गुरु रवींद्रनाथ टैगोर जयंती
– सुरेश सिंह बैस शाश्वत
भारत में सबसे पहले नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले राष्ट्रकवि रविंद्रनाथ टैगोर ही थे। राष्ट्रगान “जनगणमन” के रचयिता श्री रविंद्रनाय टैगोर के नाम से ही संगीत की एक अलग धारा भी प्रचलित है जिसे रविंद्र संगीत के नाम से जाना जाता है। रविंद्र नाथ टैगोर शायद प्रथम व्यक्ति हैं जो दो राष्ट्र के राष्ट्रगान के रचयिता हैं। जिसमें पहले भारत दूसरा बांग्लादेश का राष्ट्रगान इन्हीं के द्वारा लिखा गया है। जब 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर जलियावाला बाग में अंग्रेज हुकूमत द्वारा गोलीकांड किया गया, जिसमें एक हजार लोग मारे गए एवं दो हजार के करीब घायल हो गए। इस घटना का सारे देश में व्यापक निंदा एवं विरोध किया गया। इससे विक्षुब्ध होकर ही विरोध में टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके सम्मान में दी गई “सर” की उपाधि लौटा दी। उन्होंने वायसराय को भेजे पत्र में लिखा “समय आ गया है जब सम्मान की पदवियां हमारी शर्म और अपमान के बेतुके आंदोलन संदर्भ में और अधिक उभारती हैं। अपनी सभी विशेषताओं को त्यागकर मैं अपने उन देशवासियों के साथ खड़ा रहना चाहता हूं जो अपनी तथाकथित महत्वहीनता के कारण ऐसी अप्रतिष्ठित दंश झेल रहे हैं, जिसे मानवीय नहीं कहा जा सकता”। इस हत्याकांड के बाद स्वराज्य के संघर्ष में एक नया मोड़ आया।
पच्चीस से भी अधिक वर्ष पूर्व लिखे गए रविंद्रनाथ टैगोर के एक गीत को स्वतंत्र भारत का राष्ट्रगान (जनगण मन ) बनाया गया। दो अन्य राष्ट्रीय गीत “वंदेमातरम” और “सारे जहां से अच्छा” बंकिमचंद्र और इकबाल ने लिखे । सन 1913 में रविंद्रनाथ ठाकुर को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनके साहित्य शैली की साधना में आजादी के आंदोलन का गहरा प्रभाव कलाकारों पर पड़ा। इनके साहित्य ने जनता में देशप्रेम जगाने की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त उत्पीड़नों और अन्य अधिकार हनन के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जनता को जागृत किया तो वहीं कला के क्षेत्र में भी खूब कार्य किया। रविंद्र नाथ टैगोर और दूसरे कलाकारों ने भारत में भारत की सांस्कृतिक परंपरा के चित्रकला को पुनर्जीवित करने का बहुतेरा प्रयास किया। इस शैली को बंगाल शैली कहते हैं। इन कलाकारों ने स्वतंत्रता के संघर्ष में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । रविंद्र नाथ ठाकुर ने बांग्ला भाषा में अनेक रचनाओं को सृजित किया है।

