युद्ध-आतंक के दौर में शांति के लिये भारत की पुकार

-अन्तर्राष्ट्रीय शांति दिवस- 21 सितम्बर, 2025-

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, जिसे प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है, आज के समय की सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता की याद दिलाता है। जब पूरी दुनिया युद्ध, हिंसा, आतंकवाद, जलवायु संकट और असमानताओं के दौर से गुजर रही हो, तब शांति का महत्व केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व का आधार बन जाता है। इतिहास गवाह है कि युद्धों ने मानव सभ्यता को केवल विनाश ही दिया है। दो विश्वयुद्धों में करोड़ों लोगों की जान गई, असंख्य परिवार उजड़ गए और सभ्यता के सपनों पर गहरी चोट लगी। आज भी यूक्रेन से लेकर सीरिया, अफगानिस्तान और अफ्रीका तक की धरती पर संघर्ष और आतंकवाद की आग धधक रही है। निर्दाेष नागरिक, महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक पीड़ा झेल रहे हैं।

शरणार्थियों की भीड़, विस्थापितों के आँसू और टूटे हुए घर-परिवार इस बात का सबूत हैं कि युद्ध और आतंकवाद किसी भी समस्या का समाधान नहीं, बल्कि और बड़ी समस्या पैदा करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना ही इसी उद्देश्य से हुई थी कि विश्व में शांति और सहयोग कायम हो। इसी क्रम में 1981 में महासभा ने 21 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस घोषित किया, ताकि पूरी दुनिया को यह याद दिलाया जा सके कि युद्धविराम, संवाद और अहिंसा ही मानव सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं। इस दिन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शांति की घंटी बजाई जाती है, जो यह प्रतीक है कि जब तक धरती पर शांति नहीं होगी, तब तक जीवन सुरक्षित नहीं हो सकता।

आज विज्ञान और तकनीक ने मानव को अभूतपूर्व शक्ति और संसाधन दिए हैं, लेकिन इसके साथ ही भय, हिंसा, तनाव और असुरक्षा भी बढ़ी है। परमाणु हथियारों की दौड़ ने धरती को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। आर्थिक असमानताएँ और संसाधनों की होड़ युद्धों और संघर्षों को जन्म दे रही हैं। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट नए विवादों एवं संकटों को जन्म दे रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस केवल एक औपचारिक अवसर नहीं, बल्कि एक चेतावनी और आह्वान है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम हिंसा और युद्ध की संस्कृति से ऊपर उठकर शांति, संवाद और सहयोग की संस्कृति को स्थापित कर सकते हैं, क्या हम धर्म, जाति और राजनीति की संकीर्णताओं से निकलकर एक वैश्विक परिवार के रूप में जी सकते हैं, क्या हम शिक्षा, करुणा और अहिंसा को अपने जीवन और समाज का आधार बना सकते हैं।

विश्व शांति की दिशा में भारत का योगदान हमेशा से उल्लेखनीय रहा है और वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार “वसुधैव कुटुंबकम्” और “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” का संदेश देकर मानवता को एक साझा परिवार के रूप में देखने की दृष्टि दी है। संयुक्त राष्ट्र और जी-20 जैसे वैश्विक मंचों पर मोदी ने संवाद, कूटनीति, अहिंसा और सहअस्तित्व को संघर्ष और युद्ध से बेहतर विकल्प बताया है। भारत के नेतृत्व में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान शांति और सतत विकास के एजेंडे को प्राथमिकता दी गई। आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक सहयोग, योग को विश्व स्तर पर शांति और मानसिक संतुलन का साधन बनाना, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के लिए “अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन” दुनियाभर विश्व अहिंसा दिवस मनाने जैसे प्रयास भी विश्व शांति को दीर्घकालिक आधार प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह मानना है कि “शांति केवल संघर्षों की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि न्याय, समानता और सहयोग की उपस्थिति है।” उनके नेतृत्व में भारत विश्व को न केवल आर्थिक और राजनीतिक सहयोग दे रहा है, बल्कि नैतिकता, अहिंसा, योग और सांस्कृतिक रूप से भी शांति की राह दिखा रहा है।

महात्मा गांधी ने कहा था-“शांति का कोई रास्ता नहीं, शांति ही रास्ता है।” गांधी का यह विचार आज और भी प्रासंगिक प्रतीत होता है। नेल्सन मंडेला ने भी कहा था-“शांति का निर्माण हथियारों से नहीं, बल्कि आपसी विश्वास और मेल-जोल से होता है।” संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस बार-बार यह चेतावनी देते रहे हैं कि “दुनिया को हथियारों की नहीं, बल्कि कूटनीति और संवाद की आवश्यकता है। शांति केवल एक आदर्श नहीं, यह सभी के जीवन और विकास का अधिकार है।” महात्मा गांधी ने जिस अहिंसा और सत्याग्रह का मार्ग दिखाया, वह आज भी वैश्विक शांति की सबसे बड़ी आशा है। स्वामी विवेकानंद ने भी विश्व धर्म महासभा में यह संदेश दिया था कि समस्त धर्म मानवता को जोड़ने के लिए हैं, बाँटने के लिए नहीं। आज संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भारत की भूमिका सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण है, भारतीय सैनिक और अधिकारी अनेक देशों में जाकर शांति स्थापना के मिशनों में सक्रिय योगदान दे रहे हैं। भारत ने न केवल सिद्धांतों से बल्कि व्यवहार में भी यह दिखाया है कि शांति उसका मूल आदर्श है। इन विचारों और योगदानों की गूंज आज के समय में हमें सचेत करती है। अगर मानवता को बचाना है तो युद्ध, आतंकवाद और हिंसा को छोड़कर केवल शांति को अपनाना होगा। जब व्यक्ति, समाज और राष्ट्र स्तर पर शांति की चेतना जागेगी तभी सभ्यता का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस हमें यही प्रेरणा देता है कि हम सहअस्तित्व, करुणा और संवाद की राह पर चलें और पूरी दुनिया को भय और हिंसा से मुक्त करके एक शांति और समरसता से भरा वैश्विक परिवार बनाएं।

संघर्ष की अग्रिम पंक्तियों पर तैनात शांति सैनिकों से लेकर समुदाय के सदस्यों और दुनिया भर के कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों तक, हर किसी की शांतिपूर्ण विश्व संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें हिंसा, नफ़रत, भेदभाव और असमानता के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी; सह-अस्तित्व का अभ्यास करना होगा; और अपनी दुनिया की विविधता को अपनाना होगा। शांति-स्थापना की कार्रवाई करने के कई तरीके हैं। समझदारी, अहिंसा और निरस्त्रीकरण की तत्काल आवश्यकता के बारे में बातचीत शुरू करें। अपने समुदाय में स्वयंसेवा करें, अपनी आवाज़ से अलग आवाज़ों को सुनें, अपने कार्यस्थल पर भेदभावपूर्ण भाषा एवं व्यवहार को चुनौती दें, ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरह से अशांति फैलाने वालों की रिपोर्ट करें, और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पहले तथ्यों की पुष्टि ज़रूर करें। आप अपनी पसंद के बारे में भी बता सकते हैं, सामाजिक रूप से जागरूक ब्रांडों से सामान खरीदने का विकल्प चुन सकते हैं, या स्थिरता और मानव अधिकारों को बढ़ावा देने वाले संगठनों को दान दे सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों को आगे बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से लड़ने, तथा संघर्ष को रोकने और उसका जवाब देने के लिए वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व करता है। वह शांति निर्माण आयोग के माध्यम से, जो 2025 में अपनी बीसवीं वर्षगांठ मना रहा है, गरीबी, असमानता, भेदभाव और अन्याय- हिंसा के सभी संभावित कारणों को दूर करने के लिए कार्य करता है। अपने 17 सतत विकास लक्ष्यों के माध्यम से , संयुक्त राष्ट्र समृद्धि बढ़ाने, स्वास्थ्य और जीवन स्तर को बेहतर बनाने, और सभी प्रकार के भेदभाव और अन्याय को समाप्त करने के देशों के प्रयासों का समर्थन करता है।

संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिक दुनिया भर में कठिन और खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं और सभी को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करते हैं। तथा हाल ही में अपनाए गए भविष्य के लिए समझौते में, संयुक्त राष्ट्र ने उभरती चुनौतियों और अवसरों – जैसे कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार का समाधान करने तथा भावी पीढ़ियों की सक्रिय भागीदारी का समर्थन करने का वादा किया है। संयुक्त राष्ट्र के एक्टनाउ अभियान ने दुनिया भर के लाखों लोगों को उन मुद्दों को चुनने, उन पर कार्रवाई करने और उनके प्रभाव को ट्रैक करने में मदद की है जो उनके लिए महत्वपूर्ण हैं। शांति स्थापना के कार्य शब्दों से अधिक जन-जीवन में जोर से गूंजें।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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