फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन और ओलंपिक म्यूज़ियम के साथ साझेदारी में प्रस्तुत फिल्मों और तस्वीरों के अद्वितीय फेस्टिवल ‘ओलंपिक्स इन रील लाइफ’ का आयोजन इस अक्टूबर, मुंबई और नई दिल्ली में किया जाएगा

इस वर्ष के कैलेंडर में अपनी अमिट छाप छोड़ते हुए, भारत 1983 के बाद पहली बार इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी (आईओसी) सत्र की मेजबानी कर रहा है। ओलंपिक खेलों के भविष्य के संस्करण की मेजबानी में भारतीय रुचि की चर्चा के बीच, फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने स्विट्जरलैंड के लॉज़ेन में ओलंपिक म्यूज़ियम के साथ साझेदारी में ‘ओलंपिक्स इन रील लाइफ- फिल्मों और तस्वीरों का फेस्टिवल’ प्रस्तुत किया है। यह अपनी तरह का पहला दो सप्ताह तक चलने वाला फेस्टिवल है, जो मुंबई में नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) और दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) के सहयोग से ओलंपिक फिल्मों और तस्वीरों को प्रदर्शित करेगा। इस कार्यक्रम को बुकमायशो की चैरिटी पहल, बुकएस्माइल, क्यूब सिनेमा टेक्नोलॉजीस और हाइपरलिंक द्वारा समर्थन प्राप्त है। मुंबई में बीएमसी और दिल्ली में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इनटच) के साथ समझौते के रूप  में, स्थानीय स्कूलों के छात्रों को मुंबई और दिल्ली में फिल्में देखने के लिए आमंत्रित किया जाएगा।

15 सितंबर को, अमिताभ बच्चन, एम्बेसेडर – फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन और सुपरस्टार ने शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर, डायरेक्टर, फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन; ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा, सम्मानित हॉकी के दिग्गज एम. एम. सोमाया और प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी अपर्णा पोपट के साथ मिलकर ‘ओलंपिक्स इन रील लाइफ’ के पोस्टर का अनावरण किया था और इस प्रकार भारत में इस शानदार फेस्टिवल की शुरुआत हुई।

फिल्म, कला और खेल के शक्तिशाली विलय का जश्न मनाते हुए, ओलंपिक्स इन रील लाइफ का आयोजन 3 हिस्सों में किया जाएगा:

  • ओलंपिक मूवी मैराथन- 33 फिल्में, 10 सीरीज़, 7 दिन और 2 शहर।
  • ओलंपिज्म मेड विज़िबल- एक इंटरनेशनल फोटोग्राफी प्रोजेक्ट, जिसका नेतृत्व ओलंपिक म्यूज़ियम करेगा।
  • ओलंपिक्स में भारतीय: इसके तहत मुंबई शहर में प्रतिष्ठित तस्वीरों को शामिल किया जाएगा, जो ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की दशकों की प्रतिभा पर प्रकाश डालेंगी।

फिल्म के पूरे कार्यक्रम को एक मूवी मैराथन के रूप में तैयार किया गया है। इसमें विभिन्न महाद्वीपों और युगों की ओलंपिक फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, जो न सिर्फ खेल में व्यक्तियों के प्रयासों की उल्लेखनीय उपलब्धियों को दर्शाती हैं, बल्कि हमारे इतिहास की पिछली शताब्दी की बदलती सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि को भी प्रदर्शती करती हैं। इन फिल्मों का चयन आईओसी के व्यापक अभिलेखागार के साथ-साथ ओलंपिक चैनल के माध्यम से किया गया है, जो 1912 से शुरू होकर एक सदी से भी अधिक समय से चली आ रही है।

दो स्थानों – मुंबई में एनसीपीए और दिल्ली में आईआईसी में इन फिल्मों का प्रदर्शन सुबह 10 बजे से पूरे दिन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में स्कूल के बच्चों से लेकर फिल्म और खेल प्रेमियों तथा इतिहासकारों तक व्यापक दर्शक प्रमुखता शामिल होंगे। दर्शकों को उन चुनिंदा फिल्मों को देखने का दुर्लभ अवसर मिलेगा, जिन्हें कार्लोस सौरा, मिलोस फॉरमैन, कोन इचिकावा और लेनी रिफेनस्टाहल सहित अन्य प्रशंसित फिल्म निर्माताओं द्वारा खूबसूरती से निर्मित और निर्देशित किया गया है। इनमें ओलंपिक खेलों में भारत की यात्रा की अभूतपूर्व झलकियाँ भी शामिल होंगी।

“ओलंपिज्म मेड विज़िबल” एक इंटरनेशनल फोटोग्राफी प्रोजेक्ट है, जो न सिर्फ समाज में खेल की गहन भूमिका पर प्रकाश डालेगा, बल्कि सामाजिक विकास और शांति के लिए एक प्रमुख स्त्रोत के रूप में कार्य करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन भी करेगा। ओलंपिक की भावना खेलों के प्रत्येक संस्करण के दौरान प्रमुखता से देखी जा सकेगी और साथ ही इसका प्रभाव भी लम्बे समय तक देखा जा सकेगा। इंटरनेशनल ओलंपिक समिति (आईओसी) द्वारा समर्थित वैश्विक संगठनों और समर्पित व्यक्तियों और कार्यक्रमों के अथक प्रयास वास्तव में सराहनीय हैं, जो एक बेहतर दुनिया बनाने के रूप में खेल का उपयोग करने के अनुरूप एक मिशन साझा करेंगे।

इस प्रोजेट की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी। इसके बाद से, ओलंपिक म्यूज़ियम द्वारा 12 प्रशंसित फाइन आर्ट फोटोग्राफर्स को आमंत्रित किया गया है, ताकि दुनिया भर के विभिन्न समुदायों में खेल के अंतर्गत रचनात्मक दृष्टिकोण को शामिल किया जा सके। पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर पॉलोमी बासु की शानदार तस्वीरों का अनावरण मुख्य आकर्षण का केंद्र होगा। इन तस्वीरों को पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाएगा, जिन्हें हाल ही में ओडिशा में शूट किया गया है। प्रदर्शनी में विश्व पटल पर प्रसिद्ध फोटोग्राफर्स डाना लिक्सेनबर्ग और लोरेंजो विट्टूरी की कलाकारियाँ भी शामिल होंगी, जिन्हें मुंबई में प्रस्तुत किया जाएगा।

ओलंपिज्म मेड विज़िबल उन महत्वपूर्ण मुद्दों को गति प्रदान करता है, जो निरंतर रूप से विश्व की एकजुटता का आह्वान करते हैं और एक सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में खेल की धारणा को बढ़ावा देते हैं, जो कहीं न कहीं खुशी, उत्कृष्टता, सम्मान और दोस्ती को प्रोत्साहित करने में योगदान देते हैं।

यह कार्यक्रम बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) के साथ साझेदारी में आयोजित हो रहा है। इसका उद्देश्य ओलंपिक में भारत की उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए तस्वीरों के एक क्यूरेटेड चयन के साथ जश्न मनाना है, जो दशकों से ओलंपिक खेलों में भारत के प्रतिष्ठित खिलाड़ियों की तस्वीरों और मार्मिक क्षणों को स्पष्ट रूप से संजोकर रखता है।

ये आकर्षक तस्वीरें पूरे मुंबई शहर में 15 प्रमुख स्थानों की शोभा बढ़ाएँगी, जो उन क्षेत्रों से गुजरने वाले हजारों लोगों के लिए एक निरंतर और प्रेरक अनुस्मारक के रूप में काम करेंगी। इसके तहत भारतीय खिलाड़ियों की अविश्वसनीय विविधता का प्रदर्शन किया जाएगा, जिनमें हॉकी खिलाड़ी, एथलीट्स, मुक्केबाज, तीरंदाज, निशानेबाज, वेटलिफ्टर्स, जिम्नास्ट्स, शटलर्स और टेनिस खिलाड़ी शामिल हैं, जिन्होंने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए और गर्व तथा उपलब्धि की अमिट छाप छोड़ते हुए ओलंपिक खेलों में भारत का सीना चौड़ा किया है।

मुख्य विशेषताएँ: ओलंपिक मूवी मैराथन; देखने योग्य फिल्में:- 

  • “द गेम्स ऑफ वी ओलंपियाड स्टॉकहोम, 1912”: इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी द्वारा प्रस्तुत की गई सबसे पहली फिल्म, जिसे अपनी तस्वीरों की गुणवत्ता के लिए काफी सराहना प्राप्त की है।
  • कोन इचिकावा की 1965 की फिल्म “टोक्यो ओलंपियाड” जिसका वर्णन फिल्म समीक्षक डोनाल्ड रिची ने ‘विज़ुअल डिज़ाइन की उत्कृष्ट कृति’ के रूप में किया था।
  • “द ग्लोरी ऑफ स्पोर्ट” (1948): यह 1948 की लंदन की आधिकारिक और पहली रंगीन फिल्म है, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत की हॉकी टीम की पहली स्वर्ण पदक जीत को चिह्नित करती है।
  • “विज़नस ऑफ ऐट”: फिल्मों का संकलन, जिसका निर्देशन 1973 में मिलोस फॉरमैन, जॉन स्लेसिंगर और आर्थर पेन जैसे प्रसिद्ध फिल्म निर्माताओं ने किया था।
  • लेनि रीफेनस्टहल की “ओलंपिया” [ईएच3] (1938), जिसे खेल फिल्मों में गहन सफलता के लिए जाना जाता है।
  • कार्लोस सौरा की 1993 की फिल्म “मैराथन” में पुरुषों की मैराथन का उपयोग इस ओलंपिक आयोजन में आवश्यक मानवीय प्रयास और सहनशक्ति के प्रतीक के रूप में किया गया था।
  • मासाहिरो शिनोडा का साप्पोरो विंटर ओलंपिक्स (1972), जो इन फिल्मों के बीच सबसे खूबसूरत कल्पना को उजागर करती है।
  • बड ग्रीनस्पैन की “16 डेज़ ऑफ ग्लोरी” (1986), जिसने अपनी रेंज और कवरेज की गहनता के आधार पर ओलंपिक फिल्मों के लिए एक नया मानक स्थापित किया था।
  • “मेक्सिको में ओलंपिक” (1969), जिसका नामांकन एकेडमी पुरस्कार के लिए किया गया था।
  • कैरोलीन रोलैंड द्वारा निर्देशित “फर्स्ट” लंदन 2012 ओलंपिक की एक आधिकारिक फिल्म है, जो दुनिया भर के पहली बार के ओलंपियन्स की प्रोफाइल पेश करती है।
  • झांग यिमौ द्वारा निर्मित और लू चुआन द्वारा निर्देशित “बीजिंग 2022” दर्शकों को बीजिंग विंटर ओलंपिक के पर्दे के पीछे और वैश्विक महामारी के बीच इस आयोजन की मेजबानी की चुनौतियों से रूबरू कराती है।

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