मेटा की माफी से सोशल मीडिया मंचों को सख्त सन्देश

फेसबुक के लिये भारत एक संभावनाओं भरा बड़ा बाजार होने के बावजूद उसकी भारत के प्रति सोच भ्रामक, विवादास्पद एवं नकारात्मक रही है। फेसबुक और मेटा भारत के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ और फेकन्यूज को लेकर विवादों में घिरती रही हैं। हाल ही में मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग एक बार फिर भारत को लेकर दिये गलत बयान के मामले में फंस गए हैं। जुकरबर्ग ने एक पॉडकास्ट में कहा था कि कोरोना के बाद दुनिया के कई देशों में मौजूदा सरकारें गिर गईं। भारत के लोकसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी सरकार हार गई। यह जनता का सरकारों में घटता भरोसा दिखाता है।

इस बयान के बाद संसद की आईटी एंड कम्युनिकेशन मामलों की स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि इस गलत बयान पर कंपनी को माफी मांगनी चाहिए। वरना हमारी समिति उन्हें मानहानि का नोटिस भेजेगी। भारत सरकार की सख्त आपत्ति को देखते हुए भले ही मेटा ने माफी मांग ली हो, लेकिन मार्क भरोसे के लायक नहीं है। यह माफी जहां जरूरी थी वही अब स्वागतयोग्य भी है। लेकिन मार्क का भारत के प्रति नजरिया गैर जिम्मेदाराना, लापरवाहीपूर्ण एवं दोषपूर्ण है। ऐसी निरंकुश सोच एवं उच्छृंखल मानसिकता की बुनियाद पर संबंधों की खड़ी होने वाली ईमारत खोखली एवं विनाशकारी ही होती है।

यह वाकई हैरत की बात है कि जकरबर्ग ने भारत को भी उन देशों में शामिल कर लिया जहां पिछले साल चुनाव में सरकारों ने सत्ता गंवाई। तथ्य यह है कि भाजपा की सीटें भले कम हुई हों, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए ने बहुमत हासिल कर सरकार में वापसी की एवं सफलतापूर्वक सरकार को चला रही है। नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और न केवल देश में बल्कि दुनिया में भारत का परचम फहरा रहे है। इस तथ्य से जकरबर्ग कैसे अनजान हो सकते हैं? क्या वह जानबूझकर भारत सरकार के बारे में गलत सूचनाएं फैला रहे हैं? क्या यह शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्रों के साथ-साथ वहां की बड़ी आर्थिक शक्तियों की भारत के प्रति विरोधाभासी दुर्भावना नहीं है। कैसे मान लिया जाये कि यह गलती अनजाने में हुई है? क्या दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया मंच फेसबुक को संभालने वाली इतनी बड़ी कंपनी के मालिक से ऐसी गलती की उम्मीद की जा सकती है और ऐसी गलती उनको शोभा देती है कि वह भारत जैसे देश के चुनाव परिणाम से परिचित न हों? अगर यह गलती जुकरबर्ग से भूल या अनजाने में हुई है, तो भी यह गंभीर बात है।

मेटा इंडिया भी जुकरबर्ग की ही कंपनी है, जिसके एक आला अधिकारी ने कहा है कि अमेरिकी बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी समूह मेटा के लिए भारत एक अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण एवं संभावनाभरा खास देश बना हुआ है। मेटा अपने व्यापार को भारत में विस्तारित करने के लिये विभिन्न योजनाओं पर काम भी कर रहा है। भारत मेटा के लिए बहुत अहम देश है। फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सएप की पेरेंट कंपनी मेटा चेन्नई में रिलायंस इंडस्ट्रीज के कैंपस में भारत में अपना पहला डेटा सेंटर स्थापित कर सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मार्च 2024 में जामनगर में हुए बिजनेसमैन मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी की प्री वेडिंग फंक्शन में जुकरबर्ग शामिल हुए थे।

तभी उन्होंने रिलायंस के साथ इसको लेकर एक समझौता किया था। इस तरह मेटा के लिए भारत अहम है, तो इसके मालिक को भारत का नाम बहुत संभलकर एवं सोच समझकर लेना चाहिए। वैसे भी भारत सरकार अमेरिका, यूरोपीय देशों या चीन की तरह आक्रामक एवं उग्र नहीं है। आक्रामक देशों में तो सरकारें फेसबुक या मेटा की गलतियों पर उसे न केवल सबक सीखाती है बल्कि कई बार ऐसी गलतियों के चलते कंपनियों को भारी जुर्माना भी चुकाना पड़ता है। उन देशों की कड़ाई का ही नतीजा है कि सोशल मीडिया कंपनियां इन देशों में बहुत सजग रहती हैं, जबकि भारत के मामले में उनकी नीति बदल जाती है। भारत की उदारता का ये कंपनियां अधिकतम दुरुपयोग करना चाहती हैं।

भारत को भी उदारता, सरलता एवं लचीलेपन की जगह कठोर एवं सख्त रवैया अपनाना चाहिए क्योंकि भारत अब दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने के साथ दुनिया में अपनी एक स्वतंत्र एवं ठोस जगह बना चुका है। जुकरबर्ग से जुड़ा यह ताजा मामला ऐसे ही लोगों के लिये एक सबक एवं चेतावनी बनना चाहिए। भारत सरकार को चाहिए कि वह ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिकों और अधिकारियों को चेतावनी के शब्दों में सचेत कर दे कि वे भारत के महत्व को समझें, पर्याप्त सजग एवं सावधान रहें। भारतीयों को पता है कि साल 2019 में अमेरिका में फेडरल ट्रेड कमीशन ने उपयोगकर्ता की गोपनीयता का उल्लंघन करने के लिए फेसबुक पर पांच अरब डॉलर का जुर्माना लगाया था।

मेटा प्रमुख मार्क के भ्रामक एवं गुमराह करने वाले बयान पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी प्रतिक्रिया दी और इसे “गलत जानकारी” करार देते हुए तथ्य और विश्वसनीयता बनाए रखने का आह्वान किया। मेटा के पब्लिक पॉलिसी के वाइस प्रेसिडेंट, शिवनाथ ठुकराल ने अश्विनी वैष्णव के पोस्ट पर जवाब देते हुए लिखा, “मार्क जुकरबर्ग का यह कहना कि 2024 के चुनावों में कई देशों में सत्ताधारी पार्टियां फिर से नहीं चुनी गईं, कई देशों के लिए सही है, लेकिन भारत के लिए नहीं। हम इस अनजाने में हुई गलती के लिए माफी मांगते हैं। भारत मेटा के लिए बेहद महत्वपूर्ण देश है और हम इसके इनोवेशन से भरे भविष्य का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित हैं।” भारत को अपना बाजार मानने वाले मेटा के लिये ऐसी भूल अनायास या जानबूझकर जैसे भी हो, होना दुर्भाग्यपूर्ण है।

क्योंकि भारत जैसे सशक्त एवं ताकतवर लोकतांत्रिक देश के लिये गलत जानकारी प्रसारित करना देश की छवि को धूमिल करती है। यह तो भारत की उदारता, सहिष्णुता एवं भलमनसाहत है कि उसने ऐसी अक्षम्य गलती पर भी माफी से संतोष कर लिया, वरना भारी जुर्माना या अन्य कठोर सजा के प्रावधान हो सकते थे। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल सिर्फ अधिक से अधिक मुनाफा हासिल करने के मकसद से हो रहा है। लेकिन इसके लिये समाज को नुकसान पहुंचाना कैसे जायज हो सकता है? इस तरह की गैर जिम्मेदारी एवं लापरवाही खतरनाक हो सकती है और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। ताजा विवाद को सरकार ने गंभीरता से लिया है, यह अच्छी बात है। लेकिन जरूरी है कि चिंता इसी मामले तक सीमित न रहे। हेट स्पीच, तथ्यों को तरोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करना और फेक न्यूज के ऐसे अन्य मामले भी राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्र के अस्तित्व एवं अस्मिता के लिये गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है। सरकार की सख्ती जहां मेटा को ज्यादा जिम्मेदार बनाये वहीं अन्य मंचों के लिये भी सबक बने।

माफी के बाद जुकरबर्ग जैसे मालिकों को भी यह सुनिश्चित होगा कि उनके अधीन चलने वाले सोशल मीडिया मंचों पर भारत के प्रति किसी झूठ, भ्रम एवं असत्य बयानी का सिक्का न चले। क्योंकि भारत की उदारता को उसकी कमजोरी मानने की मानसिकता घातक हो सकती है। भारत को लेकर कोई गलत सूचना संचारित-प्रसारित न हो, तथ्यों की प्रामाणिकता एवं सच्चाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मनगढ़ंत या झूठी सूचनाओं का प्रचार- संचार अब भारत के लिये सहनीय नहीं है। फेसबुक या अन्य सोशल मंचों पर बहुत सारी झूठी, भ्रामक, विध्वंसक या फर्जी सूचनाएं समय-समय पर घूमती रहती हैं, जिससे भारत की राष्ट्रीय एकता, साम्प्रदायिक सौहार्द, इंसानी सद्भावना आहत होती रही है। भारत के कतिपय राजनीतिक दल इसके लिये ऐसे मंचों को प्रोत्साहन भी देते हैं लेकिन इन सब स्थितियों के बावजूद भारत को मजबूती से इनके खिलाफ खड़े होकर उनको उनकी जमीन दिखाना ही चाहिए। ऐसी सख्ती ही भारत की छवि को मजबूती प्रदान करेंगी एवं तभी दुबारा ऐसा दुस्साहस करने की कोई चेष्टा नहीं करेगा।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
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