“बलोचिस्तान: एक सुलगता ज्वालामुखी” के. नाथ द्वारा रचित एक गंभीर और शोधपरक कृति है, जो बलोचिस्तान के संघर्ष, शोषण और स्वतंत्रता की जद्दोजहद को विस्तार से प्रस्तुत करती है। डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक बलोचिस्तान: एक सुलगता ज्वालामुखी जिसके लेखक के. नाथ है। इस पुस्तक में कुल 13 अध्याय हैं, जो ऐतिहासिक, राजनैतिक, भू-राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं को समेटे हुए हैं।

पुस्तक में बताया गया है कि बलोचिस्तान की समस्या भारत के विभाजन के समय से ही शुरू हो गई थी। यह क्षेत्र कभी स्वतंत्र था, जिसे ब्रिटिश साम्राज्य और फिर पाकिस्तान ने अपने हितों की पूर्ति के लिए अधीन कर लिया। लेखक विस्तार से बताते हैं कि कैसे कलात राज्य, जो आज के बलोचिस्तान का एक बड़ा हिस्सा था, को पहले एक संप्रभु राष्ट्र माना गया था। 1 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी सेना ने अंग्रेज जनरल के नेतृत्व में कलात पर कब्जा किया और खान मीर अहमद यार खान से जबरन विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराए गए। पुस्तक में इस जबरन विलय को ब्रिटिश साम्राज्य की एक बड़ी कूटनीतिक चाल बताया गया है, जो उस समय रूस के प्रभाव को एशिया में रोकना चाहता था।
1948 से आज तक बलोच लगातार पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्षरत हैं। पुस्तक में अनेक विद्रोहों का उल्लेख है, जैसे 1948 में नवाबजादा अब्दुल करीम खान और 1958 में नवाब नौरोज खान के नेतृत्व में हुए विद्रोह। 2009 के बाद से विद्रोह की आग पूरे बलोचिस्तान में फैल चुकी है।
लेखक ने स्पष्ट रूप से बताया है कि बलोचिस्तान में नागरिक प्रशासन नाममात्र का है और वहाँ की पूरी व्यवस्था पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों के हाथ में है। बलोचिस्तान तांबा, सोना, तेल, गैस और कोयले जैसी अकूत खनिज संपदाओं से भरपूर है, फिर भी यह पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा और गरीब प्रांत है। लेखक इसे ‘संपत्ति का शाप’ बताते हैं, जहां संसाधनों का दोहन तो हो रहा है लेकिन स्थानीय जनता को कुछ भी नहीं मिल रहा। आज बलोच आंदोलन सिर्फ स्वायत्तता नहीं बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता की मांग कर रहा है। नवाब अकबर बुग्टी की हत्या ने आंदोलन को नया मोड़ दे दिया। बलोच जनमानस अब पाकिस्तान में रहने के पक्ष में नहीं है। लेखक इसे पाकिस्तान के संभावित विघटन की भूमिका मानते हैं। भारत ने बलोचिस्तान की समस्या को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। भारत ने न केवल इस क्षेत्र के साथ सहानुभूति नहीं दिखाई बल्कि इसे कभी कूटनीतिक स्तर पर समर्थन भी नहीं दिया, जबकि बलोच लगातार पाकिस्तान से अत्याचार झेल रहे हैं।
के. नाथ ने चार महाद्वीपों में भ्रमण किया है और उनका अध्ययन क्षेत्र नील नदी से सिंधु तक विस्तृत है। उनकी लेखनी में अनुभव, शोध और संवेदना का सुंदर समावेश देखने को मिलता है। विषय की गंभीरता को उन्होंने सटीक आंकड़ों और ऐतिहासिक तथ्यों से प्रस्तुत किया है।



