हेपेटाइटिस-सबसे अधिक बरसात में प्रभावित करता है

हेपेटाइटिस

बारिश के मौसम में कई बीमारियां होने ही संभावनाएं होती हैं। जिसमें से हेपेटाइटिस सबसे चर्चित और खतरनाक बीमारी है। यह एक वायरसजनित रोग है, जो आपके लीवर को नुकसान पहुँचाता है। अंतिम स्टेज में हेपेटाइटिस लीवर सिरोसिज और लीवर कैंसर का कारण भी बनता है। हेपेटाइटिस को एड्स से भी ज्यादा घातक रोग माना जाता है। आश्चर्यजनक रूप से हेपेटाइटिस से मरने वालों की संख्या एड्स से मरने वालों की तुलना में दस गुना अधिाक बताई गई है। भारत में हेपेटाइटिस के टीके उपलब्ध होने के बावजूद हर साल दो लाख से ज्यादा लोग हेपेटाइटिस की वजह से मरते हैं।

हेपेटाइटिस के प्रकार:

हेपेटाइटिस मूल रूप से चार प्रकार का होता है- ए, बी, सी, ई। भारत की बात करें तो यहां हेपेटाइटिस के सभी रूप मिलते हैं। हेपेटाइटिस डी डेल्टा वायरस है, जो बी के साथ ही मिलता है। हेपेटाइटिस ए और ई का संक्रमण प्रदूषित खाद्य पदार्थों और दूषित पानी पीने से होता है। साफ़-सफ़ाई से न रहने और कोई खाद्य पदार्थ को खाने से पहले कीटाणुनाशक साबुन से हाथ न धाोने से इस रोग के जोखिम बढ़ जाते हैं।

वहीं हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण कई कारणों से रक्त के जरिये होता है। जैसे सुई से लगी चोट, इंजेक्शन द्वारा ड्रग लेना और कई कारणों से हेपेटाइटिस से संक्रमित किसी व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आना। इसके अलावा टैटू गुदवाना, किसी संक्रमित व्यक्ति का टूथब्रश और रेजर इस्तेमाल करना और असुरक्षित यौन संपर्क से भी हेपेटाइटिस के इन दोनों प्रकारों के होने का जोखिम बढ़ जाता है।

बरसात में प्रभावित करने वाला हेपेटाइटिस

हेपेटाइटिस ए वायरल संक्रमण है, जो बारिज के कारण हुए संक्रमित खाने अथवा पानी से होता है। यह हमारे लीवर को प्रभावित करता है। सामान्यतः यह बीमारी दूषित आहार व दूषित पानी के सेवन से होती है। वही हेपेटाइटिस ‘ई’ बीमारी वैसे तो साल भर होती रहती है लेकिन बरसात के मौसम में और बरसात खत्म होते ही इसका प्रकोप बहुत बढ़ जाता है। हेपेटाइटिस ‘ई’ से बचने का एकमात्र उपाय स्वच्छ पानी पीना है।

अगर संभव हो तो पानी को एक्वागार्ड से शुरू करने के बाद भी उबालकर ही पीना चाहिये ताकि हेपेटाइटिस ‘ई’ के विषाणुओं से बचाव हो सके। वैसे तो बारिश के मौसम में कई बीमारियां सिर उठाने लगती हैं। लेकिन उसमें से ही एक बीमारी है हेपेटाइटिस बी, जोकि वायरस बी के कारण होता है। लीवर में सूजन को ‘हेपेटाइटिस’ कहते हैं। लीवर में सूजन पैदा करने वाला खतरनाक वायरस है बी।

हेपेटाइटिस फ़ैलने के कारण:

इस रोग का एक प्रमुख कारण वाइरस है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि पानी का दूषित होना भी हेपेटाइटिस फ़ैलने का प्रमुख कारण है। हेपेटाइटिस सी अंतिम चरण में लीवर कैंसर का कारण बनता है। हेपेटाइटिस के अन्य महत्वपूर्ण कारणों में शराब का लंबे समय तक अत्यधिाक सेवन करना है। कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव(साइड इफ़ेक्ट) से भी यह रोग संभव है।

हेपेटाइटिस के लक्षण:

इसके लक्षणों में उल्टी, बुखार और पीलिया होना शामिल हैं। हेपेटाइटिस ए और ई के लक्षण पंद्रह से एक महीने के भीतर दिखाई देने शुरू होते हैं। हेपेटाइटिस बी के लक्षण क्रॉनिक होते हैं। हेपेटाइटिस ए और ई वायरस होने के बाद शरीर को कोई नुकसान नहीं होता, जबकि हेपेटाइटिस बी और सी लीवर को नुकसान पहुंचाता है। इसके साथ ही जी मिचलाना, भूख कम लगना, पेट के ऊपरी दाहिने भाग में दर्द होना, पेशाब का गाढ़ा पीले रंग का होना, कुछ रोगियों के मल का रंग पीला होता है, रोग की गंभीर अवस्था में एक्यूट लीवर फ़ेल्यर हो सकता है आदि इस संक्रमण के अन्य प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं।

हेपेटाइटिस का निदान:

हेपेटाइटिस का निदान शारीरिक परीक्षा, लीवर बायोप्सी, लीवर फ़क्जन परीक्षण, अल्ट्रासाउंड, रक्त परीक्षण, वायरल एंटीबॉडी परीक्षण के अलावा वायरल एंटीबॉडी परीक्षण द्वारा करना भी आवश्यक हो जाता है, यदि एक विशिष्ट प्रकार का हेपेटाइटिस वायरस मौजूद हो।

उपचार:

आपको किस प्रकार का हेपेटाइटिस है इस बात पर उपचार का विकल्प निर्धाारित होता है, जैसे संक्रमण तीव्र है या फिर पुराना। हेपेटाइटिस ए और बी के अधिाकतर मामलों में लक्षणों के आधाार पर इलाज किया जाता है। जैसे बुखार के लिए अलग से दवा दी जाती है और पेट में दर्द के निवारण के लिए अलग से दवाएं दी जाती हैं। जो रोगी क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी- और हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त हैं, उनका इलाज एंटी वाइरल दवाओं(जिन्हें इंटरफ़ेरॉन्स कहा जाता है) से किया जाता है।

ओरल एंटीवाइरल दवाएं भी दी जाती हैं, जो रक्त से हेपेटाइटिस के वाइरस को दूर करती हैं। इस प्रकार लिवर सिरोसिस और लीवर कैंसर होने का जोखिम कम हो जाता है। हेपेटाइटिस बी या हेपेटाइटिस सी के कारण होने वाली लीवर की बीमारी की गंभीर अवस्था में लीवर ट्रांसप्लांट ही इलाज का एकमा= कारगर विकल्प शेष बचता है। हेपेटाइटिस डी का इलाज अल्फ़ा इंटरफ़ेरॉन्स के इंजेक्जन्स द्वारा किया जाता है। अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले।

  • वैक्सीन लगवाएं

हेपेटाइटिस ए और बी की रोकथाम के लिए वैक्सीन उपलब्धा है। सभी नवजात बच्चों को इस वैक्सीन को लगवाना चाहिए। फि़लहाल हेपेटाइटिस ई से बचाव के लिए कोई वैक्सीन उपलब्धा नहीं है।

कैसे करें बचाव ?

बचाव के लिए पहले तो स्क्रीनिंग जरूरी है। एक साधाारण खून की जांच से यह पता चल जाए कि आप इस संक्रमण से बचे हुए हैं तो कोई देरी किए बगैर टीका ले लें। खुद ही नहीं, परिवार के हर सदस्य, बच्चों, बूढ़े, जवान सब को टीका लगवा दें, अगर वे सभी संक्रमण से बचे हुए हैं। इससे बचने के लिए आसपास का माहौल साफ़-सुथरा होना चाहिए। साफ़ पानी और स्वच्छ खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। हेपेटाइटिस ए के लिए टीका मौजूद है, लेकिन ई के लिए अभी भी कोई टीका उपलब्ध नहीं है। साथ ही निम्न बातों का भी धयान रखेंः-

  • कोई भी खाद्य पदार्थ ग्रहण करने से पहले साबुन से अच्छी तरह हाथ धाोएं।
  • कटे और खुले हुए फ़लों को न खाएं।
  • सुरक्षित दैहिक संबंधा स्थापित करें।
  • दूसरे व्यक्तियों का टूथब्रश और रेजर का इस्तेमाल न करें।
  • अन्य व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की गयी नीडल का स्वयं पर इस्तेमाल न करें।
  • डाइट का रखें ध्यान

लिवर की बीमारियों में मरीज को पौष्टिक खाना लेना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट वाली सब्जियां खाने से बॉडी को ज्यादा ताकत मिलती है। फ़लों का जूस भी पीना सही रहता है। घर में स्वच्छ तरीके से निकाले गए जूस का सेवन करें। बाहर निकाले गए जूस में गन्दगी की सम्भावना होती है। सही तरह के खानपान से अलग-अलग तरह के विटामिन भी बॉडी में पहुँचते हैं जिससे रोगों से लड़ने की क्षमता का विकास होता हैं। इसके लिए ताजे फ़ल, हरी सब्जियां और दालों का सेवन ठीक मात्र में करना चाहिए। इस के साथ ही दही का प्रयोग भी करना चाहिए।

विनीता झा
कार्यकारी संपादक

बॉडी में विटामिन सी का मात्र को पूरा करने के लिए हरी सरसों, नींबू, संतरा, फ़ूलगोभी, स्ट्रोबेरी, आम शिमलामिर्च और ब्रोकलीका सेवन करना चाहिए। विटामिन ई की कमी को पूरा करने के लिए बादाम, सूर्यमुखी के बीज, नाशपाती, टमाटर, सभी तहर के अनाज और हरे पत्ते वाली सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा सोयाबिन, एग योक, मछली, चना और ब्राउन राइस को खाने में उचित मात्र में शामिल करना चाहिए।

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