देश ही नहीं, दुनिया में वृद्धों के साथ उपेक्षा, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, हिंसा तो बढ़ती ही जा रही है, लेकिन अब बुजुर्ग माता-पिता से प्रॉपर्टी अपने नाम कराने या फिर उनसे गिफ्ट हासिल करने के बाद उन्हें यूं ही छोड़ देने, वृद्धाश्रम के हवाले कर देने, उनके जीवनयापन में सहयोगी न बनने की बढ़ती सोच आधुनिक समाज का एक विकृत चेहरा है। संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारांे के बढ़ते चलन ने वृद्धों के जीवन को नरक बनाया है। बच्चे अपने माता-पिता के साथ बिल्कुल नहीं रहना चाहते। ऐसे बच्चों के लिए सावधान होने का वक्त आ गया है, सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। अपने इस महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर बच्चे माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, तो माता-पिता की ओर से बच्चों के नाम पर की गई संपत्ति की गिफ्ट डीड को रद्द किया जा सकता है। यह फैसला माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत दिया गया है, जिससे वृद्धों की उपेक्षा एवं दुर्व्यवहार के इस गलत प्रवाह को रोकने में सहयोग मिलेगा। क्योंकि सोच के इस गलत प्रवाह ने न केवल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर दिया है बल्कि आदमी-आदमी के बीच के भावात्मक फासलों को भी बढ़ा दिया है।

वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करने वाला देश एवं उसकी नवपीढ़ी आज एक व्यक्ति, एक परिवार यानी एकल परिवार की तरफ बढ़ रहे हैं, वे अपने निकटतम परिजनों एवं माता-पिता को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, उनके साथ नहीं रह पा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सराहनीय पहल की है जिसमें कहा गया था कि अगर गिफ्ट डीड में स्पष्ट रूप से शर्तें नहीं हैं, तो माता-पिता की सेवा न करने के आधार पर गिफ्ट डीड को रद्द नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने कानून का ‘सख्त दृष्टिकोण’ अपनाया, जबकि कानून के वास्तविक उद्देश्य को पूरा करने के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता थी। यह फैसला एक महिला की उस याचिका पर आया जिसमें उसने अपने बेटे के पक्ष में की गई गिफ्ट डीड को रद्द करने की मांग की थी क्योंकि बेटे ने उसकी देखभाल करने से इनकार कर दिया था। परिवारों में संपत्ति के विवाद तो पता नहीं कब से चले आ रहे हैं, लेकिन आधुनिक समाज में ये विशेष रूप से बढ़ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से समाज में बुजुर्ग लोगों की उपेक्षा, दुर्व्यवहार एवं उनके प्रति बरती जा रही उदासीनता की त्रासदी से उन्हें मुक्ति देकर उन्हें सुरक्षा कवच मानने की सोच को विकसित करने की भूमिका बनेगी ताकि वृद्धों के स्वास्थ्य, निष्कंटक एवं कुंठारहित जीवन को प्रबंधित किया जा सकता है। वृद्धों को बंधन नहीं, आत्म-गौरव के रूप में स्वीकार करने की अपेक्षा है।

