बचपन से आशय मानव जीवन काल की वह अवधि से है, जो शैशवावस्था और किशोरावस्था के बीच होती है, जो 1-2 से 12-13 वर्ष की आयु तक मानी जा सकती है। बचपन मानव जीवन का वह समय होता है, जब एक व्यक्ति बच्चा होता है, अर्थात शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था तक का यह समय वह चरण है जब बच्चे शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक रूप से विकसित होते हैं। बचपन जीवन का बहुत महत्वपूर्ण समय है। बचपन में इतनी चंचलता और मिठास भरी होती है कि हर कोई फिर से बचपन को जीना चाहता है। बचपन में धीरे-धीरे चलना, गिर पड़ना और फिर से उठकर दौड़ लगाना, यह सबके जीवन का अंग रहा है। बचपन में पिताजी के कंधे पर बैठकर मेला देखने का जो आनंद होता है, वह दर्जनों दोस्तों के साथ में नहीं आता। परिवार को बच्चे की प्रथम पाठशाला कहा गया है, लेकिन आज हमारे बच्चे अपने बचपन को भूल गए हैं।
उनके होश संभालते ही माता-पिता उन पर अपने सपने लाद देते हैं और उन्हें उतार देते हैं प्रतियोगिता की दुनिया में। उनके दिमाग में यह बात कूट-कूटकर भर दी जाती है कि तुझे उनके बेटे से आगे निकलना है, अच्छे नंबर लाने हैं। पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने के समय को, खेलने-कूदने के समय को तथा उनके मन-मुताबिक कार्य करने को फालतू का समय, समय की बर्बादी का नाम दे दिया जाता है। बच्चे माता-पिता के लाभ के लिए पैदा नहीं हुए हैं, न ही वे परिवार की निजी संपत्ति हैं। बच्चे भारत का भविष्य हैं। हम एक-दूसरे के प्रति और अपने बच्चों के प्रति वफादारी रखते हैं, तो उनके सपनों का भी ध्यान रखना होगा। उन्हें उनके हिस्से की जमीन देनी होगी। अंकों के फेर में उनका भविष्य बर्बाद होने से बचाना होगा, तभी हमारा आने वाला भविष्य सुनहरा हो सकता है।
उक्त विषय को लेकर हमने अपने मित्रों से बात की। उन्होंने अपनी बेबाक राय रखी। विचार प्रस्तुत हैं:
बच्चे समाज और देश का भविष्य हैं
बच्चे समाज और देश के भविष्य होते हैं। एक सुदृढ़, संस्कारक्षम समाज एवं देश के निर्माण के लिए बच्चों के भविष्य को गढ़ना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है, साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना होता है कि बच्चों से उनका प्यारा, सुनहरा बचपन न छिन जाए। खेलकूद, मौज, मजा, धींगा-मस्ती, कागज की कश्ती और बारिश का पानी भी बेहद जरूरी है। इंसानी जीवन में बचपन ही वो अवस्था होती है जिसकी तुलना स्वर्ग सुख से की जाती है। अतः हमें उनके इस स्वर्ग सुख को भी बहाल करना होता है। बच्चों को संस्कार, शिक्षा, हॉबी, खेलकूद, घर-परिवार तथा नैतिक जिम्मेदारियों का एहसास कराना बेहद जरूरी तो होता ही है क्योंकि यही वो बेसिक तत्व हैं जिससे उनका भविष्य सुरक्षित होता है। मगर ये सब कुछ इस तरह से किया जाना चाहिए कि ये बच्चों को बोझ न लगे। उनके साथ हंसते गाते, खेल-खेल में इन जीवनावश्यक तत्वों का समावेश किया जाना चाहिए। मतलब बच्चों के भविष्य की नींव बचपन में ही रखी जानी चाहिए।
इसके लिए माता-पिता को दूरदर्शी होना चाहिए। इस संबंधी कई मार्गदर्शक संस्थाएं चारों ओर मौजूद हैं, जिनका लाभ लिया जाना चाहिए और बच्चों के भविष्य को अपने परिवेश एवं बच्चे की आकलन क्षमता के अनुसार निश्चित किया जाना चाहिए। शहरों के साथ-साथ आजकल ग्रामीण परिवेश में भी कई ऐसे अवसर एवं योजनाएं मौजूद हैं जिनके सहारे बच्चों का नेक भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है। ये सब करते हुए इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि बच्चों को उनका सुनहरा बचपन जीने के लिए भरपूर अवसर एवं सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।

बचपन और भविष्य को संवारना हम सबकी जिम्मेदारी है
बचपन किसी भी मनुष्य के जीवन में सद्गुणों, संस्कारों, जीवन मूल्यों, संवेदनाओं और नैतिकता का बीजारोपण करने का प्रथम पायदान होता है। मनुष्य के व्यक्तित्व और भविष्य का निर्धारण इसी बीजारोपण पर निर्भर करता है। इसलिए बालकाल मनुष्य के जीवनकाल का सबसे महत्वपूर्ण कालखंड होता है। यदि किसी के भविष्य को संवारना है तो उसके बचपन को संवारना होगा और यह केवल उसके अभिभावकों और शिक्षकों की नहीं अपितु पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। इसमें भी बाल साहित्यकारों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे मनुष्य में बचपन से श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों को निरोपित कर उनके सुनहरे भविष्य के मार्ग को सुगम बना सकते हैं।

बाल विकास ही राष्ट्र विकास है
बचपन जीवन का सबसे सुंदर और निर्मल पड़ाव होता है, जहाँ मस्ती, खेलकूद और निश्चिंतता प्रमुख होती है। इसी उम्र में बच्चों के मन में भविष्य की नींव भी पड़ती है। आज के बच्चे कल के नागरिक, वैज्ञानिक, शिक्षक और नेता होंगे, इसलिए उन्हें सही दिशा देने की जिम्मेदारी समाज और परिवार की है। बच्चे बचपन में जो सीखते हैं, वही उनके भविष्य का आधार बनता है। अच्छी शिक्षा, संस्कार और अनुशासन उन्हें एक सफल और जिम्मेदार व्यक्ति बनाते हैं। माता-पिता और शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे बच्चों को नैतिक मूल्यों के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दें। आज के दौर में तकनीक और बदलते सामाजिक मूल्यों के बीच बच्चों को संतुलित जीवन जीने की कला सिखानी भी ज़रूरी है। उन्हें पर्यावरण, समाज और देश के प्रति जागरूक बनाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। यदि बचपन में उचित मार्गदर्शन मिले, तो भविष्य उज्ज्वल और सुरक्षित होगा। दरअसल, बाल विकास ही राष्ट्र का विकास है।

सहायक संपादक
एनसीईआरटी, नई दिल्ली
बचपन से ही संस्कार से बीज पिरोएँ
बचपन जीवन की वह आधारशिला है, जहाँ संस्कार, शिक्षा और मूल्यों की बुनियाद रखी जाती है। एक संस्कारयुक्त बचपन ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माता बन सकता है। इसलिए बच्चों की उचित परवरिश, शिक्षा और संस्कार देना परिवार के साथ साथ समाज की भी जिम्मेदारी होती है। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों के सही मार्गदर्शक बनें और यही बच्चे आने वाले कल के डॉक्टर, इंजीनियर और एक देशभक्त नागरिक बनकर देश का नाम रोशन करेंगे। बचपन का सही मार्गदर्शन और पोषण ही देश को शक्तिशाली और समृद्ध बनाने में सहायक होगा।

प्रयागराज
बच्चों से न छीनें उनका सुनहरा बचपन
हम सभी जानते हैं, जीवन का सबसे मासूम, निश्छल और सुनहरा दौर होता है बचपन। यह वह समय होता है, जब हम हँसते हैं, खेलते हैं, सपने देखते हैं और बिना किसी चिंता के अपनी एक अलग ही दुनिया में जीते हैं। यह वह आधार होता है, जिस पर हमारे पूरे जीवन की नींव रखी जाती है। लेकिन क्या सिर्फ खेलना और मस्ती करना ही बचपन है ? नहीं ! बचपन वह बीज है, जिसे सही समय पर सींचा जाए, तो वह एक मजबूत, जिम्मेदार और सफल व्यक्ति के रूप में विकसित होता है।
आज हम बच्चे हैं, लेकिन कल हम ही इस देश का भविष्य बनेंगे- डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, नेता, वैज्ञानिक, और माता-पिता भी। इसलिए जरूरी है कि हम अभी से अपनी जिम्मेदारियों को समझें। भविष्य की जिम्मेदारी का मतलब यह नहीं कि हम अपने बचपन की खुशियाँ छोड़ दें, बल्कि यह समझना कि हम जो आज सीखते हैं, जो आदतें बनाते हैं, वही हमारे कल की दिशा तय करती हैं। हमें अपने समय का सही उपयोग करना चाहिए, पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार, अनुशासन और सहानुभूति जैसे मूल्यों को अपनाना चाहिए।

शोधार्थी, हिंदी विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया (बिहार)
बच्चों को दें अच्छे संस्कार और वातावरण
अच्छी फसल उगाने में कई चरण शामिल होते हैं, जैसे कि मिट्टी तैयार करना, बीज बोना, सिंचाई, उर्वरक डालना, खरपतवार नियंत्रण, कीट नियंत्रण, कटाई, थ्रेसिंग और भंडारण। इन सभी चरणों को सही क्रम में और उचित तरीके अपनाने से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। हम मनुष्य भी कुछ इसी प्रकार हैं। एक सशक्त, प्रगतिशील समाज तैयार करने के लिए बचपन रूपी प्राथमिक वस्तु को तैयार करना होगा। इसलिए बच्चों को अच्छे विचार, संस्कार, नैतिक शिक्षा, परिपूर्ण वातावरण देना आवश्यक है। बचपन में किया गया हर निवेश, आनेवाले समय में एक सशक्त समाज के रूप में लौटता है। अतः बचपन को संवारना, एक बेहतर कल का रोपण करने जैसा है।

शिक्षिका, सरकारी उच्च विद्यालय दुर्दूरा, ओड़िशा
बच्चों में करें अच्छे गुणों का संचार
बचपन एक ऐसा दौर होता है, जहाँ व्यक्ति की नींव रखी जाती है। आज के समय में बच्चों पर पढ़ाई और अच्छे अंक लाने का बहुत दबाव होता है, जिससे उनका बचपन बोझिल हो जाता है। निश्चित रूप से अच्छे अंक भविष्य के लिए जरूरी होते हैं, लेकिन केवल यही सफलता की पहचान नहीं हो सकते। जीवन में आगे बढ़ने के लिए संपूर्ण विकास अधिक महत्वपूर्ण है। बच्चों को केवल किताबी ज्ञान देना काफी नहीं, बल्कि उन्हें जीवन के व्यवहारिक पक्ष से भी परिचित कराना जरूरी है। आत्मविश्वास, निर्णय लेने की क्षमता, भावनात्मक संतुलन, और सामाजिक व्यवहार जैसे गुण बच्चों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करते हैं।
हमें बच्चों को ऐसा माहौल देना चाहिए जहाँ वे केवल अंकों की दौड़ में न उलझें, बल्कि अपने अनुभवों से सीखें, सोचें और आगे बढ़ें। उनका संपूर्ण विकास ही उन्हें एक अच्छा इंसान और जिम्मेदार नागरिक बना सकता है। असली शिक्षा वही है जो उन्हें जीवन में हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार करे। इसलिए भविष्य की जिम्मेदारी तभी निभाई जा सकती है जब हम बचपन को सही दिशा और संतुलित विकास का अवसर दें।

बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए करें प्रयास
बचपन भविष्य के लिए महत्वपूर्ण आधार है। बचपन में बच्चों को जो पोषण, देखभाल, शिक्षा और संस्कार मिलते हैं, वही उनके भविष्य को आकार देते हैं, अर्थात भविष्य निर्माण के नींव बचपन में ग्रहण की गई सीख से ही बनती है। बचपन में दिए गए संस्कार, पौधे में डाले गए खाद और पानी की तरह हैं जिससे वही पौधा भविष्य में विशाल वृक्ष का रूप धारण करता है। जिस तरह पौधे को उचित खाद और पानी न मिलने पर उसका सही विकास नहीं हो पाता है, ठीक उसी तरह सही शिक्षा और संस्कार के अभाव में बच्चों का भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है। बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें सही सीख देना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
उन्हें सही सीख देने की जिम्मेदारी की शुरुआत तो माता-पिता से होती है, पर बच्चा केवल अपने परिवार से ही नहीं सीखता है, अपितु अपने आस-पड़ोस के समाज से, अपने विद्यालय से, अपने गुरुजनों से तथा देश में हो रहे क्रिया-प्रतिक्रिया से भी सीखता है। आज समाज में तेजी से फैल रहे सोशल मीडिया और इंटरनेट के कारण बहुत से बच्चे गलत चीजों के शिकार हो रहे हैं, गलत दिशाओं में जा रहे हैं, जो हमारे समाज के लिए बहुत ही चिंताजनक विषय है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि हम बच्चों को परिवार में एक अच्छा माहौल, समाज और विद्यालय में अच्छा वातावरण देने का प्रयास करें, जिससे बच्चों में उज्ज्वल भविष्य निर्माण का बीजारोपण हो सके। हम बच्चों को सहज अनुभव कराते हुए उचित शिक्षा और संस्कार दें, जिससे आगे चलकर हमारे राष्ट्र का भविष्य उज्जवल हो सके।

होजाई, असम
बचपन और भविष्य की जिम्मेदारी
बचपन जीवन का वह चरण है, जिसका हम भरपूर आनंद ले सकते हैं। यह जीवन का वह हिस्सा है, जिसे हम दोबारा वापस नहीं पा सकते। बच्चों में मूल्यों का निर्माण बचपन में ही होता है। एक सकारात्मक अनुभव या निरंतर प्रोत्साहन से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। बचपन में ही उनके अंदर भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का आदान-प्रदान होता है। माता-पिता को अपने सपने बच्चों पर नहीं लादने चाहिए, बल्कि उनकी भावनाओं, क्षमताओं को समझते हुए उनके साथ बर्ताव करें। यह वह समय है जब बच्चे के अंदर जिज्ञासाओं का विकास हो रहा होता है, उनके अंदर हर चीज पर सवाल उपजते हैं। उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करना, उनके भविष्य का निर्माण करना माता पिता तथा शिक्षकों का कर्तव्य है। हमारे बच्चे अक्सर असफलता के डर से गलत रास्ते पर चले जाते हैं। उनको सही रास्ते पर लाना, भविष्य के लिए तैयार करना विद्यालय तथा परिवार की पूरी जिम्मेदारी है।

बच्चों को देना होगा सकारात्मक माहौल
बचपन और भविष्य को संवारने की बात करें, तो इसमें कई पक्ष शामिल हैं। हम यदि बात बचपन को संबारने की करें, तो इसमें माता-पिता, परिवार एवं अध्यापकों की अहम भूमिका होती है। बचपन एक ऐसी अवस्था है, जिसमें बालक अपने माता-पिता परिवारजनों एवं जो बचपन के अध्यापक अध्यापिका होते हैं, उनके साथ ज्यादा समय व्यतीत करता है। इसलिये मुझे लगता है, बचपन को संबारने की जिम्मेदारी माता-पिता, परिवार और अध्यापकों की होती है। बच्चे पर माहौल का पूरा असर बहुत पड़ता है, क्योंकि वह अपने चारों ओर जो देखता है, वह वैसा ही करने की कोशिश करता है। इसलिये आवश्यक है कि हम अपने बच्चों के पास एक सकारात्मक माहौल बनाएं। हमें अपने बच्चों की संगत पर भी गौर करना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता अपने बेटी-बेटा को खुली छूट दे देते हैं, तो वे फिर आजादी महसूस करने लगते हैं और कुछ गलत कार्यों मैं पड़ जाते हैं। अपने बच्चों को छूट देनी अच्छी बात है, लेकिन उनको उतनी ही छूट देनी चाहिए, जितनी उनकी समझ हो।
आजकल अभिभावक अपने बच्चों की बौद्धिक विकास पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, उनकी भावात्मक मूल्यों को नहीं समझ रहे हैं। यह बहुत ही खतरनाक है, क्योंकि बिना भावात्मक विकास के बौद्धिक विकास समाज के लिए घटक सिद्ध हो सकता है। हमें बच्चों के किताबी ज्ञान के साथ-साथ भावात्मक ज्ञान, सामाजिक ज्ञान के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही अभिभावक भी अपने बच्चे की तुलना किसी और बच्चे से न करें, ऐसे में बच्चा अंदर-अंदर घुटता रहता है, अर्थात हमको अपने बच्चों को सही माहौल देना चाहिए। किसी बच्चे से तुलना करने की बजाय अपने बच्चे का उत्साह बढ़ाएं, अच्छा करने के लिए और ज्यादा दबाब भी नहीं डालना चाहिए। सामजिक और नैतिक मूल्यों का ज्ञान अपने बच्चों को जरूर दें। यदि आप इतना ही कर लेते हैं तो उम्मीद है कि आपके बच्चे का भविष्य सही होगा
रिंकू खेड़ा खास, जनपद-सम्भल
बचपन मानव जीवन का वह आधार स्तंभ है
बचपन मानव जीवन का वह आधार स्तंभ है, जिस पर उसके संपूर्ण अस्तित्व की नींव रखी जाती है। बच्चों की भावनाएँ कोमल होती हैं, उनकी सोच आकार ले रही होती है और उनके अनुभव जीवन को समझने का आधार बनते हैं। यदि इस नाजुक अवस्था में उन्हें उचित दिशा, प्रेम, सुरक्षा और संसाधन मिलें तो वे भविष्य में न केवल अपने लिए बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। ऐसे में एक प्रश्न बहुत ही स्वाभाविक रूप से उठता है- बचपन भी जिम्मेदारी किसकी है ? क्या यह केवल माता-पिता का कार्य है ? या सरकार अकेले बच्चों की जिम्मेदारी सुनिश्चित कर सकती है ? या समाज को भी इस उत्तरदायित्व में भागीदार बनना चाहिए। बचपन के निर्माण में सबसे पहली और निकटतम इकाई परिवार की होती है। माता-पिता ही बच्चे के पहले गुरु, मित्र और मार्गदर्शक होते हैं। वे बच्चे को न केवल पालन-पोषण और आश्रय प्रदान करते हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा, संस्कार, व्यवहार की शिष्टता और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी देते हैं।
एक बच्चा जैसा अपने घर में देखता है और अनुभव करता है, वैसा ही वह धीरे-धीरे समाज में व्यक्त करने लगता है। अतः माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चे को समझें, उन्हें विश्वास, आत्मबल और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाएँ। वे ही बच्चे के पहले आदर्श होते हैं, इसलिए उनकी जिम्मेदारी सबसे पहले और सबसे अधिक मानी जाती है। हमें समझना होगा कि बचपन की जिम्मेदारी किसी एक संस्था, व्यक्ति या वर्ग की नहीं, वह समग्र समाज की साझी जिम्मेदारी है। जब माता-पिता प्रेम देंगे, शिक्षक शिक्षा देंगे, सरकार अवसर देगी, समाज सुरक्षा देगा और मीडिया सकारात्मक मार्गदर्शन देगा, तो एक सशक्त, सुरक्षित और समृद्ध बचपन संभव होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बचपन केवल एक अवस्था नहीं, वह भविष्य की नींव है। यह नींव जितनी मजबूत होगी, राष्ट्र उतना ही प्रगति करेगा। हर बच्चे की मुस्कान में ही देश की खुशहाली छिपी है और इस मुस्कान को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है।

प्रस्तुति

सहायक संपादक (हिंदी)
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली (भारत)