खुद की हत्या करना जैसा है धूम्रपान का आदी होना

-धूम्रपान निषेध दिवस -13 मार्च, 2024 –

हर साल मार्च महीने के दूसरे बुधवार को धूम्रपान निषेध दिवस यानी नो स्मोकिंग डे मनाया जाता है। धूम्रपान के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताने और धूम्रपान छोड़ने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। इस साल धूम्रपान निषेध दिवस 13 मार्च को पड़ेगा। साल 2024 की थीम बच्चों को तंबाकू प्रोडक्ट्स से बचाना है। पहली बार साल 1984 में आयरलैंड गणराज्य में यह दिवस मनाया गया था। मगर ऐसे दिवस को मनाने की उपयोगिता तभी है जब नशे की अंधी गलियों में भटक चुके युवाओं को बाहर निकालना विश्व की हर सरकार का नैतिक एवं प्राथमिक कर्तव्य हो, क्योंकि युवा पीढ़ी नशे की गुलाम हो चुकी है। विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है तम्बाकू और उससे जुड़े नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन में निरन्तर वृद्धि होना। चिकित्सा रिपोर्ट्स के अनुसार धूम्रपान को कैंसर और अन्य असाध्य बीमारियों का कारण माना गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक धूम्रपान निषेध दिवस कारगर साबित हुआ है क्योंकि इस दिन दस लोगों में से कम से कम एक व्यक्ति धूम्रपान छोड़ता है।

अमेरिकन राइटर कर्ट वोनगुट कहते हैं कि सिगरेट पीना खुद की हत्या करना जैसा है। तंबाकू या धूम्रपान व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही शारीरिक सेहत पर भी नकारात्मक असर डालता है। हालांकि ये बात जानते हुए भी दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी रूप से तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। धूम्रपान करने से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। धूम्रपान करने वाले लोगों के संपर्क में आने से भी अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति विशेषतः महिलाएं किसी-न-किसी रूप में धूम्रपान की आदी हो चुकी है। बीड़ी-सिगरेट के अलावा तम्बाकू के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है। सरकार की नीतियां भी दोगली है। एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे आदर्श हो सकता है? कैसे स्वस्थ हो सकता है? कैसे प्रगतिशील हो सकता है? यह समस्या केवल भारत की ही नहीं है, बल्कि समूची दुनिया इससे पीड़ित, परेशान एवं विनाश के कगार पर खड़ी है।

आज छोटे-छोटे बच्चे एवं महिलाएं धूम्रपान के आदी हो चुके हैं। वे ऐसे नशे करती है कि रुह कांपती है। हर साल लाखों लोग धूम्रपान के कारण अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं। धूम्रपान आज एक फैशन बन चुका है। पूरे विश्व के लोगों को धूम्रपान मुक्त, तंबाकू मुक्त और स्वस्थ बनाने के लिये तथा सभी स्वास्थ्य खतरों से बचाने के लिये तंबाकू चबाने या धूम्रपान के द्वारा होने वाले सभी परेशानियों और स्वास्थ्य जटिलताओं से लोगों को आसानी से जागरूक बनाने के लिये इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन यह विडम्बनापूर्ण है कि सरकारों के लिये यह दिवस कोरा आयोजनात्मक है, प्रयोजनात्मक नहीं। क्योंकि सरकार विवेक से नहीं, स्वार्थ से काम ले रही है। शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए?

नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। नशे की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की अनेक प्रतिभाएं कीर्तिमान तो स्थापित कर सकती हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पा रही हैं। जीवन का माप सफलता नहीं, सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं? ये बहुत जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर तंबाकू सेवन के प्रयोग पर बैन लगाया जाये या इसे रोका जाये क्योंकि ये कई सारी बीमारियों का कारण बनता है जैसे दीर्घकालिक अवरोधक फेफड़ों संबंधी बीमारी (सीओपीडी), फेफड़े का कैंसर, हृदयघात, स्ट्रोक, स्थायी दिल की बीमारी, वातस्फीति, विभिन्न प्रकार के कैंसर आदि।

तंबाकू का सेवन कई रूपों में किया जा सकता है जैसे सिगरेट, सिगार, बीड़ी, मलाईदार तंबाकू के रंग की वस्तु (टूथ पेस्ट), क्रिटेक्स, पाईप्स, गुटका, तंबाकू चबाना, सुर्ती-खैनी (हाथ से मल के खाने वाला तंबाकू), तंबाकू के रंग की वस्तु, जल पाईप्स, स्नस आदि। कितने ही परिवारों की सुख-शांति ये तम्बाकू उत्पाद नष्ट कर रहे हैं। बूढ़े मां-बाप की दवा नहीं, बच्चों के लिए कपड़े-किताब नहीं, पत्नी के गले में मंगलसूत्र नहीं, चूल्हे पर दाल-रोटी नहीं, पर नशा चाहिए। अस्पतालों के वार्ड ऐसे रोगियों से भरे रहते हैं जो अपनी जवानी नशे को भेंट कर चुके होते हैं। ये तो वे उदाहरणों के कुछ बिन्दु हैं, वरना करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर। डब्ल्यूएचओ के अनुसार धूम्रपान की लत से हर साल लगभग 80 लाख लोग मारे जा रहे हैं और इनमें से अधिकतर मौतें कम तथा मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं।

डब्ल्यूएचओ ने पनामा में एक सम्मेलन में अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वर्ष 2030 में प्रति वर्ष धूम्रपान की वजह से मारे जाने लोगों की संख्या बढ़कर एक करोड़ के आसपास हो जाएगी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 92 देशों के 2.3 अरब लोगों को धूम्रपान पर किसी न किसी तरह लगाए गए प्रतिबंधों से लाभ हुआ है। मतलब साफ है कि आने वाले समय में इनमें से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही होने जा रहा है। सिगरेट या बीड़ी का धुआं किसी मजहब और प्रांत को नहीं पहचानता, किसी आरक्षण या राजनीतिक झुकावों को नहीं जानता। वह किसी अमीर और गरीब में भी भेद नहीं करता, उसका सबके लिए एक ही मेसेज है, और वह है मौत। किन्तु दुर्भाग्यवश इस गलत आदत को स्टेटस सिंबल मानकर अक्सर नवयुवक एवं महिलाएं अपनाते हैं और दूसरों के सामने इसे अपने स्टेटस सिम्बल, आधुनिकतावादी एवं फैशनपरस्ती के रूप में दिखाते हैं।

धूम्रपान दरअसल एक लत है जिससे जब तक व्यक्ति दूर रहता है तब तक तो वह ठीक रहता है लेकिन एक बार यदि इसे प्रारम्भ कर दिया जाए तो इंसान को इस नशे में मजा आने लगता है। कुछ कहने-सुनने से पहले यह जान लें कि धूम्रपान हर दृष्टि से हानिकारक है, जानलेवा है। धूम्रपान से रक्तचाप में वृद्धि होती है, रक्तवाहिनियों में रक्त का थक्का बन जाता है। ऐसे लोगों में मृत्यु दर 2 से 3 गुना अधिक पाई जाती है। धूम्रपान से टीबी होता है। कई ऐसे हॉलिवुड सिंगर्स हैं जिन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि अधिक धूम्रपान करने से उनकी आवाज खराब हुई। इससे प्रजनन शक्ति कम हो जाती है। यदि कोई गर्भवती महिला धूम्रपान करती है तो या तो शिशु की मृत्यु हो जाती है या फिर कोई विकृति उत्पन्न हो जाती है।

लंदन के मेडिकल जर्नल द्वारा किये गये नए अध्ययन में पाया गया कि धूम्रपान करने वाले लोगों के आसपास रहने से भी गर्भ में पल रहे बच्चे में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉ. जोनाथन विनिकॉफ के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता-पिता दोनों को स्मोकिंग से दूर रहना चाहिए। स्कूलों के बाहर नशीले पदार्थों की धडल्ले से बिक्री होती है, किशोर पीढ़ी धुए में अपनी जिन्दगी तबाह कर रही है। हजारों-लाखों लोग अपने लाभ के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। चमड़े के फीते के लिए भैंस मारने जैसा अपराध कर रहे हैं। बढ़ती तम्बाकू प्रचलन की समस्या विश्व की दूसरी समस्याओं में सबसे देरी से जुड़कर सबसे भयंकर रूप से मुखर हुई है। लगता है विश्व जनसंख्या का अच्छा खासा भाग नशीले पदार्थों के सेवन का आदी हो चुका है। अगर आंकड़ों को सम्मुख रखकर विश्व मानचित्र (ग्लोब) को देखें, तो हमें सारा ग्लोब नशे में झूमता दिखाई देगा।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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