भारत में अगले दशक में 130-150 मिलियन नए रूम एयर कंडीशनर (ACs) जुड़ने की संभावना है, जिससे 2035 तक देश की पीक पावर डिमांड 180 गीगावॉट (GW) से अधिक बढ़ सकती है। यह बढ़ती मांग बिजली आपूर्ति पर भारी दबाव डाल सकती है, जिससे संभावित बिजली संकट खड़ा हो सकता है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के इंडिया एनर्जी एंड क्लाइमेट सेंटर (IECC) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है।

बिजली संकट से बचने के लिए ऊर्जा दक्षता को दोगुना करना जरूरी
रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत अगले 10 वर्षों में रूम ACs की ऊर्जा दक्षता को दोगुना करता है, तो गंभीर बिजली संकट को टाला जा सकता है और उपभोक्ताओं को 2.2 लाख करोड़ रुपये (26 अरब डॉलर) तक की बचत हो सकती है।
भारत हर साल 10-15 मिलियन नए ACs जोड़ता है, और अगले दशक में 130-150 मिलियन और ACs के जुड़ने की संभावना है। यदि कोई ठोस नीति लागू नहीं की गई, तो अकेले ACs की वजह से 2030 तक 120 GW और 2035 तक 180 GW की पीक पावर डिमांड बढ़ सकती है, जो कुल अनुमानित बिजली मांग का 30% होगा।
रिपोर्ट के प्रमुख लेखक निकित अभ्यंकर ने कहा,
“ACs की बढ़ती संख्या भारत की बिजली आपूर्ति से तेज़ी से आगे निकल रही है, जिससे 2026 तक ही गंभीर बिजली संकट पैदा हो सकता है। यदि सही नीतियां नहीं अपनाई गईं, तो हमें ब्लैकआउट या महंगे आपातकालीन समाधान देखने पड़ सकते हैं। लेकिन एक स्मार्ट नीति से यह उपभोक्ताओं, निर्माताओं और पावर ग्रिड सभी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।”
गर्मियों में बिजली की मांग और बढ़ने की संभावना
इस साल भारत में गर्मियों के दौरान बिजली की मांग 9-10% बढ़ने की संभावना है। पिछले साल 30 मई को देश की पीक पावर डिमांड 250 GW पार कर गई थी, जो अनुमान से 6.3% अधिक थी। जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान और गर्मी की लहरें इस बढ़ती मांग के मुख्य कारण हैं।
2024 की गर्मियों में रिकॉर्ड तोड़ तापमान के कारण रूम ACs की बिक्री में 40-50% की सालाना वृद्धि दर्ज की गई थी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑक्सफोर्ड इंडिया सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के शोध के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक कूलिंग की मांग भारत में होगी, इसके बाद चीन, नाइजीरिया, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ब्राजील, फिलीपींस और अमेरिका का स्थान रहेगा।
ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार आवश्यक
रिपोर्ट में भारत की न्यूनतम ऊर्जा प्रदर्शन मानकों (MEPS) को अपडेट करने की सिफारिश की गई है।
- 2027 तक 1-स्टार रेटिंग को ISEER 5.0 तक बढ़ाना, जो आज की 5-स्टार रेटिंग के बराबर होगी।
- हर तीन साल में मानकों को और कड़ा करना।
- इस नीति से 2028 तक 10 GW, 2030 तक 23 GW और 2035 तक 60 GW बिजली की कमी को रोका जा सकता है, जो 120 बड़े पावर प्लांट्स के बराबर होगी।
निकित अभ्यंकर के अनुसार,
“यह सिर्फ दीर्घकालिक ऊर्जा बचत का मुद्दा नहीं है, बल्कि तत्काल ग्रिड स्थिरता का समाधान भी है।”
उपभोक्ताओं और निर्माताओं को होगा बड़ा फायदा
- हालांकि ऊर्जा दक्ष ACs की प्रारंभिक कीमत थोड़ी अधिक हो सकती है, लेकिन वे 2-3 साल में बिजली बिल में बचत के जरिए खुद की लागत वसूल कर लेंगे।
- अनुमान है कि 2035 तक भारतीय उपभोक्ताओं को 66,000 करोड़ से 2.25 लाख करोड़ रुपये (8-26 अरब डॉलर) की बचत हो सकती है।
- भारत में 600 से अधिक AC मॉडल पहले से ही 5-स्टार स्तर से ऊपर हैं, और कई घरेलू निर्माता इन्हें बना रहे हैं।
रिपोर्ट के सह-लेखक अमोल फडके ने कहा,
“कुछ लोगों को लगता है कि अधिक दक्षता वाले AC महंगे होते हैं, लेकिन भारत और अन्य बाजारों के विश्लेषण से पता चला है कि ऊर्जा दक्षता कीमतें बढ़ाने का मुख्य कारण नहीं है। सही नीतियों के साथ, उच्च दक्षता लागत में कमी लाने में भी मदद कर सकती है।”
IECC के शोधकर्ता जोस डोमिंगुएज़ ने कहा,
“यह भारतीय निर्माताओं के लिए वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने का शानदार अवसर है। सही नीति समर्थन के साथ, भारत ‘मेक इन इंडिया’ और PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना के तहत एक सस्टेनेबल और किफायती कूलिंग हब बन सकता है।”
नमी नियंत्रण पर भी ध्यान देना जरूरी
रिपोर्ट में ACs के टेस्टिंग मानकों को भारत की आर्द्र जलवायु के अनुरूप अपडेट करने की भी सिफारिश की गई है। ठंडक के साथ नमी नियंत्रण भी जरूरी है ताकि अधिक ऊर्जा बचत हो और उपभोक्ताओं को बेहतर आराम मिल सके।
निष्कर्ष: ऊर्जा दक्षता बढ़ाकर भारत बचा सकता है अरबों रुपये और बिजली संकट
भारत में बढ़ती AC मांग बिजली आपूर्ति पर भारी दबाव डाल सकती है, लेकिन स्मार्ट नीतियों और ऊर्जा दक्षता में सुधार के जरिए इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। इससे ब्लैकआउट टाले जा सकते हैं, उपभोक्ताओं को आर्थिक बचत होगी और भारत एक वैश्विक कूलिंग हब के रूप में उभर सकता है।