सिक्स-पॉकेट सिंड्रोम कोई चिकित्सा या आनुवंशिक विकार नहीं है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक व सामाजिक स्थिति है, जिसके लिए हिंदी में कोई आधिकारिक शब्द नहीं है। यह सिंड्रोम एक परवरिश संबंधी विकृति है जिसमें बच्चे को छह वयस्कों (दादा-दादी, माता-पिता व नाना-नानी) से अत्यधिक लाड़-प्यार व ध्यान मिलता है, जिससे उनमें हकदारी की अत्यधिक भावना, अहंकार व निराशा को सहन न कर पाने जैसे लक्षण विकसित होते हैं। इस सिंड्रोम का मूल चीन की ‘एक-बच्चा नीति’ में निहित है तथा दुनिया भर में एकल बच्चों के पालन-पोषण के तरीके से जुड़ा है।

बच्चा परिवार का केंद्र बन जाता है सभी वयस्क बच्चे की हर मांग को पूरा करने की कोशिश करते हैं। चीन में इसे ‘Little Emperor Syndrome’ (‘छोटे सम्राट का सिंड्रोम’) कहा जाता है। भारत में भी बढ़ती संपन्नता, छोटे परिवार का चलन व महत्वाकांक्षी पालन-पोषण ने ऐसी ही स्थितियां पैदा कर रहीं हैं। आजकल एक या दो बच्चे होने पर माता पिता, दादा-दादी, नाना-नानी (6 पाँकेट) सारा दुलार एक बच्चे पर ही लुटाते हैं।
लक्षण
- अत्यधिक निर्भरता: बच्चे छोटे-छोटे कामों जैसे अपना बैग उठाना या जूते पहनना, पेंसिल रबर लेना के लिए भी दूसरों पर निर्भर होते हैं।
- धैर्य की कमी: इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे में धैर्य बिल्कुल नहीं होता, किसी भी चीज़ का इंतज़ार नहीं कर पाते और अपनी हर इच्छा तुरंत पूरा करवाना चाहते हैं।
- साझा करने में समस्या: अपनी चीज़ें दूसरों को नहीं देना चाहते हैं।
- तीव्र निराश: जब चीज़ें उनकी इच्छा के अनुसार नहीं होतीं तो वे जल्दी व अत्यधिक गुस्सा हो जाते हैं या रोते हैं।
- प्रशंसा की तीव्र इच्छा: ऐसे बच्चों को हर काम के लिए प्रशंसा की ज़रूरत होती है।
- कम सहनशीलता: बच्चा अस्वीकृति, इनकार या आलोचना को सहन नहीं कर पाता है। ऐसे बच्चे असफलता और सहपाठियों के दबाव का सामना करने के दौरान स्वायत्तता एवं मानसिक दृढ़ता के साथ संघर्ष करता है।
- पुरस्कार मांगने का व्यवहार: वे प्यार को भौतिक पुरस्कार से जोड़ते हैं व तत्काल संतोष की उम्मीद करते हैं।
- भावनात्मक अपरिपक्वता: धैर्य, सहानुभूति व आत्म-नियंत्रण की क्षमता कम होती है।
अन्य:
- बच्चे वरिष्ठजनो व सामाजिक शिष्टाचार के प्रति कम सम्मान दिखाना
- संप्रेषण व व्यवहार में अनौपचारिकता एवं अपमानजनकता अधिक होना
- अत्यधिक संरक्षण और सोशल मीडिया पर लगातार तुलना किये जाने से भावनात्मक अनुकूलन का कमज़ोर होना
- स्वतंत्र रूप से समस्याओं को हल करने की अक्षमता
- आलोचनात्मक रूप से सोचने की क्षमता में कमी
- अहंकारी व्यवहार संबंधों में तनाव पैदा करता है तथा दीर्घकाल में आक्रामकता, नशीली दवाओं के उपयोग व मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ बढ़ाता है
कारण
- परिवार के सभी सदस्यों जैसे कि माता-पिता, दादा-दादी व नाना – नानी का बच्चे पर अत्यधिक ध्यान व लाड – प्यार देना
- बच्चे के हर मांग को पूरा करना
- उनके हर इच्छा को तुरंत पूरा करना
- अधिक लाड़-प्यार के कारण बच्चे को एहसास होता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं, उनके लिए कोई सीमा नहीं है
- संयुक्त परिवारों के चलन का कम होना और एक ही बच्चे का होना
- आर्थिक संपन्नता के कारण बच्चे पर अधिक पैसा खर्च करना
- शहरी क्षेत्रों में एकांकी परिवारों का चलन अधिक होना
बचाव और प्रबंधन
- बच्चों की आवश्यकताओं को तार्किक ढंग से पूरा करें
- बच्चों के पालन पोषण में लाड प्यार के साथ पुरस्कार व दंड का समुचित प्रयोग करें
- बच्चों को अपनी कुछ जिम्मेदारियां खुद लेने के लिए प्रोत्साहित करें
- उन्हें ‘ना’ भी बोलें
- निराशापूर्ण स्थितियों का सामना उन्हें खुद करने दें
- सीमाएं निर्धारित करें और उनका पालन खुद भी करें और बच्चे से भी कराऐं
- अनावश्यक प्रशंसा के बजाय उनके अच्छे प्रयास और अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करें
- ऐसे बच्चों को यह समझाने की जरूरत होती है कि सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं। उनकी कुछ ताकत व कुछ कमजोरियां होती हैं
- बच्चों को पॉकेट मनी के नाम पर ज्यादा पैसे और आजादी न दें ऐसा करने से बच्चे जिद्दी बनते हैं
- बच्चों को दूसरों की सुनने की आदत डालें
- गलती करने पर बच्चे को उसका अहसास करवाऐं व माफी मांगना सिखाएं
- बच्चों को खास सुविधाएँ तभी दें, जब वे अपना कार्य संपन्न करें। इससे ‘मुझे इनाम मिलना ही चाहिये’ जैसी मानसिकता से बचाव किया जा सकता है
- सहानुभूति, सहयोग व नागरिक उत्तरदायित्व सिखाने के लिये उनकी उम्र व योग्यता के अनुसार कार्य दें
- सामूहिक गतिविधियाँ व सामुदायिक सहभागिता का अवसर दें जो सामाजिक उत्तरदायित्व और सामाजिक मूल्यों के विकास में सहायक होता है
- संयुक्त परिवार का सहयोग अनुशासन को मज़बूत करने में सहायक होता है
- ऑनलाइन गतिविधि व सोशल के मीडिया उपयोग की निगरानी करें
सिक्स पॉकेट सिंड्रोम एक परवरिश संबंधी विकृति है जिसे परिवार के सदस्यों के सहयोग से दूर किया जा सकता है। आवश्यक होने पर मनोवैज्ञानिक परामर्श व सहयोग से इसे आसानी से दूर किया जा सकता है।
