31 मई रानी अहिल्याबाई होलकर जयंती पर विशेष-

मराठा साम्राज्य की विशाल जिम्मेदारियों को अनेक कठिनाईयों के बावजूद अपने नाजुक मगर दृढ़ कंधों पर कुशलता पूर्वक ढोने वाली वीर मराठिनी देवी अहिल्या बाई होल्कर बचपन में कुशाग्र बुद्धि एवं क्षत्रियोचित गुणों की स्वामिनी थी। उनका विवाह मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में ही मल्हार राव होल्कर के एकमात्र पुत्र खंडेरावल से हुआ था। नववधु अहिल्या दक्षिण के चोड़ी नामक छोटे से गाँव के पटेल भाणरोजी सिंधिया की पुत्री थी। अहिल्या के पति खंडेराव छोटी उम्र में ही बिगड़ैल और ऐसा कोई भी दुर्गुण नहीं बचा रह गया था, जो उनमें न हो। तभी तो मल्हारराव ने अनेक इंद्र परियों सी लड़कियों के भी प्रस्ताव आने के बावजूद रंगरुप में साधारण एवं सांवली सी कन्या अहिल्या को अपनी पुत्रवधु के रूप में चुना था।
वृद्ध मल्हारराव की पारखी आँखों ने उन्हें देखते ही पहचान लिया था कि मेरे नकारा एवं बिगड़ैल पुत्र को सुधार एवं संवारने के साथ साथ मराठा परिवार की श्रेष्ठ बहु साबित होगी। कालांतर में यह हुआ भी ठीक वैसा ही जैसा मल्हार राव ने सोचा था। मल्हारराव को अपने कई लोगों की उल्लाहने भी सुनने को मिली कि कहाँ परियों सी कन्याओं के प्रस्ताव को ठुकराकर आपने एक साधारण सी लड़की से अपने एकमात्र पुत्र का विवाह कर रहे हैं। पर उन्होंने किसी के भी बातों पर कान न धरते हुये वहीं विवाह सम्पन्न कराया।

