ब्रिक्स में भारत का बढ़ता वर्चस्व संतुलित दुनिया का आधार

ब्राजील के रियो डी जनेरियो में रविवार को हुए 17वें ब्रिक्स सम्मेलन में सदस्य देशों ने 31 पेज और 126 पॉइंट वाला एक जॉइंट घोषणा पत्र जारी किया। इसमें पहलगाम आतंकी हमले और ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की गई। इससे पहले 1 जुलाई को भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मेंबरशिप वाले क्वाड ग्रुप के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी पहलगाम हमले की निंदा की गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समिट में पहलगाम की आतंकी घटना पर कठोर शब्दों में कहा कि पहलगाम आतंकी हमला सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत पर चोट है। आतंकवाद की निंदा हमारा सिद्धांत होना चाहिए, सुविधा नहीं। मोदी ने शांति एवं सुरक्षा सत्र में कहा कि पहलगाम में हुआ ‘कायरतापूर्ण’ आतंकवादी हमला भारत की ‘आत्मा, पहचान और गरिमा’ पर सीधा हमला है। इसके साथ ही उन्होंने एक नई विश्व व्यवस्था की मांग उठाई।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समिट में महत्वपूर्ण मुद्रा में दिखाई दिये। उन्होंने एक बार फिर इसके विस्तार की बात की और सदस्य देशों से भी आग्रहपूर्ण ढंग से दबाव बनाया कि कि ब्रिक्स को विस्तार होना चाहिए। ब्रिक्स यानी बी से ब्राजील, आर से रूस, आई से इंडिया (भारत), सी से चीन और एस से दक्षिण अफ्रीका- ये दुनिया की पांच सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का एक समूह है। ब्रिक्स एक ऐसा बहुपक्षीय मंच है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सहयोग, वैश्विक विकास और सामूहिक सुरक्षा की भावना को बल देता है।  ब्रिक्स समिट काफी सफल एवं निर्णायक रहा है।

ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद, विशेषकर कश्मीर में फैले इस्लामी आतंकवाद को लेकर चर्चा ने इस मंच को वैश्विक राजनीति की दिशा तय करने वाले संगठनों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर दिया है। इसमें भारत की भूमिका, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निर्णायक भूमिका रही है। इन शक्तिसम्पन्न पांचों देशों का वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव है और दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। चीन इसे अपने हित के लिए इस्तेमाल करना चाहता है, जबकि भारत इसे सही मायनों में लोकतांत्रिक संगठन बनाना चाहता है। भारत चाहता है कि ब्रिक्स समूह मिलकर दुनिया में शांति, सह-जीवन, अहिंसा, लोकतांत्रिक मूल्य, समानता एवं सह-अस्तित्व पर बल देते हुए दुनिया को युद्ध, आतंक एवं हिंसामुक्त बनाया जाये।  ब्रिक्स देशों के इस सम्मेलन में एक विशेष बिंदु जो उभरकर सामने आया वह था-अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का बदलता स्वरूप और इसके कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्रभाव। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से यह रेखांकित किया कि आतंकवाद अब किसी एक राष्ट्र की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह एक वैश्विक संकट बन चुका है। उन्होंने कश्मीर में हो रहे आतंकवादी हमलों, पाकिस्तान समर्थित गतिविधियों और भारत की सीमाओं पर हो रही हिंसक घटनाओं को उदाहरण के रूप में सामने रखा। मोदी ने ब्रिक्स मंच से यह भी स्पष्ट किया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन जब आतंक का राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल होता है, तो वह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाता है।

भारत ने लंबे समय से कॉम्प्रेहेंसिव कॉन्वेंशन ऑन इन्टरनेशनल टेरिजम्स (सीसीआईटी) की पैरवी की है। इस बार ब्रिक्स मंच पर मोदी ने इस प्रस्ताव को फिर से प्रमुखता से उठाया और एक साझा परिभाषा व वैश्विक नीति की मांग की ताकि आतंकवादियों को सुरक्षा और राजनीतिक सहारा न मिल सके। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी सुझाव दिया कि ब्रिक्स को एक साझा आतंकवाद निरोधी तंत्र बनाना चाहिए, जो सूचनाओं का आदान-प्रदान, निगरानी तंत्र और आतंक के वित्तपोषण को रोकने में सहयोग करे। भारत ने इस बार पाकिस्तान का नाम लिए बिना यह सिद्ध किया कि कश्मीर में आतंकवाद एक स्थानीय असंतोष नहीं, बल्कि बाहरी प्रायोजित आतंक है। ब्रिक्स देशों, विशेषकर रूस और ब्राज़ील ने इस बात को स्वीकारा कि कश्मीर में फैले आतंकवाद पर चिंता जायज़ है और उन्होंने भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया। यह कूटनीतिक जीत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व कौशल को रेखांकित करती है। उन्होंने न केवल भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा की, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध एक नैतिक और व्यावहारिक आधार भी प्रस्तुत किया।

भारत 2026 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करने जा रहा है। यह भारत के लिए भविष्य को गढ़ने का एक सुनहरा अवसर है। भारत अब न केवल आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि ब्रिक्स एक न्यायसंगत, सुरक्षित और आतंकवादमुक्त विश्व के निर्माण की दिशा में कार्य करे। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका न केवल आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक स्वरूप में दिखाई दी, बल्कि यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत अब एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता राष्ट्र के रूप में उभर चुका है। नरेंद्र मोदी ने जिस सूझबूझ, तर्कशक्ति और साहस के साथ कश्मीर मुद्दे को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया, वह भारत की कूटनीति के नए युग की शुरुआत है। आगामी वर्ष में जब भारत ब्रिक्स की अध्यक्षता करेगा, तब यह विश्वास किया जा सकता है कि न केवल भारत, बल्कि समूचा विश्व भारत की नीति, नैतिक दृष्टि और नेतृत्व क्षमता का सम्मान करेगा। इस मंच से भारत केवल आर्थिक विकास नहीं, बल्कि मानवता, शांति और न्याय की नई इबारत लिखेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नई विश्व व्यवस्था की मांग उठाई उन्होंने कहा कि आज दुनिया को एक बहुध्रुवीय और समावेशी व्यवस्था की जरूरत है। इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थाओं में बदलाव से करनी होगी। मोदी ने कहा, ‘बीसवीं सदी में बनाई गई वैश्विक संस्थाएं इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निपटने में नाकाम हैं। एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमता के दौर में तकनीक हर हफ्ते अपडेट होती है, लेकिन एक वैश्विक संस्थान 80 सालों में एक बार भी अपडेट नहीं होती। बीसवीं सदी के टाइपराइटर इक्कीसवीं सदी के सॉफ्टवेयर को नहीं चला सकते। प्रधानमंत्री ने कहा, ग्लोबल साउथ के देश अक्सर डबल स्टैंडर्ड का शिकार रहे हैं। चाहे विकास हो, संसाधनों की बात हो, या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की, ग्लोबल साउथ को कभी प्राथमिकता नहीं दी गई है। इनके बिना, वैश्विक संस्थाएं ऐसे मोबाइल की तरह हैं, जिसमें सिम कार्ड तो है लेकिन नेटवर्क नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिन देशों का योगदान ज्यादा है, उन्हें फैसले लेने का हक नहीं है। यह सिर्फ प्रतिनिधित्व का नहीं, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी सवाल है।

भारत का मानना था कि समान सोच वाले देशों को साथ लेकर चला जा सकता है। आनेवाले समय में ब्रिक्स दुनिया की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने लगेगा। निश्चित ही ब्रिक्स की ताकत से एक वैश्विक संतुलन स्थापित हो रहा है और अमेरिका एवं पश्चिमी देशों के अहंकार एवं दुनिया पर शासन करने की मंशा पर पानी फिरा है। हमारा भविष्य सितारों पर नहीं, जमीन पर निर्भर है, वह हमारा दिलों में छिपा हुआ है, दूसरे शब्दों में कहें तो हमारा कल्याण अन्तरिक्ष की उड़ानों, युद्ध, आतंक एवं शस्त्रों में नहीं, पृथ्वी पर आपसी सहयोग, शांति, सह-जीवन एवं सद्भावना में निहित है। ’वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र इसलिये सारी दुनिया को भा रहा है। इसलिये बदलती हुई दुनिया में, बदलते हुए राजनैतिक हालात में सारे देश एक साथ जुड़ना चाहते हैं। ब्रिक्स का संगठन ऐसा सपना है जिसे भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी ने भारत के विदेश मन्त्री के तौर पर 2006 में देखा था।

प्रणव दा बदलते विश्व शक्ति क्रम में उदीयमान आर्थिक शक्तियों की समुचित व जायज सहभागिता के प्रबल समर्थक थे और पुराने पड़ते राष्ट्रसंघ के आधारभूत ढांचे में रचनात्मक बदलाव भी चाहते थे। इसके साथ ही वह बहुधु्रवीय विश्व के भी जबर्दस्त पक्षधर थे जिससे विश्व का सकल विकास न्यायसंगत एवं लोकतांत्रिक तरीके से हो सके। अब नरेन्द्र मोदी ने इसमें सराहनीय भूमिका निभाई है। उनके दूरगामी एवं सूझबूझ भरे सुझावों का ब्रिक्स देशों ने लोहा माना है। ब्रिक्स संगठन में भारत का वर्चस्व चीन की तुलना में बढ़ा है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता एवं कूटनीति का परिणाम है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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