धरती धीरज है धरे, धरती कानन भार।
पर्वत घाटी सिंधु का, धरती है आधार।।
धरती माता वत्सला, भरे अन्न धन गेह।
सहती कंटक है सदा, रही लुटाती नेह।।
नीलम पन्ना कीमती, हीरा है दिनमान।
धरा गर्भ में हैं छिपी, स्वर्ण रजत की खान।
प्रियतम अम्बर के लिए, सात रंग का प्यार।
बिछा राह पट इंद्रधनु, धरा करे सत्कार।।
सहनशील है धरा अति, सहती है दिन रात।
सहे मशीनी घात अरु, मानव के उत्पात।।![]()
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
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