अक्सर इस बात को नज़रंदाज़ किया जाता है लेकिन आप जिस दफ्तर में दिन रात काम कर रहे हैं वहां के माहौल और रहन सहन का मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के सेहत पर बहुत असर पड़ता है, क्योंकि दफ्तर में दिन के 24 घंटों में से कम से कम 8 घंटे सामान्य तौर पर दफ्तरों में गुज़रते हैं, जो कि जीवनशैली का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं। सामान्य तौर पर पूरा दिन दफ्तर में लगातार बैठे बैठे काम करना फिर कैब या वाहन आदि में बैठकर घर आना और थककर खाकर सोजना और अगले दिन फिर इसी दिनचर्या का अनुसरण करना।
यही जीवनशैली दिनों वर्षों चलती है जिसका परिणाम कई तरह की बीमारियों और मानसिक तनाव में निकलता है। इस सन्दर्भ में महिलाओं की स्थिति और भी खराब है। इसी कड़ी में एक अन्य अध्ययन के अनुसार 63 फ़ीसदी भारतीय कर्मचारी मोटापे के शिकार हैं।
इसके अलावा एक अध्ययन के अनुसार इंडिया इंक का हर 5 में से एक कर्मचारी “वर्कप्लेस डिप्रेशन’ से जूझ रहा है। अब आखिर यह “वर्कप्लेस डिप्रेशन” है क्या? काम का दबाव, दफ्तरों का माहौल, घर और दफ्तर के बीच की ज़िन्दगी का ताना बाना, ये तमाम ऐसे कारक हैं जिनसे यह “वर्कप्लेस डिप्रेशन” होता है, और जिनपर व्यापक रूप से विमर्श की ज़रूरत है।
काम के तमाम दबाव के बावजूद अपनी शारीरिक सेहत को संतुलित करके रखा जाय इसपर सलाह दे रहे हैं डॉक्टर आनंद पाण्डेय, डायरेक्टर एंड सीनियर कंसल्टेंट, कार्डियोलॉजी, धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशेलिटी अस्पताल:-
सबसे पहले एक पेशेवर या प्रोफेशनल की ज़िन्दगी में लैपटॉप और एंड्राइड फ़ोन के इस्तेमाल का महत्त्व नहीं नाकारा जा सकता। लगातार एक ही पोश्चर में बैठे रहना और काम करना, और फिर अचानक भूख लगने पर या कहें तलब लगने पर खूब सारा फ़ास्ट फ़ूड अचानक खा लेना मोटापे और हृदयरोग की और लेजाता है।
ऐसे में कुछ ऐसे नियम हैं जिनका पालन करके इन समस्याओं के जोखिम को रोका जा सकता है:-
नियमित व्यायाम की डालें आदत:- अक्सर काम का हवाला देकर बहुत से युवा व्यायाम और अन्य फिजिकल एक्टिविटीज की ज़रूरत को नज़रंदाज़ करते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि स्वस्थ शरीर के लिए खान पान के साथ साथ शारीरिक व्यायाम का भी उतना ही महत्त्व है, फिर चाहे आप किसी भी आर्गेनाईजेशन में कार्यरत हों। शारीरिक व्यायाम रक्तचाप सामान्य रखते हैं, शरीर में अतिरिक्त फैट को निकलाते हैं, इम्युनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं। ऐसे में यदि काम के अत्याधिक तनाव से जूझ रहे हैं तो :-
● योग आदि में कई तरह के ऐसे हल्के व्यायाम हैं जिनको आसानी से किया जा सकता है, किसी पेशेवर की सलाह लेकर इनको नियमित करें।
● अपने किसी मनपसन्द खेल को धीरे धीरे अपनी जीवनशैली में जगह दें। क्योंकि ये न केवल आपकी शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा बल्कि इससे तनाव दूर रखने में भी मदद मिलेगी।
● पेशेवर की सलाह से वीकेंड पर और छुट्टियों में कोई फिटनेस कोर्स ज्वाइन करें।
कम कम मात्रा में कम कम अंतराल में खाएं:- दफ्तरों के अक्सर कर्मचारी शिकायत करते हैं कि वे अपने स्वाद और खाने की तलब पर नियंत्रण या कंट्रोल नहीं कर पाते और खूब सारा खा लेते हैं जिसका परिणाम मोटापे में निकलता है। दरअसल इसके कई कारणों में से एक है काम को समर्पित समय में लंबे समय तक कुछ नहीं खाना और फिर अचानक स्वाद स्वाद में खूब सारा फ़ास्ट फ़ूड खा लेना। ऐसे में थोड़े थोड़े अंतराल में फल, सलाद आदि खाने की आदत डालें इससे अचानक भूक लगना और खूब सारा खा लेने की प्रवृति पर नियंत्रण होगा और निश्चित पोषण भी शरीर को मिलेगा साथ ही ऑफिस की कैंटीन आदि से जूस और “रॉ फ़ूड” खाने पर अधिक ध्यान दें।
लैपटॉप पर बेड पर नहीं कुर्सी टेबल पर करें:- व्यस्त कर्मचारी अक्सर बहुत से कारणों से दफ्तर का काम घर पर भी लाते हैं ऐसे में लैपटॉप पर यदि काम करना हो तो तो बेड के बजाय टेबल कुर्सी पर बैठकर करें।
दफ्तर में भी बीच बीच में ब्रेक लेकर थोड़ा टहलें फिर वापस और अधिक ऊर्जा के साथ मुस्तैदी से काम पर लग जाएँ। दफ्तर के माहौल का व्यक्ति के मानसिक सेहत के साथ साथ संपूर्ण व्यक्तिव पर पड़ता है ऐसे में इस तनावपूर्ण स्थिति से कैसे लड़ा जाए इसकी सलाह दे रहे हैं डॉक्टर मृणमय कुमार दास, सीनियर कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ़ बिहेवियरल साइंसेज, जेपी अस्पताल, नोएडा:-
दफ्तर के कर्मचारियों को मानसिक सेहत की कड़ी में किसी भी तरह की बचाव की सलाह का अनुसरण करने से पहले इस बात को समझना ज़रूरी है कि यदि कोई भी कर्मचारी:-
● काम के दबाव की वजह से को ज़रूरत से ज्यादा तनाव में आ रहे हैं,
● अनचाही प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं जैसे तैश में आजाना, बेहद गुस्सा हो जाना, घर परिवार के या मित्रों के साथ बिना वजह झगड़ा कर बैठना,
● समय पर नींद न आना या नींद ही आते रहना,
जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो बिना किसी हिचक मनोचिकित्सक से परामर्श लें, क्योंकि ये लक्ष्ण सामान्य माने जाते हैं जो कि बहुत गलत है जबकि ये चेतावनी हैं आने वाले मानसिक रोगों की जिसकी डॉक्टर की मदद से समय पर रोकथाम ज़रूरी है।
ज़रूरत अनुसार छुट्टी लें:- दफ्तर के काम में छुट्टियां ऐसा हिस्सा है जिसकी अक्सर कीमत नज़रंदाज़ की जाती है, साथ ही माना जाता है कि काम को छुट्टियों में मिलने वाला समय देकर ये कर्मचारी काम की गुणवत्ता बढ़ा रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यही छुट्टियां आपको दोबारा तरोताजा करतीं हैं ताकि आप दोबारा से काम पर और भी ऊर्जा से अपने काम में अच्छे परिणाम दें।
व्यवहारिक एप्रोच:- मानसिक स्वास्थ्य बहुत हद तक व्यवहारिक दृष्टिकोण या नजरिया है, यही बात दिन रात मुस्तैदी से दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों को भी अपनानी चाहिए। दफ्तर में हर तरह के लोग होते हैं, अक्सर किसी किसी कर्मचारी के बॉस, सहकर्मी आदि भी काम में तनाव की स्थिति उत्पन्न करते हैं जिसके चलते अतिरिक्त तनाव होता है। लेकिन हर समस्या का व्यावहारिक समाधान निकालें,
● अपने सहकर्मियों के साथ संवाद करें, दफ्तर का माहौल खुशनुमा बनाकर रखें।
● किसी भी तरह के नैतिक रूप से गलत व्यवहार को नज़रंदाज़ न करें, बेझिझक ऑफिस की इससे संबंधित इंटरनल कमिटी की मदद लें, शिकायत करें और मामला अपराधिक होने पर पुलिस की भी मदद लें।
● अपनी लाजिम समस्याएं बेझिझक रखें और काम में अपना बेस्ट देते चलें।
याद रखें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही अपने परिवार मित्रों और दफ्तर में अच्छे परिणाम दे सकता है, अतिरिक्त तनाव लेकर किया गया काम रोगों की और लेकर जायेगा जिसके साथ किसी भी तरह की तरक्की का कोई मोल नहीं।