की) पत्र लिखा है। जो कि उन्होंने उसके घर वालों को पता न चल पाये, इसलिये लिखा था। परंतु वास्तव में वह प्रेम पत्र था जिसे उनकी प्रेयसी ने समझ लिया ,और उनके अनोखे इज़हारे मोहब्बत पर बड़ा प्यारा सा खत जवाब में दिया। परिणामतः दोनों कालांतर में . परिणय सूत्र में बंध गये। बाद में लड़की के घर वालों को जब इन महाशय के प्रेम पत्र यानि अप्रैल फूल के पत्र का पता चला तो वे बड़े हतप्रभ रह गये कि क्या बड़े सुहावने व प्यारे अंदाज से अप्रैल फूल बनाया गया था उन्हें ।

  कभी – कभी ऐसे मजाक का पासा पलटने पर लेने के देने भी पड़ जाते हैं। तो जनाब इस बात के लिये हमेशा सतर्क रहिये कि किसी को मूर्ख बनाने से पूर्व उसके साथ किया जाने वाला मजाक फूहड़ न हो।मजाक सीमा के अंदर हो ताकि मूर्ख बनने वाला भी उसे बड़ी सहजता के साथ ले। अन्यथा बात बिगड़ने में जरा भी वक्त नहीं लगता है। जैसे ही एक साहब अपने आपको बहुत मसखरा समझते थे। इसी चक्कर में वे एक दिन बड़े स्टोर पर पहुँचे और एक छोटा सिक्का काऊंटर पर फेंकर कर कहा “दिया सलाई की पेटी चाहिये।” सेल्समेन पेटी ले आया तो उन्होंने उसे अपना कार्ड थमाकर रौब से आदेश दिया कि घर पहुँचा देना। सेल्समेन भी सवा सेर था। उस समय तो सिर्फ झुककर सलाम करता हुआ चुप रहा, लेकिन बाद में स्टोर का भीमकाय ट्रक लेकर गया और ट्रक से ग्राहक महोदय के बगीचे की दीवार गिराकर फूल की क्यारियाँ रौंदता हुआ उनके दरवाजे के सामनें गाड़ी खड़ी कर नम्रता पूर्वक बोला- “श्रीमान जी, दियासलाई की पेटी हाजिर हैं”। उन मसखरे साहब ने जब  बगीचे की दुर्गति देखी तो अपना माथा पीट डाला।

     तो अप्रैल फूल यानि मूर्ख  दिवस के लिये आप सभी नयी नयी युक्ति भिड़ानी शुरु कर दीजिये। अपने मित्रों, परिचितों,  रिश्तेदारों में खोजिये कि किसे मूर्ख बनाना है और तैयार हो जाइये मूर्ख दिवस के लिये। लेकिन सावधान इस दिन मूर्ख बनाने के चक्कर में स्वयं आपको भी कोई मूर्ख न बना ले इसके लिये ख़बरदार रहिये। खैर! बन भी जाते हैं तो कोई बात नहीं ये दिन ही तो हैं कि मूर्ख बनाया जाये। और बना भी जाये।

      — सुरेश सिंह बैस”शाश्वत”

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