ग्रामीणों की खुशहाली के लिये मनरेगा का सशक्तिकरण हो

ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज पर संसद की स्थायी समिति ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत प्रदान किए जाने वाले काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 दिन करने समेत श्रमिकों के दैनिक पारिश्रमिक को कम से कम 400 रुपये निर्धारित करने की सिफारिश की है, इन सिफारिशों से न केवल यह योजना अधिक सशक्त एवं प्रभावी होकर ग्रामीण जनजीवन के कमजोर लोगों के लिये राहत का माध्यम बनेगी, बल्कि ग्रामीण जीवन को नये भारत की बुनियाद बनायेगी। मनरेगा भारत सरकार द्वारा ग्रामीण गरीब एवं कमजोर लोगों के लिए उठाया गया एक क्रांतिकारी कदम है और वर्तमान में यह भारत में सबसे बड़ा स्व-लक्ष्यीकरण कार्यक्रम है। यह सामाजिक सुरक्षा, आजीविका सुरक्षा और लोकतांत्रिक सशक्तिकरण के माध्यम से ग्रामीण भारत में समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावशाली साधन है। जो नये भारत, सशक्त भारत, विकसित भारत का आधार होगा।

मनरेगा में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक अंकेक्षण और शिकायत निवारण तंत्र की व्यवस्था है, बावजूद मनरेगा में भी भ्रष्टाचार, अफसरशाही, अनियमितता, कोताही के कारण इस महत योजना पर भी समय-समय अंधेरा छाता रहा है। यों तो गिरावट हर स्तर पर है। समस्याएं भी अनेक मुखरित हैं पर राष्ट्रीय चरित्र को विघटित करने वाले भ्रष्टाचार एवं अनियमितता की काली छाया मनरेगा पर न पड़े, इसलिये स्थायी समिति का यह सुझाव स्वागतयोग्य है कि श्रमिकों की संतुष्टि, वेतन में देरी, भागीदारी के रुझान और योजना में वित्तीय अनियमितताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसीलिये समिति ने मनरेगा से जुड़े कार्यक्रम की कमियों के बारे में अहम जानकारी प्राप्त करने और मनरेगा की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधारों को लागू करने के लिए देशभर में स्वतंत्र एवं पारदर्शी सर्वेक्षण की सिफारिश की है। समिति ने उभरती चुनौतियों के मद्देनजर योजना को नया रूप देने पर भी जोर दिया है। मनरेगा बदलते वक्त और उभरती चुनौतियों के बावजूद आज भी प्रासंगिक है।

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करता है, जिससे लोगों को आय प्राप्त होती है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, यह योजना टिकाऊ संपत्तियां जैसे सड़क, नहर, तालाब, कुएं बनाने पर जोर देती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास में योगदान करती हैं। भारत आज भी गांवों का देश है, विकास की गंगा गांवों से होकर ही निकलती है। मनरेगा ग्रामीण परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अन्य रोजगार के अवसर सीमित हैं, यह श्रम शक्ति के सशक्तिकरण का प्रभावी माध्यम है। यह योजना ग्रामीण महिलाओं को रोजगार प्रदान करती है, जिससे वे सशक्त हो पाती हैं और समाज में सक्रिय भूमिका निभा पाती हैं। यदि किसी व्यक्ति को मनरेगा के तहत 15 दिनों के भीतर काम नहीं मिलता है, तो उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है, जो एक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है।

मनरेगा एक बहुआयामी योजना है, जिसके तहत विभिन्न उत्पादक परिसंपत्तियों का निर्माण किया जाता है, जैसे कि जल संरक्षण संरचनाएं, ग्रामीण सड़कें, और अन्य बुनियादी ढाँचे की परियोजनाएं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती हैं। मनरेगा के तहत रोजगार एक कानूनी अधिकार है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक पात्र व्यक्ति को रोजगार का दावा करने का अधिकार है। इस दूरगामी एवं ग्रामीण जनजीवन के उन्नयन एवं उत्थान के कार्यक्रम के लागू होने के बाद लाखों मजदूरों को काम मिला है। पलायन में काफी हद तक कमी आई। मनरेगा ने साबित किया कि भारत में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए वह आज भी उम्मीद की किरण है। इस कार्यक्रम से लाखों अकुशल श्रमिकों और महिलाओं को पूरे वर्ष में सौ दिन के रोजगार की गारंटी मिली। इससे बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवार लाभान्वित हुए।

यही वजह है कि इस कार्यक्रम में काम के दिन बढ़ाने की मांग अक्सर उठती रही है। अब संसद की स्थायी समिति ने भी मनरेगा पर भरोसा जताते हुए काम के दिनों की संख्या बढ़ा कर पांच महीने यानी डेढ़ सौ दिन करने और दैनिक पारिश्रमिक कम से कम चार सौ रुपए करने की सिफारिश की है, जो प्रासंगिक एवं बढ़ती महंगाई को देखते हुए जरूरी है। दरअसल, अभी इस कार्यक्रम के तहत मिलने वाली मजदूरी न्यूनतम जरूरतें एवं बुनियादी दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए भी अपर्याप्त हैं। मजदूरी वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप हों और ग्रामीण श्रमिकों को सम्मानजनक पारिश्रमिक प्रदान करें। रोजगार योजना के लिए आबंटित राशि में लंबे समय से ठहराव पर समिति की चिंता इसी संदर्भ में है। कोई दो राय नहीं कि इसकी राशि बढ़ने से इसकी प्रभावशीलता बढ़ेगी।

समिति ने कहा, बदलते समय और उभरती चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए योजना में सुधार की आवश्यकता है। समिति मंत्रालय से उन विकल्पों पर विचार करने का आग्रह करती है, जिससे मनरेगा अधिक सशक्त, पारदर्शी एवं प्रभावी बन सके। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ग्रामीण विकास योजना को बल देने में सहायक है। हालांकि मनरेगा निरन्तर सवालों से घिरी रही है, इसमें वित्तीय अनियमितता की भी शिकायतें मिलती रही हैं। इसके प्रति श्रमिकों का रुझान घटने और मजदूरी देर से मिलने पर सवाल उठते रहे हैं। ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय की स्थायी समिति ने तीन साल पहले मनरेगा का विश्लेषण करते हुए कई सुझाव दिए थे। तब उस समिति ने भी इस कार्यक्रम को नया रूप देने के लिए काम के गारंटीशुदा दिनों को सौ से बढ़ा कर डेढ़ सौ करने की सिफारिश की थी और सभी राज्यों में समान मजदूरी दर करने का सुझाव दिया था। अब संसद की समिति ने उन सुझावों पर एक तरह से मुहर लगाई है। अगर मनरेगा में नीतिगत सुधारों को लागू करने के लिए स्वतंत्र और पारदर्शी सर्वेक्षण होगा, तो इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे।

मनरेगा ने अपनी तार्किक सार्थकता साबित की है, लेकिन अभी इसमें व्यापक सुधारों की अपेक्षा है। देखने में आ रहा है मनरेगा से लाभान्वित लोगों को अक्सर बिना काम के ही राशि दी जा रही है, सरकार को इन लोगों की श्रम-शक्ति को देश-विकास के कार्यों में नियोजित करने पर भी ध्यान देना चाहिए। मनरेगा योजना के अन्तर्गत कौशल विकास पर बल दिया जाना चाहिए। योजना भले ही अकुशल श्रमिकों के लिए अवसर प्रदान करने पर केंद्रित है, लेकिन उन्हें अपने कौशल को विकसित करने और बढ़ाने का अवसर मिलने से यह योजना देश-विकास का माध्यम बन सकती है। वनीकरण, जल संरक्षण और सड़क निर्माण जैसी विभिन्न परियोजनाओं में उनकी भागीदारी से श्रमिकों को व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होगा। वे नए कौशल सीख सकते हैं जिनका उपयोग मनरेगा द्वारा प्रदान किए जाने वाले भविष्य के रोजगार अवसरों के लिए किया जाएगा। मनरेगा योजना सड़कों, नहरों, तालाबों और सिंचाई सुविधाओं जैसी परिसंपत्तियों के विकास का समर्थन करते हुए रोजगार प्रदान करें, इस योजना को कनेक्टिविटी, कृषि उत्पादकता, वन-विकास से भी जोड़ा जाना चाहिए ताकि प्राकृतिक संसाधनों को बचाने, पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सके। जिससे ग्रामीण जीवन में नए मनुष्य का जन्म होगा। नई पात्रता का निर्माण होगा, जहां हमारी ग्रामीण संस्कृति पुनः अपने मूल्यों, विरासत एवं उपयोगिता के साथ प्रतिष्ठापित होगी।

मनरेगा योजना अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) सहित समाज के हाशिए पर पड़े समूहों को समान पहुँच प्रदान करने पर केंद्रित है। यह सुनिश्चित करता है कि इन कमज़ोर समूहों को रोज़गार तक समान पहुँच मिले और उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव न हो। ताकि एक संतुलित, समानतामूलक एवं आदर्श समाज-व्यवस्था को आकार दिया जा सके। मनरेगा योजना ग्रामीण विकास, गरीबी उन्मूलन, कौशल संवर्धन और पर्यावरणीय स्थिरता में महत्वपूर्ण आयाम बनकर सामने आये। तभी ग्रामीण परिवारों को सशक्त बनाने और भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के व्यापक विकास को अवतरित करने का सूरज उदित हो सकेगा।

ललित गर्ग
ललित गर्ग

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