भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जगत में एक और उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज की गई है। देश के वैज्ञानिकों ने अनानास (Ananas comosus L. Merr.) में एक ऐसे जीन की पहचान की है, जो फसलों के सबसे खतरनाक रोगों में से एक — फ्यूजेरियोसिस — से इस फल को प्रभावी और घरेलू रूप से विकसित रक्षा प्रदान कर सकता है। यह खोज न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अनानास की खेती करने वाले किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकती है।

अनानास: पोषण से भरपूर आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण फल
अनानास ब्रोमेलियासी परिवार का एक प्रमुख फल है, जो अपने स्वादिष्ट, रसदार स्वाद और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण वैश्विक स्तर पर अत्यधिक लोकप्रिय है। यह न केवल विटामिन सी, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है, बल्कि इसकी खेती भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में बड़ी मात्रा में की जाती है, जिससे लाखों किसानों की आजीविका जुड़ी हुई है।
फ्यूजेरियोसिस: एक खतरनाक रोग
अनानास की खेती के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है — फ्यूजेरियोसिस। यह रोग फ्यूजेरियम मोनिलिफॉर्म नामक आक्रामक फफूंद के कारण होता है, जो पौधों के तनों को विकृत कर देता है, पत्तियों को काला करता है और फलों को आंतरिक रूप से सड़ा देता है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में भारी गिरावट आती है और किसान भारी आर्थिक नुकसान का सामना करते हैं। यह रोग अक्सर असमय मुरझाने और फसल नष्ट होने का कारण बनता है, जिससे किसानों के लिए यह एक अत्यधिक जोखिमपूर्ण फसल बन गई है।
बोस इंस्टीट्यूट की क्रांतिकारी खोज
कोलकाता स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन स्वायत्त अनुसंधान संस्थान बोस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अनानास में फफूंद प्रतिरोधी जीन की पहचान कर इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। संस्थान के प्रोफ़ेसर डॉ. गौरव गंगोपाध्याय और उनकी पीएचडी छात्रा डॉ. सौमिली पाल ने सोमैटिक एम्ब्रियोजेनेसिस रिसेप्टर काइनेज (SERK) नामक जीन परिवार के AcSERK3 जीन पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। यह जीन पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय करने की क्षमता रखता है।
AcSERK3 की अति-अभिव्यक्ति: प्राकृतिक सुरक्षा कवच
वैज्ञानिकों ने अनानास के पौधों में AcSERK3 जीन की अति-अभिव्यक्ति (“ओवरएक्सप्रेशन”) कराई, जिससे पौधों की जैविक सुरक्षा प्रणाली सक्रिय हो गई। यह प्रक्रिया आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पौधों की मदद से की गई, जिनमें फ्यूजेरियम फफूंद के प्रति प्रतिरोधक क्षमता सामान्य पौधों की तुलना में कहीं अधिक पाई गई। इन ट्रांसजेनिक पौधों ने फफूंद के हमले के बावजूद न केवल बेहतर वृद्धि दिखाई, बल्कि उनके ऊतक भी स्वस्थ और हरित बने रहे।

अध्ययन का वैज्ञानिक प्रकाशन और प्रभाव
यह अध्ययन हाल ही में In Vitro Cellular & Developmental Biology – Plants नामक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। यह पहली बार है जब किसी वैज्ञानिक अध्ययन ने अनानास में अंतर्निहित जीन की अति-अभिव्यक्ति द्वारा फफूंद प्रतिरोध उत्पन्न करने का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया है। यह अध्ययन भविष्य में ऐसी किस्मों के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है जो आनुवंशिक रूप से मजबूत और बहु-रोग प्रतिरोधी हों।
व्यावहारिक लाभ और संभावनाएं
इस शोध के आधार पर कृषि वैज्ञानिक और बायोटेक्नोलॉजी विशेषज्ञ ऐसी नई अनानास किस्में विकसित कर सकते हैं जो लंबे समय तक फ्यूजेरियम सहित अन्य फंगल रोगों के विरुद्ध सहिष्णु बनी रहें। इससे किसानों को अधिक उत्पादकता, बेहतर गुणवत्ता और न्यूनतम नुकसान के साथ स्थायी कृषि प्रणाली का लाभ मिलेगा। यदि यह तकनीक दीर्घकालिक फील्ड ट्रायल में सफल होती है, तो उत्पादक “स्लिप्स” और “सकर्स” जैसे पारंपरिक तरीकों से इन उन्नत किस्मों का विस्तार कर सकेंगे।
एक स्थायी कृषि भविष्य की ओर कदम
इस खोज से यह सिद्ध होता है कि भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान अब परंपरागत कृषि चुनौतियों का समाधान देने में सक्षम हो रहा है। AcSERK3 जीन की यह खोज जैविक खेती, आनुवंशिक सुधार और रोग प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित हो सकती है। बोस इंस्टीट्यूट की यह पहल कृषि जैव प्रौद्योगिकी की दिशा में भारत के बढ़ते कदमों का प्रतीक है।