राजपूताना की अदम्य साहसी, और रूपवती राजकुमारी रत्नावती

      — सुरेश सिंह बैस शाश्वत

 जैसलमेर के बड़े प्रतापी राजा नरेश महारावल रत्नसिंह का राज्य अजमेर भानगढ़ में चहुँ ओर अमन चैन के साथ स्थापित था। रत्नसिंह ने एक बार जैसलमेर भानगढ़‌ किले की रक्षा अपनी पुत्री राजकुमारी रत्नावती को सौंप दी थी। इसी दौरान दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन की सेना ने किले को घेर लिया जिसका सेनापति मलिक काफूर था। राजकुमारी रत्नावती ने अपने पिता को चिंतामुक्त होने को कहा की आप दुर्ग की तनिक भी चिंता ना करे। जब तक मुझमे प्राण है तब तक अल्लाउदीन इस दुर्ग की एक ईंट भी नहीं उठा पायेगा।अपनी पुत्री के इस साहस भरे शब्दों को सुन रावल रत्नसिंह जी ने अस्त्र-शस्त्र धारण किये और निकल पड़े तुर्कीयों से लोहा लेने। किले के सभी सामंत निकल चुके थे। केसरिया धारण कर रण करने।

किले के द्वार से निकलते ही दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ।किले के चारों ओर मुगल सेना ने घेरा डाल लिया किंतु राजकुमारी रत्नावती इससे घबराई नहीं और सैनिक वेश में घोड़े पर बैठी किले के बुर्जों व अन्य स्थानों पर घूम-घूमकर सेना का संचालन करती रहीं। तुर्की समझ गये थे, कि दुर्ग विजय करना हंसीहट्टा नहीं हैं. दुर्ग रक्षिणी राजनन्दिनी रत्नवती निर्भय अपने दुर्ग में सुरक्षित शत्रुओ के दांत खट्टे कर रही थी. उसकी सेना में पुराने विश्वस्त राजपूत थे, जो मृत्य और जीवन का खेल समझते थे। वे अपनी सखियों समेत दुर्ग के किसी बुर्ज पर चढ़ जाती थी, और यवनों का ठट्ठा उड़ाती हुई वह वहा से सनसनाते तिरो की वर्षा करती |वह कहती – मै स्त्री हू, पर अबला नही | मुझमे मर्दों जैसा साहस और हिम्मत है।  मेरी सहेलियाँ भी देखने भर की स्त्रिया है।  मै इन पापिष्ठ यवनों को समझती क्या समझूँ  । “उसकी बाते सुनकर सहेलिया ठठाकर हंस देती थी प्रबल यवनदल द्वारा आक्रांत दुर्ग में बैठना राजकुमारी के लिए एक विनोद था। मलिक काफूर एक गुलाम था जो यवन सेना का अधिपति था वह द्रढ़ता और शांति से राजकुमारी की चोटें सह रहा था उसने सोचा था कि जब किले में खाद्य पदार्थ कम हो जाएगे, तब इन्हें हथियार डालने पर मजबूर किया‌ जा सकता है।

लेकिन हुआ इसका उल्टा। राजकुमारी रत्नावती ने सेनापति काफूर सहित सौ सैनिकों को ही बंधक बना लिया। अब इस दौरान किले में रसद की काफी किल्लत हो गई। बाहर अलाउद्दीन खिलजी भारी सैनिकों के साथ घेरा डाले मौजूद हो गया था। ऐसे में राजकुमारी रत्नावती भूख से दुर्बल होकर पीली पड़ गईं किंतु ऐसे संकट में भी राजकुमारी रत्नावती द्वारा राजधर्म का पालन करते हुए अपने सैनिकों को रोज एक मुट्ठी और मुगल बंदियों को दो मुट्ठी अन्न रोज दिया जाता रहा। अलाउद्दीन को जब पता लगा कि जैसलमेर किले में सेनापति कैद है और किले को जीतने की आशा नहीं है तो उसने महारावल रत्नसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। राजकुमारी ने एक दिन देखा कि मुगल सेना अपने तम्बू-डेरे उखाड़ रही है और उसके पिता अपने सैनिकों के साथ चले आ रहे हैं। मलिक काफूर अलाउद्दीन का सेनापति जब किले से छोड़ा गया तो वह रोने लगा और उसने कहा- ‘यह राजकुमारी साधारण लड़की नहीं, यह तो वीरांगना के साथ देवी भी हैं। इन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है। ये पूजा करने योग्य आदरणीय हैं।’ ये थी भारत भूमि की वो वीरांगना जिसने अपने पराक्रम और बहादुरी से अपना नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज करा लिया, इन को हमारा शत-शत नमन है। भानगढ़ के किले से जुड़ा एक बड़ा रहस्य है। ऐसा कहा जाता है कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती जो केवल दस वर्ष की थी और वह बहुत ही सुंदर थी। राजकुमारी के सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे।

इसलिए देश के हर कोने का राजकुमार उनसे शादी करना चाहता था। एक बार एक तांत्रिक ने राजकुमारी को देखा तो वह राजकुमारी के प्रति आसक्त हो गया। वह राजकुमारी को देखकर इतना मोहित हो गया कि अपने काले जादू के दम पर पाने की सोच बैठा। एक दिन राजकुमारी रत्नावती अपनी सहेलियों के साथ किले से बाहर निकली और  हाट गई। उसी वक्त तांत्रिक ने राजकुमारी को पाने के लिए एक दुकान से इत्र की शीशी और उससे राजकुमारी पर काला जादू करना चाहा। इसके बाद तांत्रिक इत्र की दुकान से थोड़ा दूर खड़ा हो गया। जब राजकुमारी ने उस इत्र की शीशी को खोला, जिससे राजकुमारी को कैद करने की कोशिश की गई थी। वह तुरंत समझ गई कि इसमें तंत्र मंत्र का प्रयोग किया गया है। इसके बाद राजकुमारी ने इत्र की बोतल को उठाकर पास ही एक पत्थर पर दे मारा। किस्मत से उसी पत्थर के पास वह तांत्रिक बैठा था।

बोतल टूट गई और पूरा इत्र पत्थर पर बिखर गया। शीशी टूट जाने पर पत्थर से तांत्रिक की मौके ही मौत हो गई। लेकिन मरने से तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे। वे फिर से पैदा नहीं हो पाएंगे और उनकी आत्माएं हमेशा इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक की मृत्यु के कुछ दिन बाद भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ, जिसमें किले में रहने वाले सभी लोग मारे गए। यहां तक कि राजकुमारी भी तांत्रिक के श्राप से खुद को नहीं बचा पाई और उनकी भी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि तबसे भानगढ़ आत्माओं का किला बना हुआ है।

बाद में अजबगढ़ और भानगढ़ के बीच लड़ाई के दौरान रानी रत्नावती की हत्या कर दी गई और ऐसा माना जाता है कि रानी और जादूगर का भूत अभी भी परिसर में घूम रहा है और सूर्यास्त के बाद किसी को भी किले में रहने या प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस तरह भानगढ़ भारत की सबसे प्रेतबाधित जगहों में से एक बन गया है। ऐसा कहा जाता है कि रात में भानगढ़ किले में आत्माएं घूमती हैं और कई तरह की अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देती हैं। साथ ही, जैसा कि कहा जाता है, जो कोई भी रात में किले में प्रवेश करता है, वह सुबह वापस नहीं आ पाता। हमेशा ऐसा लगता है जैसे कोई उनकी हरकतों पर नज़र रख रहा है, और हवा में चक्कर आने जैसा भारीपन है।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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