भारतीय दिल खतरे में, एक गंभीर चुनौती की टंकार

आधुनिक युग को यदि सुविधाओं और संसाधनों का युग कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी, लेकिन इन सुविधाओं और विलासिताओं की कीमत भी समाज को चुकानी पड़ रही है। मशीनों और तकनीक ने जीवन को आसान बनाया है, परंतु इसके साथ ही ऐसी अनेक जीवनशैली-जनित बीमारियों को जन्म दिया है जो पहले दुर्लभ थीं। इन बीमारियों में सबसे बड़ी और भयावह बीमारी है-दिल का रोग। दिल की बीमारियाँ आज विश्व में असमय मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बन चुकी हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं है। हाल ही में जारी कॉजेज ऑफ डेथ इन इंडिया 2021-23 की रिपोर्ट इस खतरे की गंभीरता को और स्पष्ट करती है। पहले जहाँ माना जाता था कि हृदय रोग और दिल के दौरे बुजुर्गों की बीमारी है, वहीं अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अब 30 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में हृदयाघात से होने वाली मौतें तेजी से बढ़ रही हैं। यानी युवाओं में दिल का दौरा अब असामान्य नहीं, बल्कि आम होता जा रहा है। यह न केवल चिकित्सा जगत के लिए चिंता का विषय है बल्कि समाज और परिवार के लिए भी गहरी चिंता का कारण है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में हृदय रोगों के कारण विश्वभर में लगभग 1.8 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई। यह आंकड़ा किसी भी अन्य बीमारी से कहीं अधिक है। अकेले भारत में प्रतिवर्ष लगभग 28 प्रतिशत मौतें हृदय रोगों से होती हैं। इसका अर्थ यह है कि हर चौथा भारतीय हृदयाघात या उससे जुड़ी बीमारी का शिकार होकर अकाल मृत्यु का सामना कर रहा है। शहरी क्षेत्रों में यह दर और भी अधिक है क्योंकि वहाँ तनाव, प्रदूषण, अस्वस्थ भोजन और व्यायाम की कमी का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज्यादा है। विशेष चिंता की बात यह है कि भारत में 40 प्रतिशत से अधिक दिल के दौरे 40 वर्ष से कम आयु में आ रहे हैं। यह आंकड़ा अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों से कहीं अधिक है, जहाँ यह दर 10 से 15 प्रतिशत के बीच है। इस तथ्य से स्पष्ट है कि भारतीय युवा पीढ़ी का हृदय पहले से कहीं अधिक असुरक्षित एवं खतरे में है।
नमूना पंजीयन सर्वेक्षण के नए आंकड़े विशेषकर दिल के प्रति सजग रहने की वकालत करते हैं।

भारत में सबसे अधिक करीब 31 फीसदी मौतें दिल की बीमारियों के कारण होती हैं। यदि हम यहां पर भारत में मोटापे की राष्ट्रीय स्थिति की बात करें तो भारत में मोटापे की औसत दर लगभग 40.3 प्रतिशत है, जिसमें महिलाओं में यह दर 41.88 प्रतिशत और पुरुषों में 38.67 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में यह दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। आंकड़े बताते हैं कि पुडुचेरी, चंडीगढ़, और दिल्ली जैसे राज्यों में मोटापे की दर उच्चतम है। भारत में सबसे अधिक करीब 31 फीसदी मौतें दिल की बीमारियों के कारण होती हैं। सर्वेक्षण में यह पता चला है कि 30 से अधिक उम्र वाले लोगों में मौत की सबसे बड़ी वजह यही है। देश के 28 राज्यों और आठ केंद्रशासित क्षेत्रों में करीब 88 लाख लोगों पर किए गए इस सर्वेक्षण से यह पता लगाने की कोशिश की गई थी कि भारत में मौत की वजह क्या है और किस बीमारी से कितनी जान जा रही है? एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण मृत्यु दर में वृद्धि हुई। हालांकि, 2022 और 2023 में स्थिति में सुधार देखा गया, लेकिन महामारी के प्रभाव से उत्पन्न स्वास्थ्य संकटों का असर अभी भी महसूस किया जा रहा है।

दिल की बीमारियों की बढ़ती प्रवृत्ति को केवल चिकित्सा या आनुवंशिक कारणों से नहीं समझा जा सकता। इसके पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और जीवनशैली संबंधी कारण हैं। आज का युवा वर्ग फास्ट फूड, जंक फूड और प्रोसेस्ड भोजन पर अधिक निर्भर है। इसमें उच्च मात्रा में तेल, नमक और चीनी होती है, जो हृदय की धमनियों को अवरुद्ध कर देती है। पारंपरिक संतुलित आहार जिसमें दाल, सब्जियां, अनाज और फल शामिल थे, अब जीवन से गायब होते जा रहे हैं। आधुनिक जीवन की दौड़-भाग, नौकरी और कैरियर की अनिश्चितता, प्रतिस्पर्धा, आर्थिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाएँ युवाओं को लगातार मानसिक तनाव में रखती हैं। तनाव से हार्माेनल असंतुलन होता है और यह हृदय की धड़कन तथा रक्तचाप को प्रभावित करता है। धूम्रपान, शराब और अन्य नशे की वस्तुएँ दिल की बीमारी के सबसे बड़े कारणों में शामिल हैं। धूम्रपान से रक्त नलिकाएँ सिकुड़ जाती हैं और धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। यही स्थिति शराब और ड्रग्स से भी उत्पन्न होती है।

शहरी जीवनशैली ने युवाओं को गतिहीन बना दिया है। दिनभर दफ्तर या कंप्यूटर पर बैठकर काम करने से शारीरिक गतिविधियाँ नगण्य हो जाती हैं। मोटापा, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज इसी निष्क्रिय जीवनशैली की उपज हैं और ये तीनों मिलकर दिल की बीमारी का बड़ा खतरा पैदा करते हैं। महानगरों की हवा में जहरीले कणों की बढ़ती मात्रा भी दिल की धड़कन और श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है। अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि प्रदूषण से हृदयाघात की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। जिन परिवारों में पहले से दिल की बीमारियाँ रही हैं, उनमें यह जोखिम अधिक रहता है। लेकिन पहले केवल यही एक बड़ा कारण माना जाता था, जबकि अब जीवनशैली के कारक अधिक प्रभावी साबित हो रहे हैं। दिल की बीमारियाँ केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य की समस्या नहीं हैं, बल्कि इसके व्यापक सामाजिक और आर्थिक परिणाम हैं। जब कोई 30 या 40 वर्ष का युवा अचानक दिल का शिकार होकर मर जाता है तो उसके परिवार की आर्थिक रीढ़ टूट जाती है। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ युवाओं को सबसे बड़ी पूंजी और शक्ति माना जाता है, वहाँ उनका इस प्रकार बीमार होना राष्ट्र के भविष्य को भी खतरे में डालता है।

दिल की बीमारियों से बचाव संभव है, यदि समाज और व्यक्ति दोनों ही स्तर पर गंभीर प्रयास किए जाएँ। भोजन में ताजे फल, हरी सब्जियाँ, साबुत अनाज, दालें और कम वसा वाला भोजन शामिल किया जाए। नमक, चीनी और तैलीय भोजन का सेवन सीमित किया जाए। प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट पैदल चलना, योग, प्राणायाम और हल्की कसरत को जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। ध्यान, मेडिटेशन और समय प्रबंधन की आदतें तनाव को कम कर सकती हैं। धूम्रपान, शराब और अन्य नशों से दूर रहना हृदय को सुरक्षित रखने की सबसे बड़ी कुंजी है। ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की समय-समय पर जांच से बीमारी का प्रारंभिक चरण में पता लग सकता है। सरकार, सामाजिक संस्थाएँ और चिकित्सा जगत को मिलकर दिल की बीमारियों के प्रति जनजागरण अभियान चलाना चाहिए।

दिल की बीमारी आज ‘साइलेंट किलर’ बन चुकी है। यह अचानक प्रकट होकर जीवन को समाप्त कर देती है। लेकिन यह पूरी तरह अनियंत्रित नहीं है। यदि हम अपने जीवन में अनुशासन, संतुलन और संयम को स्थान दें, तो हृदय रोग से बड़ी हद तक बचा जा सकता है। कॉजेज ऑफ डेथ इन इंडिया 2021-23 की रिपोर्ट केवल एक चेतावनी है कि अब समय आ गया है जब समाज और व्यक्ति दोनों को इस खतरे को गंभीरता से लेना होगा। यह केवल चिकित्सकों या अस्पतालों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की अपनी जिम्मेदारी है कि वह अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिए सजग और सतर्क रहे। दिल की धड़कनें जीवन का संगीत हैं, इन्हें समय से पहले मौन होने से बचाना ही आज की सबसे बड़ी चुनौती है।

भारत की चिकित्सा स्थितियां एवं सेवाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जहां सुधर रही हैं, वहीं स्वास्थ्य-स्थितियां नई-नई चुनौतियां लेकर खड़ी हो जाती है। इसलिये चिकित्सा-स्थितियों के साथ-साथ स्वास्थ्य-स्थितियों मंे सुधार की तीव्रता से अपेक्षा है। भारत में स्वास्थ्य-क्रांति का शंखनाद हो, यह व्यक्तियों को स्वस्थ आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करें, सरकारों को स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे और संसाधनों में निवेश करने के लिए प्रेरित करें और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में लगातार सुधार करने के लिए प्रेरित करे।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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