-12 मई गौतम बुद्ध जयंती पर विशेष-
बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम कपिलवस्तु (नेपाल) के शाक्य राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। उनकी माता का नाम महामाया था। उनका जन्म लुम्बिनी वन में उस समय हुआ था, जब उनकी माता अपने पिता के घर जा रहीं थी। उनके जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। उनकी जन्मतिथि पाँच सौ सत्तर वर्ष ईसा पूर्व मानी जाती है। उनके जन्म पर जो पुरोहित उपस्थित थे, उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि वह या तो चक्रवर्ती राजा होगा या फिर महाज्ञानी साधु सन्यासी। कालांतर में यह भविष्यवाणी अक्षरसः सत्य साबित हुई।

सिद्धार्थ बचपन से ही चिंतनशील थे। खेलकूद व अन्य मनोरंजन में उनका मन नहीं लगता था। राजा को भय हुआ कि कहीं उनका पुत्र साधु न बन जाये। अतः उन्होंने उसे गृहस्थ जीवन में प्रवृत्त करने के लिए उसका विवाह यशोधरा से कर दिया। गौतम का एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। लेकिन होता वही है, जो विधाता को मंजूर रहता है।
चार घटनाओं के कारण युवराज सिद्धार्थ का जीवन पूरी तरह से बदल गया। इन घटनाओं को “चार महान संकेत” कहा जाता है।
एक रात वह अपनी पत्नी, पुत्र तथा सांसारिक वैभवों को त्याग कर राजमहल से निकल गये। इस घर त्याग को “महाभिनिष्क्रमण” कहा जाता है।
गौतम पहले तपस्वी ब्राह्मणों के शिष्य बने, किंतु उनकी शिक्षा से संतोष नहीं हुआ। वे उरुबेला वन में पाँच शिष्यों के साथ कठोर तपस्या के लिए गये। उन्होंने इतनी कठोर तपस्या की कि शरीर क्षीण हो गया, और एक बार तो वे मरणासन्न हो गये। इसके बाद उन्होंने दूध पीकर प्राण रक्षा की और यह अनुभव किया कि कठोर तपस्या से ज्ञान नहीं प्राप्त होता। उन्होंने मध्यम मार्ग को अपनाया।
गया के निकट पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान लगाकर उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और तब से वे “बुद्ध” कहलाए।
भगवान बुद्ध की शिक्षाएं
1. चार आर्य सत्य
- संसार में कष्ट और शोक तथा दुःख हैं – यह प्रथम आर्य सत्य है।
- इसका कारण तृष्णा है – यह द्वितीय आर्य सत्य है।
- कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है – यह तृतीय आर्य सत्य है।
- इच्छाओं के दमन से छुटकारा मिल सकता है – यह चतुर्थ आर्य सत्य है।
2. मध्यम मार्ग / अष्टांगिक मार्ग
बुद्ध ने आठ सिद्धांतों का मार्ग बताया, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। यह है:
- सम्यक दृष्टि
- सम्यक संकल्प
- सम्यक वाक्
- सम्यक कर्मान्त
- सम्यक जीविका
- सम्यक उद्योग
- सम्यक स्मृति
- सम्यक समाधि
उन्होंने कहा — “न तो जीवन को बहुत अधिक भोग-विलास में बिताना चाहिए और न ही कठोर तपस्या करके शरीर को कष्ट देना चाहिए। यही जीवन का मध्यम मार्ग है।”
3. निर्वाण
निर्वाण का अर्थ है – जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। जब मनुष्य की वासनाएं और अहंकार नष्ट हो जाते हैं, तभी वह निर्वाण प्राप्त करता है। हर जाति, वर्ग और लिंग का व्यक्ति इस मार्ग से निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
4. कर्म का सिद्धांत
बुद्ध कहते थे – “जो मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल भोगना पड़ता है।” वर्तमान जन्म में हम पूर्व जन्मों के कर्म का फल भोगते हैं और भविष्य में इस जन्म के कर्मों का फल मिलेगा। इसलिए अच्छे कर्म करना चाहिए।
5. अहिंसा
बुद्ध ने अहिंसा को अत्यंत महत्व दिया। उन्होंने कहा – “किसी भी जीव को कष्ट मत पहुँचाओ। सब जीवों से प्रेम करो।” उन्होंने यज्ञों में बलिदान को गलत बताया।
6. ईश्वर के प्रति विचार
बुद्ध आत्मा या परमात्मा के विवादों में नहीं पड़े। उन्होंने किसी शारीरिक परमात्मा में विश्वास नहीं किया। उनका मानना था कि संसार प्राकृतिक नियमों (धर्म) से संचालित होता है।
7. दस शील
बुद्ध ने अपने अनुयायियों के लिए दस आचार संहिताएं (दसशील) बताईं:
- दूसरों की संपत्ति का लोभ न करना
- हिंसा से दूर रहना
- झूठ न बोलना
- नशीली वस्तुओं से दूर रहना
- व्यभिचार से बचना
- नृत्य-संगीत में भाग न लेना
- सुगंधित वस्तुओं व फूलों का प्रयोग न करना
- अनुचित समय पर भोजन न करना
- कोमल बिस्तर का त्याग
- स्त्री और धन का त्याग
8. सम्यक समाधि
इन सात मार्गों के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता से निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यही सम्यक समाधि है। बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को कालचक्र कहा है – समय और कर्म का अटूट संबंध।
दुख या रोग, सुख या स्वास्थ्य – सब हमारे कर्मों और विचारों का ही फल हैं।