भारत में महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण केवल एक नीतिगत पहल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प का विषय है। आज की महिलाएँ न केवल घर और परिवार की धुरी हैं, बल्कि व्यवसाय, राजनीति, विज्ञान और खेल जैसे हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रही हैं। हालांकि, उनका वास्तविक सशक्तिकरण तभी संभव है जब वे समाज में हर जगह सुरक्षित और संरक्षित महसूस करें। इसी दिशा में भारत सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं।

निर्भया फंड: महिला सुरक्षा के लिए समर्पित कोष
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय महिलाओं की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है। बढ़ते अपराधों को देखते हुए ‘निर्भया फंड’ की स्थापना की गई, जिसके तहत वित्तीय वर्ष 2024-25 तक 7712.85 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसमें से 76% राशि विभिन्न सुरक्षा परियोजनाओं पर खर्च की जा चुकी है। इस कोष से निम्नलिखित योजनाएँ संचालित की जा रही हैं:
- वन स्टॉप सेंटर (OSC): हिंसा से पीड़ित महिलाओं को चिकित्सा, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और आश्रय सुविधा प्रदान करने वाले केंद्र।
- महिला हेल्पलाइन (WHL-181): संकटग्रस्त महिलाओं के लिए 24×7 सहायता सेवा।
- इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम (ERSS-112): एकीकृत आपातकालीन सेवा, जो पुलिस, अग्निशमन और चिकित्सा सहायता को जोड़ती है।
- फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC): बलात्कार और पॉक्सो मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष अदालतें।
- महिला हेल्प डेस्क (WHD): पुलिस स्टेशनों में महिला शिकायतकर्ताओं के लिए विशेष सहायता डेस्क।
महिला सुरक्षा के लिए सरकारी पहलें
1. वन स्टॉप सेंटर (OSC)
ये केंद्र हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता प्रदान करते हैं। देशभर में 812 वन स्टॉप सेंटर कार्यरत हैं, जिन्होंने अब तक 10.80 लाख से अधिक महिलाओं की मदद की है।
2. 24×7 महिला हेल्पलाइन (181)
यह हेल्पलाइन पुलिस, अस्पताल और अन्य आपातकालीन सेवाओं से जोड़ती है। इसके माध्यम से महिलाएँ सरकारी योजनाओं की जानकारी भी प्राप्त कर सकती हैं।
3. इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम (ERSS-112)
‘112 इंडिया’ ऐप के जरिए महिलाएँ आपात स्थिति में अपनी लोकेशन के साथ अलर्ट भेज सकती हैं, जिससे त्वरित सहायता मिलती है।
4. शी-बॉक्स पोर्टल
यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों के लिए बनाया गया है। एक बार शिकायत दर्ज होने पर, यह सीधे संबंधित प्राधिकरण तक पहुँचती है।
5. पुलिस स्टेशनों में महिला सहायता डेस्क (WHD)
देशभर के 14,658 पुलिस थानों में महिला सहायता डेस्क स्थापित की गई हैं, जिससे महिलाएँ बिना डर अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें।
मनोसामाजिक सहायता और जागरूकता
हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक प्रभाव भी छोड़ती है। महिलाओं की मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए ‘प्रोजेक्ट स्त्री मनोरक्षा’ शुरू किया गया, जो वन स्टॉप सेंटर में मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करता है। इसमें प्रशिक्षित परामर्शदाता महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं।
महिला सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान
1. भारतीय न्याय संहिता 2023
यौन अपराधों के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार पर मृत्युदंड तक की सजा शामिल है।
2. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
यह अधिनियम महिलाओं को शारीरिक और मानसिक हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है।
3. दहेज निषेध अधिनियम, 1961
दहेज देना, लेना या इसकी माँग करना अपराध है। यदि दहेज उत्पीड़न के कारण विवाह के सात साल के भीतर महिला की मृत्यु हो जाती है, तो इसे ‘दहेज मृत्यु’ माना जाता है।
4. अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956
यह कानून मानव तस्करी और यौन शोषण के मामलों को रोकने के लिए लागू किया गया है।
5. बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
बाल विवाह को रोकने के लिए सीएमपीओ अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, जो ऐसे विवाहों को रोकने और जागरूकता बढ़ाने का कार्य करते हैं।
6. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
यह कानून सभी महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षा प्रदान करता है और नियोक्ताओं को आंतरिक समिति (IC) बनाने का निर्देश देता है।
महिला सुरक्षा को लेकर भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम बहुआयामी हैं। कानूनी उपायों, वित्तीय योजनाओं और सहायता सेवाओं के माध्यम से महिलाओं को सुरक्षा और समर्थन दिया जा रहा है। हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि हिंसा से पीड़ित महिलाओं को संपूर्ण सहायता मिल सके। महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और आत्मनिर्भर समाज बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि कानून प्रवर्तन, हेल्पलाइन, पुनर्वास और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत किया जाए।
महिला सुरक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज के हर व्यक्ति की भागीदारी से ही इसे साकार किया जा सकता है।