अभी भी बालिकाओं के उत्थान के लिए बहुत काम शेष

-अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस-

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस हर वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, समाज में उनकी स्थिति को सशक्त बनाना एवं उनके सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करना है। यह दिन हमें स्मरण कराता है कि बालिकाओं के विकास और सुरक्षा के बिना समाज की समग्र प्रगति संभव नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2011 में 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस घोषित किया था। इसकी शुरुआत बीजिंग महिला सम्मेलन 1995 से जुड़ी है, जहाँ नारी अधिकारों की आवाज बुलंद हुई। पहली बार यह दिवस 2012 में मनाया गया था। इस दिन का मुख्य उद्देश्य समाज में बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए लैंगिक भेदभाव और हिंसा के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस

चूंकि आज भी बालिकाओं के जन्म और शिक्षा दीक्षा लालन पालन पर बहुत कम करने शेष रह गए हैं। आज भी विश्व के कई हिस्सों में लाखों बालिकाएं शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। कई बार उन्हें बोझ समझा जाता है या उन पर सामाजिक और पारिवारिक बंधन लाद दिए जाते हैं। यह दिवस समाज को सजग करता है कि बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें समान अवसर देना अत्यंत आवश्यक है।

इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 2025 की थीम भी यही है- “मैं वह लड़की हूँ, जो परिवर्तन की अगुवाई करती है, संकट के मोर्चे पर लड़कियाँ”। इस थीम का मुख्य फोकस उन परिस्थितियों पर है जिनका सामना बालिकाओं को करना पड़ता है और उनकी दृढ़ता, नेतृत्व तथा मजबूत आवाज़ों पर है, जो मानवीय, सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों के खिलाफ खड़ी होती हैं। यह थीम बालिकाओं को केवल शिकार नहीं, बल्कि संकटों के बीच परिवर्तन के वाहक के रूप में पहचानने पर जोर देती है। इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और सशक्तिकरण में निवेश के महत्व को भी रेखांकित किया गया है ताकि वे एक बेहतर और समावेशी दुनिया का निर्माण कर सकें।

देशभर में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 2025 पूरे उत्साह और जागरूकता के साथ 11 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस दिन स्कूल-कॉलेजों, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा जागरूकता कार्यक्रम, वर्कशॉप, सेमिनार, अभियानों का आयोजन किया जाता है। ‘एजुकेट अ गर्ल’, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी मुहिमों को बल मिलता है तो वंही सामाजिक मीडिया पर बालिकाओं की उपलब्धियाँ और सशक्तिकरण की कहानियाँ साझा की जाती हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में भी बेटियों के प्रति सकारात्मक संदेश फैलाने हेतु जनजागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।

 यह दिवस भारत में बालिकाओं के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।बालिकाओं की शिक्षा के लिए अधिक स्कूलों का निर्माण, छात्रवृत्ति योजनाएं, जागरूकता अभियानों का विस्तार, और बालिकाओं के लिए सुरक्षित तथा सुविधाजनक परिवहन व्यवस्था का प्रावधान आवश्यक है।परिवारों और समाज में बालिका शिक्षा तथा सशक्तिकरण की महत्ता के प्रति जागरूकता बढ़ाकर लैंगिक भेदभाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए मीडिया, शैक्षिक संस्थान और समुदाय स्तर पर अभियान चलाने होंगे।

बाल विवाह घरेलू हिंसा और अन्य कुरीतियों के खिलाफ सख्त कानून कानूनों का क्रियान्वयन आवश्यक है। साथ ही, बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी व्यवस्था बनानी होगी।बालिकाओं के लिए उचित स्वास्थ्य सेवाएं, टीकाकरण, पोषण सुधार कार्यक्रम और साफ-सफाई की बेहतर व्यवस्था करनी होगी, खासकर ग्रामीण इलाकों में अभी इस दिशा में बहुत काम बाकी है।

डिजिटल साक्षरता के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने होंगे ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। इन प्रयासों से भारत में बालिकाओं की स्थिति में सुधार होगा और वे समाज की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगी। बालिका सशक्तिकरण ही राष्ट्र के समुचित विकास की कुंजी है।

ऐसे नीतिगत बदलाव से बालिका शिक्षा में सुधार के प्रबल संभावना होगी जैसे बालिकाओं हेतु छात्रवृत्ति एवं आर्थिक सहायता का विस्तार बालिकाओं को शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर छात्रवृत्ति और अनुदान उपलब्ध कराना, जैसे कि केंद्र सरकार की राष्ट्रीय बालिका इंसेंटिव योजना में माध्यमिक शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति दी जाती है। इससे गरीब और सशक्त मॉनिटरिंग और समन्वय प्रणाली शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय और निगरानी सुनिश्चित करें ताकि बालिकाओं के नामांकन, उपस्थिति, पोषण और स्वास्थ्य संबंधित पहलों का प्रभावी क्रियान्वयन हो सके। इसके लिए डिजिटल आधारित डाटा मॉनिटरिंग महत्वपूर्ण है। लैंगिक भेदभाव समाप्त करने वाले पाठ्यक्रम एवं वर्कशॉप विद्यालयों में लैंगिक समानता और लड़कियों के अधिकारों पर आधारित जागरूकता कार्यक्रम चलाना, और शिक्षकों को इसी दिशा में प्रशिक्षित करना जरूरी है, जिससे बालिकाओं को समान अधिकार दिए जाएं और लैंगिक पूर्वाग्रह कम हों। 

सुविधाजनक और सुरक्षित स्कूल वातावरण बालिकाओं के लिए सुरक्षित परिवहन, स्वच्छलिंग, निःशुल्क एवं सहज पहुंच वाली स्कूल व्यवस्था और बालिकाओं के लिए महिला शिक्षक विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाना आवश्यक है।सामाजिक जागरूकता अभियान बाल विवाह, बाल श्रम जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ मजबूत कानून और उनके प्रति जन जागरूकता बढ़ाना ताकि परिवार बालिकाओं की शिक्षा पर ध्यान देने के लिए प्रेरित हों।तकनीकी एवं कौशल शिक्षा पर प्रोत्साहन बालिकाओं को तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास के लिए विशेष छात्रवृत्ति, ट्रेनिंग एवं शिक्षा प्रोत्साहन योजना में शामिल करना चाहिए।

‌गरीब एवं पिछड़े वर्ग के लिए विशेष योजनाएं कस्तूरबा गांधी आवासीय बाल विद्यालय जैसी योजनाएं जिनके माध्यम से अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग की लड़कियों को शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाते हैं।

इन नीतिगत बदलावों से न केवल बालिकाओं का नामांकन बढ़ेगा बल्कि उनकी शिक्षा की गुणवत्ता और निरंतरता भी सुनिश्चित होगी, जिससे बालिका शिक्षा में तेजी आएगी और लड़कियां सशक्त बनेंगी।अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस बालिकाओं के अधिकार, समानता और सशक्तिकरण का संदेश देता है। यदि बेटियों को पूरा मौका मिले, तो वे हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं। यह सामाजिक जिम्मेदारी है कि बेटियों को शिक्षित, सुरक्षित और समर्थ बनाएं, तभी एक सशक्त समाज की कल्पना पूरी हो सकती है।

“सच कहूं तो सृजन का आधार है बेटियां, 
फिर भी न जाने आज क्यों लाचार है बेटियां।
किसी की मुस्कुराहट, किसी का प्यार है बेटियां,
मुसीबतों से लड़ती हैं, दीवार हैं बेटियां। 
जिस घर में पांव रखकर करती हैं गृह प्रवेश, 
लक्ष्मी बनकर उस घर को बढ़ाती हैं बेटियां। 
फिर भी न जाने क्यूं जन्म से पहले, 
कोख में ही मार दी जाती हैं बेटियां।।”

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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