मित्रताः रिश्तों की आत्मा और संवेदना की जीवंत सरिता

-मित्रता दिवस – 3 अगस्त 2025-

मित्रता वह रिश्ता है, जो न रक्त से बंधा होता है, न किसी सामाजिक अनुबंध से, फिर भी यह जीवन का सबसे आत्मीय और मजबूत संबंध होता है। दोस्ती वह भूमि है जहां प्रेम, विश्वास, अपनत्व, समर्पण और संवेदना एक साथ अंकुरित होते हैं। इसी दुर्लभ और विशुद्ध भाव को सम्मान देने के लिए हर वर्ष अगस्त माह के प्रथम रविवार को ‘मित्रता दिवस’ मनाया जाता है। मित्रता दिवस का यह दिन केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि वह अवसर है जो रिश्तों की आत्मा को पुनः जागृत करने, टूटते संबंधों को जोड़ने और नफरत की दीवारों के बीच मैत्री के पुल बनाने का निमित्त बनता है। यह दिन एक सार्थक प्रयास है, अपने जीवन की भागदौड़ में उस रिश्ते को याद करने का, जिसने हर मोड़ पर हमें संबल दिया, हौसला दिया और मुस्कुराने की वजह दी।

दुनिया के अधिकांश रिश्ते सामाजिक, पारिवारिक या व्यावसायिक जरूरतों से बने होते हैं, लेकिन मित्रता केवल मानवीयता, करुणा और स्नेह की भावना से जन्म लेती है। इसमें न कोई स्वार्थ होता है, न औपचारिकता, न ही प्रदर्शन। यही कारण है कि श्रीकृष्ण-सुदामा, श्रीराम-विभीषण, गांधी-नेहरू जैसे रिश्ते युगों तक मिसाल बनते हैं। जोसेफ फोर्ट न्यूटन ने कहा है-“लोग इसलिए अकेले होते हैं क्योंकि वे मित्रता के पुल बनाने की बजाय दुश्मनी की दीवारें खड़ी कर लेते हैं।” आज यही सबसे बड़ा संकट है-मनुष्यता की गिरती दीवारें, रिश्तों की सूखती ज़मीन, और आत्मीयता की मरती हुई पुकार। एक बड़ा सवाल है कि क्यों सूख रही है रिश्तों की मिट्टी? आज हम तकनीकी रूप से जितने जुड़ चुके हैं, भावनात्मक रूप से उतने ही दूर हो गए हैं। मोबाइल, सोशल मीडिया, आभासी दुनिया ने संवाद को बढ़ाया है पर संपर्क को नहीं, क्योंकि आत्मा से जुड़ाव संवाद से नहीं, संवेदना से होता है।

नयी सभ्यता और उपभोक्तावाद के इस दौर में हर रिश्ता लाभ और हानि की तुला पर तौला जाता है। यही कारण है कि वैचारिक मतभेदों से मनभेद, प्रतिस्पर्धा से विरक्ति, और स्वार्थ से संवेदनहीनता जन्म ले रही है। ऐसे समय में दोस्ती ही एकमात्र ऐसा रिश्ता है जो इन सभी दीवारों को गिरा सकता है। यह केवल ‘रिश्ता’ नहीं बल्कि एक मनःस्थिति, एक दृष्टिकोण, एक आध्यात्मिक अनुभव है। जहां यह पर्व दक्षिण अमेरिकी देशों में 20 और 30 जुलाई को मनाया जाता है, वहीं भारत, मलेशिया, बांग्लादेश जैसे देशों में यह अगस्त के पहले रविवार को धूमधाम से मनाया जाता है। युवाओं के लिए यह केवल गिफ्ट, सेल्फी और चॉकलेट तक सीमित रह गया है, जबकि इसकी मूल आत्मा है, एक-दूसरे की भावनाओं को समझना, स्वीकार करना और निभाना।

विश्व मित्रता दिवस मनाते हुए एक प्रश्न उभरता है कि दोस्ती एवं मित्रता की इतनी आदर्श स्थिति एवं महत्ता होते हुए भी आज मनुष्य-मनुष्य के बीच मैत्री भाव का इतना अभाव क्यों है? क्यों है इतना पारस्परिक दुराव? क्यों है वैचारिक वैमनस्य? क्यों मतभेद के साथ जनमता मनभेद? ज्ञानी, विवेकी, समझदार होने के बाद भी आए दिन मनुष्य क्यों लड़ता झगड़ता है। विवादों के बीच उलझा हुआ तनावग्रस्त क्यों खड़ा रहता है। न वह विवेक की आंख से देखता है, न तटस्थता और संतुलन के साथ सुनता है, न सापेक्षता से सोचता और निर्णय लेता है। यही वजह है कि वैयक्तिक रचनात्मकता समाप्त हो रही है। पारिवारिक सहयोगिता और सहभागिता की भावनाएं टूट रही हैं। सामाजिक बिखराव सामने आ रहा है। धार्मिक आस्थाएं कमजोर पड़ने लगी हैं। आदमी स्वकृत धारणाओं को पकड़े हुए शब्दों की कैद में स्वार्थों की जंजीरों की कड़ियां गिनता रह गया है। ऐसे समय में दोस्ती का बंधन रिश्तों में नयी ऊर्जा का संचार करता है।

दुनिया बदल गई, तौर-तरीके बदल गए, पर दोस्ती की आत्मा आज भी वैसी ही है, शुद्ध, निस्वार्थ और जीवनदायिनी। श्रीकृष्ण और सुदामा की पवित्र मित्रता आज भी यह सिखाती है कि सच्चे दोस्त का मूल्य धन से नहीं, हृदय की आत्मीयता से आंका जाता है। श्रीराम और विभीषण की दोस्ती यह प्रमाण है कि विचारों की भिन्नता के बावजूद दिलों का मेल मित्रता को अमर बना देता है। आज जब रिश्ते स्वार्थों की चौखट पर सिर झुका रहे हैं, तब भी दोस्ती वह रिश्ता है जो बिना किसी अपेक्षा के जीवन को अर्थ देता है। आज की क्षणिक, स्वार्थ पर टिकी दोस्तियां जब टूटती हैं तो व्यक्ति भीतर से बिखर जाता है। तभी किसी विचारक ने कहा था-पहले प्रार्थना करते थे- हे प्रभु! दुश्मनों से बचाना, अब कहना पड़ता है, हे ईश्वर! दोस्तों से बचाना।’ क्योंकि अब दोस्ती भी छल-कपट का आवरण ओढ़ चुकी है। जबकि आधुनिक समय में सच्चे मित्र सचमुच जीवन की बांसुरी में बसी आत्माओं के समान अनमोल है। मित्र वही जो जीवन के हर रंग में साथ दे, अंधेरे में दीपक की तरह और उजाले में छांव की तरह। ऐसे मित्र दुर्लभ होते हैं, लेकिन यदि जीवन में एक भी सच्चा मित्र हो तो वह संपत्ति, शक्ति और सुखों से बढ़कर होता है।

आचार्य तुलसी ने मित्रता के लिए जो सात सूत्र दिए, वे आज पहले से अधिक प्रासंगिक हैं-विश्वास, स्वार्थ-त्याग, अनासक्ति, सहिष्णुता, क्षमा, अभय और समन्वय। ये सात सूत्र दोस्ती को सतही नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान करते हैं। ये न केवल मित्रता को टिकाऊ बनाते हैं, बल्कि जीवन को भी सकारात्मक दिशा में मोड़ते हैं। दोस्ती के पांच मूलमंत्र हैं-एक-दूसरे की कमियों और अच्छाइयों को बिना शर्त स्वीकार करें। भावनाओं का सम्मान करें और समय दें। रिश्ता हल्का, सहज और मुस्कराहटों से भरपूर हो। पारदर्शिता, ईमानदारी और भरोसे को केंद्र में रखें। दोस्ती को निभाना सीखें, सिर्फ जताना नहीं। इन सूत्रों को अपनाकर हम मित्रता को सिर्फ एक दिवस की औपचारिकता नहीं, बल्कि जीवन की जीवन्तता बना सकते हैं। इसीलिये यदि आज भी कोई रिश्ता है जो समय, दूरी और मतभेद की सीमाएं लांघ सकता है, तो वह सिर्फ दोस्ती है-नवीन युग की पुरातन धरोहर।

विचार-भेद तो स्वस्थ समाज की निशानी हैं, लेकिन मन-भेद समाज को भीतर से खोखला कर देते हैं। क्रांति विचार-भेद से आती है, जबकि विद्रोह मन-भेद से। इसलिए मित्रता केवल भावनाओं की साझा ज़मीन नहीं, सामाजिक क्रांति की प्रयोगशाला भी बन सकती है। इसीलिये चलो एक बार फिर दोस्त बनें अभियान का सूत्रपात करते हुए जीवन को मुस्कान से भरे। इसके लिये मित्रता दिवस केवल एक संदेश नहीं देता, बल्कि एक पुकार है, जीवन को फिर से रंगीन, मधुर और अर्थपूर्ण बनाने की। दोस्ती का यह दिवस आमंत्रित कर रहा है अपनी ओर, बांहें फैलाये हुए, हमें बिना कुछ सोचे, ठिठके बगैर, भागकर दोस्ती की पगडंडी को पकड़ लेने के लिये। जीवन रंग-बिरंगा है, यह श्वेत है और श्याम भी। दोस्ती की यही सरगम कभी कानों में जीवनराग बनकर घुलती है तो कहीं उठता है संशय का शोर। दोस्ती को मजबूत बनाता है हमारा संकल्प, हमारी जिजीविषा, हमारी संवेदना लेकिन उसके लिये चाहिए समर्पण एवं अपनत्व की गर्माहट।

यह जीना सिखाता है, जीवन को रंग-बिरंगी शक्ल देता है। प्रेरणा देता है कि ऐसे जिओ कि खुद के पार चले जाओ। ऐसा कर सके तो हर अहसास, हर कदम और हर लम्हा खूबसूरत होगा और साथ-साथ सुन्दर हो जायेगी जिन्दगी। हेलेन केलर ने ठीक ही कहा था-“मैं उजाले में अकेले चलने के बजाय अंधेरे में एक सच्चे दोस्त के साथ चलना पसंद करूंगी।” इसलिए आइए, इस दिन एक संकल्प लें-कि हम दोस्ती को केवल सोशल मीडिया की पोस्ट नहीं, बल्कि दिल की सच्ची अनुभूति बनाएंगे। हम मित्रता को उपहारों से नहीं, समर्पण, सहयोग और संवेदना से सजायेंगे। क्योंकि दोस्ती ही वह जादुई संवेदना है जो जीवन को भीतर से रोशन करती है, और हमारे अस्तित्व को एक नई परिभाषा देती है। पुरातन काल में जहाँ मित्र धर्म निभाना जीवन-मूल्य था, आज वह धर्म हमारी संवेदनाओं की अंतिम आशा बन गया है। मित्रता अब एक दिन का उत्सव नहीं, जीवन की जरूरत है, जहाँ न कोई दायित्व होता है, न कोई बंधन, सिर्फ अपनापन होता है। चाहे युग बदले या तकनीक, दिलों की दूरी को मिटा सकने की शक्ति केवल सच्ची दोस्ती ही रखती है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »