मानसिक स्वास्थ्य है रोगमुक्त जीवन की मुस्कान

-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस- 10 अक्टूबर, 2025-

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष हमें यह सोचने का अवसर देता है कि मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका मन है, और जब मन अस्वस्थ होता है तो समूचा जीवन बिखर जाता है। इस वर्ष की थीम है संकट और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना। यह थीम प्राकृतिक आपदाओं या अन्य आपात स्थितियों के दौरान लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की जरूरतों को पूरा करने और आवश्यक सेवाएं प्रदान करने पर केंद्रित है, जो मानसिक स्वास्थ्य समर्थन तक पहुंच की बाधाओं को दूर करने और संकटग्रस्त लोगों के लिए प्रभावी सहायता तंत्र स्थापित करने के महत्व को रेखांकित करती है। आज दुनिया ऐसी परिस्थितियों से गुजर रही है जहाँ महामारी, युद्ध, आर्थिक संकट, सामाजिक अस्थिरता, बेरोजगारी और जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाएँ लगातार मनुष्य के मन पर चोट कर रही हैं। इन आपदाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य की समस्या एक मौन महामारी बन गई है। भारत में यह चुनौती और भी बड़ी है क्योंकि यहाँ मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता कम है और कलंक अधिक। मानसिक स्वास्थ्य दिवस सभी के लिए है-यह वर्ष के 365 दिन महत्वपूर्ण है, लेकिन 10 अक्टूबर दुनिया भर के सभी लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने हेतु एकजुट होने का एक अवसर है। यह सभी को अधिक समझ और सहानुभूति के माध्यम से अपने और दूसरों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस

आज का युग आभासी दुनिया का युग है। मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल साधनों ने हमारे जीवन को जितना आसान बनाया है, उतना ही जटिल भी। आभासी संबंधों ने संवाद के नए मार्ग खोले हैं, परंतु भावनाओं की सच्चाई को खोखला कर दिया है। हम हर समय आभासी दुनिया से जुड़े रहते हैं, लेकिन भीतर से अत्यंत अकेले हो गए हैं। दूसरों के सुख और सफलता के प्रदर्शन से तुलना और हीनता की भावना बढ़ती जा रही है। इस निरंतर प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन ने लोगों के मन में चिंता, अवसाद और असंतोष को गहरा कर दिया है। सोशल मीडिया का अति प्रयोग मनुष्य को कल्पना और भ्रम की दुनिया में धकेल रहा है, जहाँ असली जीवन की सादगी और आत्मीयता खोती जा रही है। युवा पीढ़ी सबसे अधिक मानसिक दबाव में है। प्रतिस्पर्धा, परीक्षा, करियर और परिवार की अपेक्षाएँ उन्हें उस स्तर तक पहुँचा रही हैं जहाँ असफलता आत्मघाती कदमों में बदलने लगी है। अनेक अध्ययन बताते हैं कि आत्महत्या करने वालों में सबसे बड़ी संख्या किशोरों और युवाओं की है। वे जीवन से नहीं, अपनी असफलता से भागना चाहते हैं, परंतु संवादहीनता, समझ की कमी और मानसिक परामर्श की अनुपलब्धता उन्हें अंधकार की ओर धकेल देती है। युवा जीवन में ऊर्जा और आशा के प्रतीक हैं, लेकिन जब उन पर अपेक्षाओं का बोझ हावी हो जाता है, तब वही ऊर्जा विनाशकारी रूप ले लेती है। परिवार और समाज को चाहिए कि वे उन्हें समझें, संवाद करें, उनके मन की सुनें, और उन्हें यह विश्वास दें कि असफलता अंत नहीं है, बल्कि आगे बढ़ने का अवसर है।

महिलाओं की स्थिति भी कम कठिन नहीं है। घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारियों, सामाजिक बंधनों और लैंगिक भेदभाव ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को गहरे रूप से प्रभावित किया है। घरेलू हिंसा, उत्पीड़न और सामाजिक असमानता की स्थितियाँ उन्हें भीतर से तोड़ देती हैं। फिर भी वे समाज की धुरी बनी रहती हैं। उन्हें मानसिक रूप से सशक्त बनाना, उनके लिए सुरक्षित वातावरण और परामर्श की सुविधाएँ उपलब्ध कराना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। जब महिलाएँ स्वस्थ और संतुलित मन से कार्य करेंगी, तभी समाज स्वस्थ दिशा में आगे बढ़ सकेगा। इसी तरह वृद्धों का जीवन भी मानसिक स्वास्थ्य के मामले में अधिक जटिल होता जा रहा है। आत्महत्या की बढ़ती घटनाएँ एक चेतावनी हैं कि हम किसी बड़ी भूल के शिकार हैं। यह केवल व्यक्ति की समस्या नहीं, बल्कि पूरे समाज का दर्पण है। जब कोई व्यक्ति यह मानने लगता है कि अब उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं बचा, तब उसकी आत्मा में आशा का दीप बुझ जाता है। उसे बचाने के लिए आवश्यक है कि हम उसके पास जाएँ, उसकी बात सुनें, उसे यह एहसास दिलाएँ कि वह अकेला नहीं है। समाज, परिवार, शिक्षण संस्थान और सरकार सभी को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना होगा जहाँ निराश व्यक्ति के लिए तुरंत सहायता उपलब्ध हो। मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ गाँव-गाँव तक पहुँचें, स्कूलों और कार्यस्थलों में परामर्श केंद्र स्थापित हों, यह समय की पुकार है।

नशा मानसिक अस्वास्थ्य का सबसे बड़ा सहचर बन चुका है। शराब, तंबाकू, मादक पदार्थ, यहाँ तक कि दवाओं के दुरुपयोग ने मनुष्य की चेतना को कुंद कर दिया है। नशा अस्थायी आनंद देता है, परंतु दीर्घकालिक विनाश का कारण बनता है। यह व्यक्ति की आत्मनियंत्रण शक्ति को नष्ट कर देता है, निर्णय क्षमता को कमजोर करता है और अवसाद तथा आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ाता है। नशे की लत से ग्रस्त व्यक्ति समाज से कट जाता है और उसकी आत्मा में एक गहरा शून्य भर जाता है। इस समस्या का समाधान केवल दंड से नहीं, बल्कि संवेदनशील पुनर्वास और मानसिक परामर्श से संभव है। समाज को नशे के दुष्प्रभावों के प्रति शिक्षित करना और युवाओं को इसके जाल से बचाना हर घर की जिम्मेदारी होनी चाहिए। मानसिक अस्वस्थता से जूझ रहे व्यक्ति को सबसे पहले आवश्यकता होती है आशा की। निराशा की अंधेरी सुरंग में यदि कोई हाथ थाम ले, यदि कोई मुस्कान दे दे, यदि कोई कह दे कि सब ठीक हो जाएगा, तो वही वाक्य जीवनदान बन सकता है। आत्महत्या की रोकथाम का आरंभ संवेदनशील संवाद से होता है। हमें अपने बच्चों, मित्रों, सहकर्मियों और परिवारजनों से यह रिश्ता बनाना होगा कि वे अपने मन की बात कह सकें, बिना किसी भय या लज्जा के।

आज  का हर व्यक्ति तनावग्रस्त है। तनाव उनको होता है, जो निरंतर मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति में लगे रहते हैं, विश्राम नहीं करते। यानी कि आज की भाषा में जो ‘बिजी’ रहते हैं। बिजी रहने की इस आदत ने जीवन में बहुत टेंशन पैदा किए हैं। जीवन में बिजी के साथ ईजी होना जरूरी है क्योंकि एक पहिए से रथ नहीं चलता। उसके लिए दोनों पहिए चाहिए। ज्ञान और ध्यान, काम और आराम- ये जीवन रूपी रथ के दो पहिए हैं। एक पहिए को निकाल देंगे तो रथ नहीं चलेगा। आज यही तो समस्या है और यही मानसिक अस्वास्थ्य की जड़ है। जीवन को एकांगी बनाया जा रहा है। इससे बहुत भारी समस्याएं पैदा हो रही हैं। मन की चंचलता का तो ज्यादा से ज्यादा इंतजाम किया जा रहा है, पर उसे स्थिर बनाने का कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। समस्या स्थिरता में नहीं, चंचलता में होती है। बाहर का खोल जितना भी मजबूत हो, भीतर को साधे बिना चंचलता कम नहीं होती। ये भीतर की गांठें देर-सबेर उलझा ही देती हैं। आज आवश्यकता है कि हम मानसिक स्वास्थ्य को विलासिता नहीं, बल्कि आवश्यकता समझें। शरीर की बीमारी के लिए जैसे हम डॉक्टर के पास जाते हैं, वैसे ही मन की पीड़ा के लिए भी विशेषज्ञ सहायता लेना सामान्य बने। मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को विद्यालयों में जोड़ा जाए, परामर्श केंद्रों को सशक्त किया जाए, और हर नागरिक को यह संदेश दिया जाए कि सहायता लेना कमजोरी नहीं, बल्कि साहस का प्रतीक है।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि चेतना का पर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि स्वस्थ मन ही स्वस्थ समाज का आधार है। हमें निराशा से आशा की ओर, अकेलेपन से अपनत्व की ओर और अस्वस्थता से संतुलन की ओर बढ़ना है। मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत उसका मन है, और जब मन शांत, स्थिर और प्रसन्न होगा, तभी जीवन भी सुंदर होगा। इसलिए आइए, हम सभी मिलकर यह संकल्प लें कि हम अपने और दूसरों के मन की सेहत का ध्यान रखेंगे, संवाद करेंगे, सहयोग करेंगे और हर उस व्यक्ति के लिए आशा का दीप जलाएँगे जो अंधेरे में भटक रहा है। यही इस दिवस का सच्चा संदेश और जीवन का शाश्वत सार है।

ललित गर्ग लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ललित गर्ग लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »