COVID-19 महामारी के दौरान दुनियाभर में टीकाकरण ने लाखों लोगों की जान बचाई। भारत जैसे विशाल देश में जब करोड़ों नागरिकों ने टीका लगवाया, उसी समय सोशल मीडिया और ग़ैर-आधिकारिक स्रोतों के ज़रिए कई भ्रांतियाँ भी फैलाई गईं। इन मिथकों ने लोगों के मन में भय, संदेह और भ्रम पैदा किया — जिससे कई लोगों ने वैक्सीन से दूरी बना ली।

इस लेख में हम कोविड-19 टीकाकरण से जुड़ी पाँच प्रमुख भ्रांतियों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रकाश डालेंगे। हर भ्रम के पीछे का सच हम प्रमाणिक शोध, स्वास्थ्य संगठनों के बयान और विश्लेषणात्मक आँकड़ों के आधार पर समझेंगे।
भ्रांति 1: “COVID-19 वैक्सीन गर्भपात (Miscarriage) का खतरा बढ़ाती है”
तथ्य:
वैज्ञानिक शोध और 1.5 लाख से अधिक महिलाओं पर आधारित मेटा-विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ है कि COVID-19 वैक्सीन के कारण गर्भपात का खतरा नहीं बढ़ता। वास्तव में, टीका लगवाने वाली महिलाओं में गर्भपात की दर सामान्य जनसंख्या जितनी ही है।
शोध पर आधारित जानकारी:
ब्रिटेन और अमेरिका के प्रतिष्ठित शोध संस्थानों (University of Edinburgh, Imperial College London, UCL) द्वारा किए गए इस सिस्टमेटिक रिव्यू और मेटा-विश्लेषण में कुल 21 अध्ययन (5 RCT और 16 ऑब्ज़र्वेशनल) शामिल किए गए, जिनमें 149,685 महिलाओं के गर्भावस्था परिणामों का विश्लेषण किया गया।
- मिसकैरेज की दर: टीकाकरण कराने वाली महिलाओं में गर्भपात की औसत दर 9% रही (95% CI: 5%–14%)
- जोखिम अनुपात (Risk Ratio): गैर-टीकाकृत महिलाओं की तुलना में, टीका प्राप्त करने वाली महिलाओं में मिसकैरेज का जोखिम नहीं बढ़ा (RR = 1.07, 95% CI: 0.89–1.28)
इसके अलावा, जीवित जन्म या चल रही गर्भावस्था की दरें दोनों समूहों में लगभग समान पाई गईं (RR = 1.00, 95% CI: 0.97–1.03)।
भ्रांति क्यों फैली?
कुछ शुरुआती सिद्धांतों में यह आशंका जताई गई थी कि COVID-19 mRNA वैक्सीन से उत्पन्न एंटीबॉडीज़ “syncytin-1” नामक प्लेसेंटा प्रोटीन पर हमला कर सकती हैं, जिससे भ्रूण प्रत्यारोपण और विकास प्रभावित हो सकता है।
लेकिन बाद में Spike Protein और Syncytin-1 के बीच बहुत कम समानता पाई गई और यह दावा प्रयोगात्मक रूप से पूरी तरह खारिज कर दिया गया। WHO, ACOG (अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट) और Royal College of Obstetricians & Gynaecologists जैसे संस्थानों ने भी वैक्सीन को गर्भावस्था में सुरक्षित माना है।
विशेषज्ञों की राय:
“COVID-19 टीकाकरण और गर्भपात के बीच कोई वैज्ञानिक संबंध नहीं पाया गया है। भ्रांतियों पर विश्वास करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।”
— Michael P. Rimmer, Lead Author, University of Edinburgh
“गर्भवती महिलाओं में COVID-19 संक्रमण खुद एक जोखिम है। टीकाकरण उन्हें और शिशु को सुरक्षित रखता है।”
— Royal College of Obstetricians & Gynaecologists
निष्कर्ष:
COVID-19 वैक्सीन लेने से गर्भपात का खतरा नहीं बढ़ता है। यह भ्रांति पूरी तरह से आधारहीन है और वैज्ञानिक रूप से खंडित की जा चुकी है। इसके विपरीत, कोविड संक्रमण से गर्भवती महिलाओं में जटिलताएँ होने का खतरा अधिक रहता है, इसलिए टीकाकरण आवश्यक और सुरक्षित है।
भ्रांति 2: “COVID-19 वैक्सीन हार्ट अटैक या अचानक मृत्यु का कारण बनती है”
तथ्य:
भारत सरकार, ICMR, AIIMS और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक रिपोर्टों द्वारा यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया गया है कि COVID-19 वैक्सीन और अचानक हृदयगति रुकने या हार्ट अटैक के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। ये भ्रांतियाँ गलत सूचनाओं और सोशल मीडिया पर फैलाई गई अफवाहों पर आधारित हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
सरकार की आधिकारिक स्थिति (PIB और ICMR):
- ICMR और NCDC ने 18–45 वर्ष के स्वस्थ दिखने वाले युवाओं में अचानक मृत्यु की घटनाओं की जांच के लिए दो समांतर अध्ययन किए:
- पहला अध्ययन: “Factors associated with unexplained sudden deaths among adults aged 18–45 years in India”
- अवधि: मई से अगस्त 2023
- स्थान: 47 मेडिकल संस्थान, 19 राज्यों/UTs
- निष्कर्ष: COVID-19 टीकाकरण और अचानक मृत्यु के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं
- दूसरा अध्ययन: AIIMS, New Delhi द्वारा जारी, अभी प्रगति में है — प्रारंभिक परिणामों में पाया गया कि हार्ट अटैक (Myocardial Infarction) आज भी युवाओं में अचानक मृत्यु का प्रमुख कारण है, वैक्सीन नहीं।
- पहला अध्ययन: “Factors associated with unexplained sudden deaths among adults aged 18–45 years in India”
“Most sudden deaths are attributed to genetics, lifestyle, or post-COVID complications—not vaccination.”
— Indian Council of Medical Research (ICMR)
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक रिपोर्ट से निष्कर्ष (National Academies 2024 Report):
- Pfizer-BioNTech और Moderna वैक्सीन के संबंध में Myocardial Infarction (MI) यानी हार्ट अटैक की समीक्षा की गई।
- निष्कर्ष (Causality Conclusion):
- Evidence favors rejection of a causal relationship
- यानी: “टीकाकरण और हार्ट अटैक के बीच कारणात्मक संबंध होने की संभावना को वैज्ञानिक रूप से खारिज किया गया है।”
“The evidence base clearly supports that mRNA-based COVID-19 vaccines do not increase the risk of myocardial infarction (heart attack).”
— National Academies of Sciences, Engineering, and Medicine (2024)
यह भ्रांति क्यों फैली?
- सोशल मीडिया पर वायरल हुए कुछ भ्रामक वीडियो जिसमें युवाओं की अचानक मृत्यु को वैक्सीन से जोड़ दिया गया।
- सांयोगिक घटनाओं (coincidences) को बिना वैज्ञानिक जांच के निष्कर्ष मान लिया गया।
- पोस्ट-COVID जटिलताओं या पूर्व-निहित हृदय रोग को नजरअंदाज किया गया।
विशेषज्ञों की राय:
“Statements linking COVID vaccination to sudden deaths are false, misleading and risk public trust in vaccines.”
— Press Information Bureau (PIB)
“No changes in pattern of causes of sudden deaths were observed post vaccination as compared to previous years.”
— AIIMS, New Delhi (interim findings)
निष्कर्ष:
COVID-19 वैक्सीन हृदयाघात या अचानक मृत्यु का कारण नहीं है। यह भ्रम वैज्ञानिक तथ्यों, सरकार की जांच रिपोर्टों और वैश्विक शोधों से खंडित हो चुका है। ऐसे दावे न केवल ग़लत हैं, बल्कि वे वैक्सीन हिचकिचाहट को बढ़ावा देते हैं, जो जनस्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
भ्रांति 3: “COVID-19 वैक्सीन हमारे DNA को बदल देती है”
तथ्य:
कोविड-19 mRNA वैक्सीन (जैसे Pfizer और Moderna) हमारे DNA को नहीं बदलती। यह भ्रांति पूरी तरह से निराधार है और इसे वैज्ञानिक शोधों ने कई बार खंडित किया है। mRNA वैक्सीन सेल के साइटोप्लाज़्म (cytoplasm) में कार्य करती है और कभी भी न्यूक्लियस (जहाँ DNA स्थित होता है) में प्रवेश नहीं करती।
क्या कहती है नवीनतम वैज्ञानिक रिपोर्ट?
रिसर्च पेपर: Vaccines (2024), Vol. 12, Article 626
यह अध्ययन 534 कोरियन नागरिकों पर आधारित है, जिनको mRNA वैक्सीन (Pfizer/Moderna) दी गई थी। इसका उद्देश्य यह समझना था कि अलग-अलग व्यक्तियों में एंटीबॉडी निर्माण में जो अंतर देखा गया, वह मानव जीन में भिन्नता (genetic variation) के कारण हो सकता है या नहीं।
मुख्य निष्कर्ष:
- HDAC9 नामक जीन का SNP (rs7795433) टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी स्तर में अंतर का मुख्य कारण पाया गया।
- जिन व्यक्तियों के पास AA जीनोटाइप था, उनमें उच्च स्तर की एंटीबॉडी विकसित हुईं।
- GG जीनोटाइप वाले व्यक्तियों में एंटीबॉडी स्तर अपेक्षाकृत कम थे।
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है:
यह शोध केवल यह दर्शाता है कि कुछ जीन व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
कहीं भी यह नहीं दर्शाया गया कि वैक्सीन ने DNA को बदला।
mRNA कैसे काम करता है?
- mRNA वैक्सीन में वायरस के स्पाइक प्रोटीन का “संकेत” होता है, जिसे शरीर की कोशिकाएं पढ़कर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करती हैं।
- यह mRNA न्यूक्लियस में नहीं जाता और कुछ ही घंटों में शरीर द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।
- DNA तक इसकी पहुँच संभव ही नहीं होती।
“There is no plausible biological mechanism by which mRNA vaccines can alter or integrate into human DNA.”
— National Academies of Sciences
यह भ्रांति क्यों फैली?
- mRNA शब्द में “genetic” जैसा प्रभाव लगने के कारण लोगों को भ्रम हुआ।
- कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स ने यह झूठा दावा किया कि mRNA शरीर के DNA में प्रवेश कर स्थायी परिवर्तन करता है।
- वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में आम जनता में डर फैलाया गया।
निष्कर्ष:
कोविड-19 mRNA वैक्सीन आपके DNA को नहीं बदलती। यह भ्रांति वैज्ञानिक रूप से गलत है। आधुनिक mRNA तकनीक एक अत्यधिक नियंत्रित और सुरक्षित प्रक्रिया है जो केवल प्रतिरक्षा तंत्र को सिखाती है — किसी भी प्रकार से आनुवंशिक बदलाव नहीं करती।
भ्रांति 4: “टीकाकरण के बाद व्यक्ति वायरस (spike protein) फैला सकता है, जिससे दूसरों को संक्रमण हो सकता है”
तथ्य:
COVID-19 टीकाकरण के बाद व्यक्ति वायरस “shed” नहीं करता जिससे दूसरे संक्रमित हो जाएं। यह भ्रांति तथ्यों की गहरी गलत व्याख्या पर आधारित है। वैज्ञानिक प्रमाण यह दर्शाते हैं कि टीका लगाने से शरीर में spike protein अस्थायी रूप से उत्पन्न होता है, लेकिन यह शरीर से बाहर नहीं निकलता और न ही संक्रमित कर सकता है।
शोध-संश्लेषण: (CDC & Elsevier Case Study 2023)
इस अध्ययन में 12 प्रतिभागियों (संयुक्त राज्य की एक जेल में) को शामिल किया गया — जिनमें से 83% पहले से पूर्ण रूप से टीकाकृत थे। शोधकर्ताओं ने नियमित रूप से RT-PCR और वायरल कल्चर टेस्टिंग द्वारा यह समझने की कोशिश की कि टीकाकरण के बाद भी वायरस शरीर में कितने समय तक मौजूद रहता है और क्या वह दूसरों को संक्रमित कर सकता है।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
- Vaccinated और Unvaccinated दोनों में ही संक्रमण के बाद वायरस की थोड़ी मात्रा पाई गई।
- 9 में से 6 टीकाकृत व्यक्तियों में संक्रमण के शुरुआती दिनों में वायरस सक्रिय रूप में पाया गया, लेकिन:
- यह shedding अत्यंत सीमित और अस्थायी थी।
- संक्रमण की शुरुआत से औसतन 6 दिनों तक ही वायरस culture में पनप सका।
- किसी भी टीकाकृत व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण होने की पुष्टि नहीं हुई।
“Both vaccinated and unvaccinated persons had positive RT-PCR results and virus in culture, but data does not support vaccinated individuals being significant spreaders.”
— CDC Pandemic Response Team, 2023
भ्रांति क्यों फैली?
- Vaccine shedding एक पुरानी अवधारणा है जो “live attenuated vaccines” पर लागू होती थी। परंतु COVID-19 टीके (जैसे mRNA या vector-based) live virus नहीं होते — इसलिए इनसे shedding का कोई सवाल ही नहीं उठता।
- spike protein के शरीर में निर्माण को ‘वायरस निर्माण’ समझ लिया गया, जो पूरी तरह गलत है।
वैज्ञानिक स्पष्टीकरण:
- COVID-19 वैक्सीन शरीर की कोशिकाओं को transient (क्षणिक) रूप से spike protein बनाने का निर्देश देती है, जिससे इम्यून सिस्टम अलर्ट हो जाता है।
- यह protein शरीर के बाहर नहीं निकलता, और कोई व्यक्ति इसे “shed” नहीं कर सकता।
- मूत्र, पसीना, सांस, या त्वचा के माध्यम से किसी प्रकार का spike protein या वायरस बाहर नहीं आता।
निष्कर्ष:
COVID-19 वैक्सीन लगवाने के बाद व्यक्ति वायरस नहीं फैलाता। वैज्ञानिक अध्ययनों और CDC के डाटा से यह स्पष्ट हो चुका है कि वैक्सीन शेडिंग की कोई प्रक्रिया इस टीकाकरण तकनीक में नहीं होती। यह भ्रांति लोगों में डर फैलाने और वैक्सीन हिचकिचाहट को बढ़ावा देने का एक उदाहरण है।
भ्रांति 5: “गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को COVID-19 वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए”
तथ्य:
कोविड-19 वैक्सीन गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और अत्यधिक प्रभावशाली है।
वास्तव में, यह टीकाकरण न केवल माँ को सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि शिशु को भी प्रतिरक्षा देता है — जिसे “डबल इम्यूनिटी” (mother + baby) कहा जाता है।
शोध पर आधारित निष्कर्ष:
इस सिस्टमेटिक रिव्यू में 33 उच्च गुणवत्ता वाले अध्ययनों का विश्लेषण किया गया, जिसमें 17,000 से अधिक गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के डेटा शामिल हैं। प्रमुख निष्कर्ष:
सुरक्षा (Safety):
- मुख्य दुष्प्रभाव: इंजेक्शन स्थल पर दर्द (92%), थकान (70%), सिरदर्द, बुखार — जो कि सामान्य आबादी जैसी ही हैं।
- गंभीर दुष्प्रभाव नहीं पाए गए, न ही किसी प्रकार का जन्म दोष, गर्भपात, या स्तनपान में रुकावट। अध्ययन में बताया गया कि अधिकांश महिलाएं किसी प्रकार के दुष्प्रभाव का अनुभव ही नहीं करतीं।
प्रभावशीलता (Efficacy):
- टीका लेने वाली गर्भवती महिलाओं में COVID-19 से गंभीर संक्रमण, निमोनिया, अस्पताल में भर्ती और ऑक्सीजन आवश्यकता में 80% से अधिक की कमी पाई गई।
- टीका लेने वाली महिलाओं में जन्म के समय जटिलताएँ भी कम देखी गईं।
प्रतिरक्षा (Immunogenicity):
- वैक्सीनेशन के बाद IgG एंटीबॉडी का स्तर माँ के रक्त में तेजी से बढ़ा — और स्तनपान के ज़रिए शिशु तक भी पहुँचा।
- दूध में पाए गए एंटीबॉडी शिशु के श्वसन तंत्र और आंत में लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान करते हैं, विशेषकर mRNA वैक्सीन में।
- टीके से बनी प्रतिरक्षा संक्रमण से बनी प्राकृतिक प्रतिरक्षा से कहीं अधिक स्थिर और बेहतर थी।
“टीकाकरण मातृत्व काल में बेहद आवश्यक है क्योंकि इससे माँ और नवजात दोनों को जीवनरक्षक सुरक्षा मिलती है।”
— Martínez-Varea et al., JPM, 2023
भ्रांति क्यों फैली?
- COVID-19 वैक्सीन के शुरुआती परीक्षणों में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं शामिल नहीं थीं — जिससे भ्रम की स्थिति बनी।
- शुरुआती दिनों में आधिकारिक दिशानिर्देशों की अनिश्चितता और सोशल मीडिया अफवाहों ने लोगों को डरा दिया।
विशेषज्ञों की सिफारिश:
“गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को टीका लगवाना न केवल सुरक्षित है, बल्कि यह अत्यधिक आवश्यक है। यह मातृ मृत्यु दर और नवजात जटिलताओं को कम करता है।”
— American College of Obstetricians and Gynecologists (ACOG)
“WHO, CDC, ICMR सहित सभी प्रमुख स्वास्थ्य एजेंसियों ने COVID-19 वैक्सीन को इस जनसंख्या में सुरक्षित और अनुशंसित घोषित किया है।”
निष्कर्ष:
COVID-19 टीकाकरण गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए न केवल सुरक्षित है बल्कि नवजात शिशु के लिए भी एक सुरक्षात्मक कवच है।
निष्कर्ष: भ्रम नहीं, विज्ञान पर भरोसा करें
COVID-19 महामारी से लड़ाई में टीकाकरण मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इस लेख में हमने पांच सबसे सामान्य भ्रांतियों की वैज्ञानिक समीक्षा प्रस्तुत की — जिनमें गर्भपात, हृदयाघात, DNA परिवर्तन, वायरस फैलाव और गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा जैसे विषय शामिल थे।
प्रामाणिक शोध-पत्रों, सरकारी रिपोर्टों और वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि ये सभी भ्रांतियाँ आधारहीन, असत्य और समाज में डर फैलाने वाली हैं। टीके न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि गंभीर बीमारी, मृत्यु और महामारी के प्रसार को रोकने में अत्यधिक प्रभावशाली भी हैं।
AVK News Services अपने पाठकों से आग्रह करता है कि वे अप्रमाणित सोशल मीडिया सूचनाओं पर भरोसा करने की बजाय, वैज्ञानिक तथ्यों और आधिकारिक स्वास्थ्य संस्थाओं की सलाह को अपनाएं।
टीका लगवाएं, स्वयं को सुरक्षित रखें और समाज को भी। विज्ञान और सच्चाई के साथ खड़े हों।
Source: National Center for Biotechnology Information, PIB, WHO, Vaccines Journal, AIIMS
—AVK भ्रांति भेदन — एपिसोड 1—
अस्वीकरण (Disclaimer):
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रस्तुत सभी तथ्य और आंकड़े विश्वसनीय शोध-पत्रों, सरकारी रिपोर्टों (PIB, ICMR, WHO, आदि) तथा अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक स्रोतों पर आधारित हैं। यह लेख किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी शंका या निर्णय के लिए प्रमाणित स्वास्थ्य विशेषज्ञ या डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। AVK News Services इस लेख में उल्लिखित जानकारी के आधार पर लिए गए व्यक्तिगत निर्णयों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेता।