विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। सोने के नैनोकण (Gold Nanoparticles) – वे सूक्ष्म कण, जिनकी अनूठी प्रकाशीय विशेषताएँ आधुनिक बायोसेंसर, नैदानिक उपकरण और दवा वितरण प्रणालियों की नींव रखती हैं – के व्यवहार को नियंत्रित करने का नया तरीका सामने आया है। यह खोज भविष्य में स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा तकनीकों को और अधिक विश्वसनीय व प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ी छलांग मानी जा रही है।
सोने के नैनोकण और उनकी विशेषता
सोने के नैनोकण अपनी प्रकाशीय विशेषताओं के कारण वैज्ञानिक अनुसंधानों में लंबे समय से केंद्र बिंदु बने हुए हैं। ये कण प्रकाश के साथ असाधारण तरीके से परस्पर क्रिया करते हैं। इनका रंग और प्रकाशिक प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि वे अलग-अलग हों या समूह में। जैसे ही ये एकत्रित होते हैं, उनके प्रकाशीय गुण बदल जाते हैं। यही कारण है कि उनका उपयोग बायोसेंसर और इमेजिंग तकनीकों में व्यापक रूप से होता है। हालांकि, यही गुण एक चुनौती भी है—अनियंत्रित एकत्रीकरण से प्रणालियाँ अस्थिर और अविश्वसनीय हो जाती हैं। वैज्ञानिकों का प्रमुख लक्ष्य रहा है कि इस प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाए।

भारतीय वैज्ञानिकों की खोज
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान एसएन बोस राष्ट्रीय आधारभूत विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इस चुनौती का समाधान ढूंढ निकाला है। प्रोफेसर माणिक प्रधान के नेतृत्व में कार्यरत टीम ने यह दर्शाया कि सोने के नैनोकणों के एकत्रीकरण की प्रक्रिया को विशेष अणुओं की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है।
शोध में दो अणुओं की भूमिका सामने आई—
- ग्वानिडीन हाइड्रोक्लोराइड (GdnHCl): एक शक्तिशाली लवण, जिसका प्रयोग प्रयोगशालाओं में प्रोटीन को तोड़ने के लिए किया जाता है।
- एल-ट्रिप्टोफैन (L-Trp): एक अमीनो एसिड, जो हमारे भोजन का हिस्सा है और प्रोटीन का आवश्यक घटक है। यह नींद और विश्राम से भी जुड़ा माना जाता है।
प्रयोग और निष्कर्ष
अध्ययन के दौरान जब ग्वानिडीन हाइड्रोक्लोराइड मिलाया गया, तो सोने के नैनोकण तुरंत अपना प्रतिकर्षण खो बैठे और घने समूहों में एकत्रित हो गए। लेकिन जैसे ही इसमें एल-ट्रिप्टोफैन भी शामिल किया गया, स्थिति बदल गई। घने समूहों के बजाय ढीले और शाखित नेटवर्क का निर्माण हुआ।
इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकों ने “असंतुष्ट एकत्रीकरण” नाम दिया। इसका अर्थ यह है कि नैनोकण आपस में जुड़ने का प्रयास करते हैं, लेकिन अमीनो एसिड इस जुड़ाव को सीमित कर देता है और एक खुली, संतुलित संरचना बन जाती है।
अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग
इस खोज के लिए शोधकर्ताओं ने एवेनसेंट वेव कैविटी रिंगडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (EW-CRDS) नामक अत्याधुनिक प्रकाशिक तकनीक का उपयोग किया। यह तकनीक सतहों पर होने वाली सूक्ष्म प्रक्रियाओं की अत्यंत संवेदनशील निगरानी करने में सक्षम है। इसने न केवल सोने के नैनोकणों के एकत्रीकरण की वास्तविक समय में पड़ताल की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि एल-ट्रिप्टोफैन ग्वानिडिनियम आयनों को स्थिर करता है और उनके प्रभाव को कम कर देता है। परिणामस्वरूप एकत्रीकरण की गति धीमी हो जाती है और नई संरचना का निर्माण होता है।
शोध टीम और प्रकाशन
यह महत्वपूर्ण शोध प्रोफेसर माणिक प्रधान के नेतृत्व में सौम्यदीप्ता चक्रवर्ती, डॉ. जयेता बनर्जी, इंद्रायणी पात्रा और डॉ. पुष्पेंदु बारिक की टीम द्वारा किया गया। अध्ययन के निष्कर्ष प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनालिटिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुए हैं।
संभावित प्रभाव
इस खोज का महत्व केवल नैनोविज्ञान तक सीमित नहीं है। इसके कई व्यावहारिक अनुप्रयोग हो सकते हैं—
- अधिक स्मार्ट और विश्वसनीय बायोसेंसर का विकास।
- बेहतर और सटीक नैदानिक उपकरणों की संभावना।
- दवा वितरण प्रणालियों में अधिक नियंत्रण और प्रभावशीलता।
इसके अतिरिक्त, यह अध्ययन प्रकाश और पदार्थ की परस्पर क्रिया से संबंधित मौलिक प्रश्नों का उत्तर देता है और भविष्य में नैनोविज्ञान तथा प्रकाशीय प्रौद्योगिकियों के लिए नए मार्ग प्रशस्त करता है।