2025 के चुनावों के बहाने भारतीय लोकतंत्र, नेतृत्व और नारी शक्ति के उत्कर्ष की विश्लेषणात्मक प्रस्तुति
दिल्ली 2025: रेखा गुप्ता का सियासी सफर” एक राजनीतिक यात्रा का ऐसा लेखबद्ध दस्तावेज़ है जो महज घटनाओं की श्रृंखला नहीं, बल्कि उन घटनाओं के पीछे की मानसिकता, रणनीति और नेतृत्व दृष्टिकोण को भी उजागर करता है। यह पुस्तक भारत की राजधानी दिल्ली के 2025 के ऐतिहासिक चुनावों के बहाने भारतीय लोकतंत्र के चरित्र, मतदाता की परिपक्वता और नेतृत्व परिवर्तन की जटिल प्रक्रियाओं की पड़ताल करती है। लेखक गोपाल शर्मा, जिन्होंने शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में वर्षों तक अपना योगदान दिया है, इस राजनीतिक यात्रा को एक अनुभवी साहित्यकार और गहन शोधकर्ता की दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं।
पुस्तक को 15 अध्यायों में बांटा गया है, जिनमें हर अध्याय एक नए मोड़, नए दृष्टिकोण और नई राजनीतिक अनुभूति का वाहक है। पुस्तक की प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक, यह पाठक को उस परिवर्तनशील राजनीति के बीच ले जाती है, जहाँ नेता बनते हैं, गिरते हैं और फिर नई नेतृत्व-धारा उभरती है।
शपथ ग्रहण समारोह से शुरुआत कर पुस्तक एक दमदार राजनीतिक आरंभ का आभास कराती है। बिखरते केंद्र की अबूझ कहानी और कौन बनेगा मुख्यमंत्री? जैसे अध्याय गहन विश्लेषण और अंदरूनी राजनीति की बारीकियों से भरपूर हैं। बात उस रात की! और गूंजे विजय शंखनाद! जैसे अध्यायों में भावनात्मक और नाटकीय तत्वों की झलक भी मिलती है। आरती यमुना मैया की! और दिल्ली की सत्ता का नया चेहरा जैसे अध्याय प्रतीकात्मक राजनीति और सांस्कृतिक संदर्भों को जोड़ते हैं। राजनीति में नारी उत्कर्ष की नई इबारत विशेष रूप से प्रेरक अध्याय है, जो महिला नेतृत्व की महत्ता को रेखांकित करता है।

“रेखा गुप्ता तक की मेरी यात्रा”, लेखक की व्यक्तिगत भागीदारी और शोध यात्रा की आत्मीय झलक देता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह लेखन केवल एक विश्लेषण नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया भी है।
यह पुस्तक केवल एक राजनेता की जीवनी नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में उभरते सामाजिक बदलावों, नेतृत्व के बदलते मानकों और मतदाता की जागरूकता की कथा है। रेखा गुप्ता का छात्रसंघ राजनीति से मुख्यमंत्री पद तक का सफर प्रेरणादायक तो है ही, साथ ही यह सत्ता तक पहुंचने की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती भी देता है। लेखक बड़ी कुशलता से अरविंद केजरीवाल के पतन और भाजपा की रणनीतिक विजय को नाटकीयता से बचाकर यथार्थपरक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। दिल्ली की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता और राजनीतिक चेतना पुस्तक के हर पृष्ठ पर स्पष्ट झलकती है।
गोपाल शर्मा की भाषा गम्भीर, विद्वत्तापूर्ण किंतु सहज है। राजनीतिक विमर्श को भी उन्होंने साहित्यिक गरिमा और गहराई के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने जमीनी राजनीति और उच्च स्तरीय नेतृत्व के बीच की दूरी को शब्दों से पाटने का साहसिक प्रयास किया है। कहीं-कहीं पर पाठक को लगेगा कि लेखन में अत्यधिक विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति है, लेकिन वह लेखक की अकादमिक पृष्ठभूमि को देखते हुए स्वाभाविक प्रतीत होती है। गोपाल शर्मा की विद्वता का प्रमाण उनकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ, चार दशकों का शिक्षण अनुभव, और 100 से अधिक पुस्तकों का लेखन है। उनके लेखन में राजनेताओं, समाज सुधारकों और साहित्यकारों के जीवन और विचारों की गहन पड़ताल मिलती है। चाहे वह नेल्सन मंडेला, कमला हैरिस, ऋषि सुनक, नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, राम नाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू जैसी प्रभावशाली शख्सियतों की जीवनियाँ हों या फिर जाक देरिदा और मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यिक दिग्गजों पर उनके आलोचनात्मक अध्ययन — हर पंक्ति में शोध और समझ की गहराई स्पष्ट झलकती है। यह पुस्तक भी उन्हीं की समर्पित शोधशीलता, साहित्यिक समझ और राजनीतिक दृष्टि का प्रमाण है। उन्होंने न केवल रेखा गुप्ता को एक राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया है, बल्कि उन्हें एक प्रतीकात्मक महिला नेतृत्व के रूप में गढ़ा है।
वर्तमान भारत में जहाँ राजनीति अब केवल नीतियों का नहीं, छवियों का खेल बनती जा रही है, वहाँ यह पुस्तक एक ज़रूरी हस्तक्षेप है। यह हमें बताती है कि चुनाव जीतना केवल नारा और प्रचार नहीं, बल्कि भरोसे, संघर्ष और रणनीति का परिणाम है। 2025 के दिल्ली चुनावों को जिस दृष्टिकोण से पुस्तक में चित्रित किया गया है, वह पत्रकारिता के तात्कालिक विश्लेषणों से कहीं आगे जाकर इतिहास का हिस्सा बन जाता है। यह पुस्तक लोकतंत्र की संपूर्ण प्रक्रिया को एक केस स्टडी के रूप में प्रस्तुत करती है।
रेखा गुप्ता की जीत केवल एक चुनावी सफलता नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में महिला नेतृत्व की नयी इबारत है। लेखक ने इस बात को बहुत ही संजीदगी और शक्ति के साथ रेखांकित किया है कि किस तरह एक महिला ने संघर्षों की राह से होते हुए नेतृत्व की ऊँचाइयों को छुआ। “दिल्ली 2025: रेखा गुप्ता का सियासी सफर” एक अत्यंत पठनीय, शोधपरक और प्रेरणादायक पुस्तक है, जो राजनीति के केवल बाह्य स्वरूप को नहीं, बल्कि उसके भीतरी ताने-बाने को उजागर करती है। यह पुस्तक राजनीतिक शौकीनों, पत्रकारिता के विद्यार्थियों, प्रशासनिक तैयारी कर रहे युवाओं और समकालीन इतिहास में रुचि रखने वाले हर पाठक के लिए आवश्यक है। यह पुस्तक न केवल रेखा गुप्ता के नेतृत्व की कहानी है, बल्कि उस भारत की भी कहानी है, जो अब नए नेतृत्व, नए दृष्टिकोण और नई राजनीति की ओर अग्रसर है।
पुस्तक : रेखा गुप्ता का सियासी सफर
लेखक : गोपाल शर्मा
प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स


