काशी में जारी काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत आयोजित विशेष भाषा प्रशिक्षण सत्र ने उत्तर और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक सेतु को और मजबूत किया। “तमिल करकलाम” शीर्षक के साथ आयोजित इस सत्र में सैनिटरी वर्कर्स, छात्रों और एनसीसी कैडेट्स को एफएलएन मॉडल पर आधारित तमिल भाषा शिक्षण प्रदान किया गया। इस पहल का उद्देश्य प्रतिभागियों को तमिल भाषा की मूल संरचना से परिचित कराना, दैनिक संवाद में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का उपयोग सिखाना और भाषा सीखने की सरल तकनीकों से अवगत कराना था।

दृश्य-आधारित शिक्षण के माध्यम से सरल भाषा प्रशिक्षण
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों को तमिल अभिवादन, संख्याएँ, शरीर के अंग, सरल वाक्य संरचना और दैनिक जीवन में बोले जाने वाले तमिल संवाद सिखाए गए। एफएलएन मॉडल के अनुरूप फ्लैशकार्ड, दृश्य चार्ट, संवाद अभ्यास और सरल शब्दावली के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया को सहज, रोचक और व्यावहारिक रूप दिया गया। विशेष रूप से इस प्रशिक्षण में तमिल लिपि की प्रारंभिक पहचान कराते हुए उच्चारण शैली और बोलने की प्रवाहशीलता पर जोर दिया गया।
आवश्यकताओं के अनुसार वर्गीकृत भाषा सामग्री
इस प्रशिक्षण की विशेषता यह रही कि प्रतिभागियों के समूहों के अनुसार विशिष्ट सामग्री का निर्माण और उपयोग किया गया।
- सैनिटरी वर्कर्स के लिए: सफाई से संबंधित शब्दावली, निर्देशों के संक्षिप्त रूप और संवाद शैली पर केंद्रित अभ्यास सिखाया गया, ताकि कार्यस्थल पर संवाद प्रभावी हो सके।
- छात्रों के लिए: भाषा की मूल संरचना, प्रारंभिक क्रियाओं, शब्द संयोजन और सामान्य वार्तालाप को समझाने के लिए गतिविधि-आधारित प्रशिक्षण दिया गया।
- एनसीसी कैडेट्स के लिए: अनुशासन, कमांड, टीमवर्क और सेना संबंधी अभिव्यक्तियों का अभ्यास कराया गया, जिससे प्रशिक्षण के दौरान भाषाई दक्षता का समावेश हो सके।
भाषाई दक्षता के साथ सांस्कृतिक सेतु निर्माण
प्रतिभागियों ने भाषाई प्रशिक्षण को उपयोगी और प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि इस पहल ने भाषा को केवल अध्ययन का विषय न रहकर संस्कृति की पहचान, संवेदना और सम्प्रेषण का माध्यम बना दिया है। काशी तमिल संगमम् द्वारा किया गया यह प्रयास भाषा सीखने को सहज बनाने के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक संवाद को सुदृढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।
प्रतिभागियों ने यह भी कहा कि इस प्रकार का प्रशिक्षण विविध भाषाओं और समाजों के बीच निकटता का अनुभव कराता है, जो “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की उस परिकल्पना को साकार करता है, जहां भाषाएं पुल की तरह दो संस्कृतियों को जोड़ती हैं। काशी में आयोजित यह सत्र न केवल भाषा दक्षता बढ़ाने का माध्यम बना, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक एकता के मूल्य को भी व्यवहारिक रूप से स्थापित करने का उदाहरण प्रस्तुत किया।