भविष्य को ‘लाइट के साथ ट्रैप’ करने की तकनीक ने अब जीव विज्ञान, चिकित्सा और नैनो विज्ञान में सीमाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। शोधकर्ताओं ने एक नया दोहरा ट्रैप ऑप्टिकल ट्वीजर सिस्टम विकसित किया है, जिससे एकल जैव-अणुओं पर बलों को अत्यंत सटीकता से मापा जा सकता है। इस आविष्कार से न केवल नैनो विज्ञान, बल्कि दवा विकास और अन्य चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्रों में नई खोजों की संभावनाओं का मार्ग खुल गया है।
ऑप्टिकल ट्वीजर तकनीक 2018 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी है। यह आधुनिक विज्ञान में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है, जिससे प्रकाश की सहायता से सूक्ष्म कणों में हेरफेर और गति करना संभव होता है। इसके माध्यम से सूक्ष्म बलों को मापना संभव है, और इसका उपयोग जीव विज्ञान, जैव अभियांत्रिकी, पदार्थ विज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में किया जाता है।

हालांकि, पारंपरिक दोहरे ट्रैप डिज़ाइन वर्तमान अनुप्रयोगों की बहुमुखी प्रतिभा की चुनौती का सामना कर रहे हैं। फंसे हुए माइक्रो-आकार के कणों के बीच परस्पर क्रिया, बायोपॉलिमर फिलामेंट्स के यांत्रिक गुण और प्रोटीन नैनोमशीनों द्वारा उत्पन्न बल पर अक्सर शोध किया जाता है। परंपरागत प्रणालियां फंसे हुए कणों से होकर गुजरने वाले प्रकाश का पता लगाने पर निर्भर होती हैं, जिससे कई सीमाएँ उत्पन्न होती हैं।
इस चुनौती का समाधान करते हुए, रमन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नई डुअल-ट्रैप ऑप्टिकल ट्वीजर प्रणाली विकसित की है। इसमें कॉन्फोकल डिटेक्शन तकनीक का उपयोग किया गया है, जिसमें प्रत्येक डिटेक्टर केवल अपने ट्रैप से वापस आने वाले प्रकाश को देखता है और अन्य सिग्नल को अनदेखा कर देता है। इस तरह दो ट्रैप से आने वाले सिग्नल एक-दूसरे में हस्तक्षेप नहीं करते और पूरी तरह स्वतंत्र रहते हैं।
पीएचडी स्कॉलर एमडी अरसलान अशरफ ने बताया कि यह प्रणाली फंसे हुए कणों की स्थिति का पता लगाने के लिए नमूने द्वारा वापस बिखेरे गए लेज़र प्रकाश का उपयोग करती है। यह तकनीक दोहरे-ट्रैप विन्यास की लंबे समय से चली आ रही बाधाओं को दूर करती है और सिग्नल हस्तक्षेप को समाप्त करती है। साथ ही, इसका एकल मॉड्यूल डिज़ाइन मानक माइक्रोस्कोपी ढांचों के साथ सहजता से एकीकृत हो जाता है।
पारंपरिक प्रणालियों में कणों की स्थिति को उनके माध्यम से गुजरने वाले प्रकाश द्वारा मापा जाता था, जिससे कई समस्याएँ उत्पन्न होती थीं। पहला, दो ट्रैप के एक साथ काम करने पर सिग्नल में व्यवधान होता था। दूसरा, इस प्रकार के व्यवधान को कम करने के लिए जटिल प्रकाशिकी या अलग-अलग लेज़रों का उपयोग करना पड़ता था, जिससे लागत और जटिलता बढ़ जाती थी। तीसरा, ट्रैप्स के हिलने पर पुनः संरेखण करना पड़ता था, जिससे प्रयोग में सटीकता कम हो जाती थी।

रमन अनुसंधान संस्थान का नया डिज़ाइन इन सभी समस्याओं का समाधान करता है। इसमें क्रॉस-टॉक नहीं होता और दोनों ट्रैप्स को स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित किया जा सकता है। तापमान परिवर्तन के बावजूद यह प्रणाली लंबे समय तक स्थिर रहती है और मौजूदा इमेजिंग तकनीकों के साथ बिना किसी संशोधन के काम करती है। कॉम्पैक्ट और मॉड्यूलर डिज़ाइन इसे किसी नियमित माइक्रोस्कोप में आसानी से जोड़ने की सुविधा देता है।
संस्थान के प्रमुख प्रमोद ए. पुल्लारकट ने कहा कि यह नया एकल मॉड्यूल ट्रैपिंग और डिटेक्शन डिज़ाइन एकल अणुओं के उच्च परिशुद्धता बल माप अध्ययन, जैविक नमूनों सहित नरम पदार्थों की जांच और कोशिकाओं जैसे जैविक नमूनों के सूक्ष्म हेरफेर को अधिक सुविधाजनक और लागत प्रभावी बनाता है।
यह डिज़ाइन बौद्धिक संपदा के दृष्टिकोण से भी अद्वितीय है। यह सिग्नल हस्तक्षेप की लगातार चुनौती को न्यूनतम करता है, सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ाता है और प्रणाली की मजबूती और एकीकरण को सुदृढ़ करता है। शोधकर्ता अब इस तकनीक को प्लग-एंड-प्ले क्षमताओं वाले मौजूदा वाणिज्यिक सूक्ष्मदर्शी के लिए एकल मॉड्यूल ऐड-ऑन उत्पाद के रूप में व्यावसायीकरण करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
इस नई खोज से भारत में नैनो विज्ञान, चिकित्सा अनुसंधान और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में संभावनाओं का विस्तार हुआ है, और यह वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होने जा रहा है।