अल्जाइमर रोग (एडी) एक जटिल, दुर्बल करने वाली और तेजी से फैलती मानसिक बीमारी है, जो न केवल स्मृति और संज्ञानात्मक क्षमताओं को प्रभावित करती है, बल्कि रोगियों और उनके परिवारों पर भारी सामाजिक-आर्थिक बोझ भी डालती है। यह रोग दुनियाभर में मनोभ्रम (डिमेंशिया) के 70 से 80 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है, और मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक बन चुका है। वर्तमान समय में इसकी सीमित चिकित्सीय दवाएं ही उपलब्ध हैं, जो केवल अस्थायी राहत देती हैं। लेकिन हाल ही में भारत में इस रोग के संभावित इलाज की दिशा में एक बड़ा वैज्ञानिक प्रगति हुई है, जिससे इसके इलाज की आशा एक बार फिर जागी है।

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अधीन कार्यरत जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (JNCASR) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अल्जाइमर रोग के लिए एक नवीन RNA-आधारित चिकित्सीय रणनीति विकसित की है। यह रणनीति न केवल रोग के विकास को रोकने में सक्षम हो सकती है, बल्कि इसके संभावित उपचार का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है।
इस शोध का नेतृत्व प्रोफेसर थिमैया गोविंदराजू और मधु रमेश ने किया, जिन्होंने डबल ट्रांसजेनिक माउस मॉडल के माध्यम से अल्जाइमर रोगग्रस्त मस्तिष्क में microRNA (miRNA) की भूमिका का गहन अध्ययन किया। उल्लेखनीय है कि miRNA पर आधारित अनुसंधान को 2023 में फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है, जिससे इसकी वैज्ञानिक प्रासंगिकता और बढ़ गई है।
miRNA-7a और KLF4: नया चिकित्सीय लक्ष्य
इस अध्ययन में miRNA-7a के असामान्य रूप से बढ़े हुए स्तर का पता चला, जो KLF4 नामक प्रोटीन को लक्षित करता है। यह प्रोटीन न्यूरोइन्फ्लेमेशन (मस्तिष्क की सूजन) और फेरोप्टोसिस (आयरन-निर्भर कोशिकीय मृत्यु) से संबंधित कई जीनों का प्रमुख नियंत्रक है। वैज्ञानिकों ने पाया कि miRNA-7a–KLF4 मार्गदर्शक तंत्र अल्जाइमर रोग की रोगजनन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
नवीन दवा और प्राकृतिक अणु होनोकिओल का उपयोग
वैज्ञानिकों ने miRNA-7a को संशोधित करके एक चिकित्सीय प्रतिरूप (therapeutic mimic) तैयार किया, जिसने KLF4 के स्तर को कम कर रोग संबंधी विकृतियों में सुधार दर्शाया। इस प्रक्रिया के साथ उन्होंने होनोकिओल (Honokiol) नामक एक प्राकृतिक उत्पाद का भी उपयोग किया, जो मैगनोलिया वृक्ष की छाल और बीजों में पाया जाता है। होनोकिओल रक्त-मस्तिष्क बाधा को पार करने की क्षमता रखता है और KLF4 को लक्षित करके न्यूरोइन्फ्लेमेशन व फेरोप्टोसिस को रोकने में सक्षम होता है।
शोध के परिणाम और चिकित्सीय संभावनाएं
इस शोध से यह स्पष्ट होता है कि miRNA-7a–KLF4 एक्सिस, अल्जाइमर रोग के इलाज के लिए एक प्रभावशाली और नवीन चिकित्सीय लक्ष्य बन सकता है। अध्ययन के अनुसार, यह तंत्र न केवल न्यूरॉनल क्षति को रोक सकता है, बल्कि न्यूरोइन्फ्लेमेटरी और न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों के इलाज के लिए भी संभावनाएं खोलता है।
एडी के शीघ्र निदान के लिए बायोमार्कर पैनल
शोधकर्ताओं ने AD में अपरेगुलेटेड और डाउनरेगुलेटेड miRNA की एक श्रृंखला की पहचान की है, जो प्रारंभिक नैदानिक परीक्षणों में बायोमार्कर के रूप में प्रयुक्त किए जा सकते हैं। इससे इस रोग के शुरुआती निदान, निगरानी और व्यक्तिगत उपचार की दिशा में उल्लेखनीय सुधार संभव होगा।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
भारत जैसे देश में जहां बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है, वहां अल्जाइमर रोग भविष्य में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन सकता है। इस दिशा में JNCASR द्वारा किया गया यह शोध न केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले बोझ को कम कर सकता है, बल्कि इससे जुड़े सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को भी कम करने में मदद मिल सकती है।
विशेषज्ञों की राय
प्रो. गिरीश गंगाधरन, विभागाध्यक्ष, एजिंग रिसर्च, मणिपाल स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज ने इस शोध की सराहना करते हुए कहा कि यह शोध दर्शाता है कि कैसे miRNA-7a और KLF4 को लक्षित कर सूजन और फेरोप्टोसिस जैसी जटिल प्रक्रियाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। यह शोध चिकित्सीय दृष्टिकोण से एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
JNCASR द्वारा किया गया यह शोध अल्जाइमर रोग के इलाज की दिशा में वैज्ञानिक नवाचार और शोध की शक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। यदि यह RNA-आधारित चिकित्सीय रणनीति और प्राकृतिक अणु आधारित उपचार नैदानिक परीक्षणों में प्रभावी सिद्ध होते हैं, तो यह न केवल अल्जाइमर रोग, बल्कि अन्य न्यूरोलॉजिकल विकारों के इलाज के लिए भी एक नई राह खोल सकते हैं।