“भारत के इतिहास के गौरव: छत्रपति संभाजी महाराज” डॉ. राकेश कुमार आर्य द्वारा रचित पुस्तक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति है, जो भारतीय इतिहास में छत्रपति संभाजी महाराज के अद्वितीय व्यक्तित्व और उनके योगदान को उजागर करती है। यह पुस्तक न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए बल्कि युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत है, क्योंकि इसमें शिवाजी महाराज के पुत्र और मराठा साम्राज्य के द्वितीय छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन के अछुए पहलुओं को बड़ी संजीदगी और गहराई के साथ प्रस्तुत किया गया है।

पुस्तक के लेखक डॉ. राकेश कुमार आर्य ने अपने इतिहास लेखन में जो विशेष दृष्टिकोण अपनाया है, वह इस प्रकार है कि वे अपने इतिहासनायकों के व्यक्तित्व के उन पहलुओं को सामने लाते हैं, जिन्हें सामान्य प्रचलित इतिहास ने अनदेखा किया है। डॉ. आर्य के अनुसार, संभाजी महाराज केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेता और भारत को मुगलविहीन राष्ट्र बनाने का सपना देखने वाले देशभक्त भी थे। यह पुस्तक पाठकों को यह समझने में मदद करती है कि संभाजी महाराज ने अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के ‘हिंदवी स्वराज्य’ के विचार को आगे बढ़ाते हुए एक ऐसे भारत का निर्माण करने का संकल्प लिया, जहां मुगलों का प्रभाव समाप्त हो।
लेखक ने पुस्तक में यह स्पष्ट किया है कि भारतीय इतिहास में संभाजी महाराज के व्यक्तित्व और उनके योगदान के साथ अन्याय हुआ है। इतिहासकारों और लेखकों ने उनके कृतित्व को सही सम्मान नहीं दिया, और उन्हें मुग़ल प्रेमी दृष्टिकोण के आधार पर प्रस्तुत किया। डॉ. आर्य का प्रयास इसे बदलना और संभाजी महाराज की वास्तविक महानता को सामने लाना है। लेखक का मानना है कि संभाजी महाराज भारतीय इतिहास के गौरव हैं और उनका उचित सम्मान और स्थान स्थापित करना युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक है, ताकि वे अपने इतिहास से प्रेरणा लेकर वर्तमान समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
पुस्तक का प्रारंभ संभाजी महाराज के पिता छत्रपति शिवाजी महाराज से होता है और उनके ‘हिंदवी स्वराज्य’ की विचारधारा को विस्तारपूर्वक समझाया गया है। इसके बाद संभाजी महाराज के बचपन, शिक्षा, विवाह और उनके प्रारंभिक जीवन की घटनाओं का उल्लेख है, जो उनके चरित्र और नेतृत्व क्षमता को उभारते हैं। इसके अतिरिक्त, पुस्तक में उनके साहित्यिक पक्ष, प्रशासनिक दृष्टिकोण और प्रजाहितकारी कार्यों को भी दर्शाया गया है। संभाजी महाराज न केवल युद्धकला में प्रवीण थे, बल्कि एक लेखक और विचारक के रूप में भी उभरकर सामने आए।
पुस्तक में ‘छावा’ फिल्म और इसके निर्माण का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें संभाजी महाराज की भूमिका विक्की कौशल ने निभाई है। फिल्म ने संभाजी महाराज के व्यक्तित्व को नया स्वरूप दिया है और युवाओं में उनके प्रति सम्मान और गौरव की भावना पैदा की है। लेखक के अनुसार, इस प्रकार की फिल्में हमारे अतीत के गौरवशाली पहलुओं से युवाओं को परिचित कराने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। माता जीजाबाई की प्रेरणा और मार्गदर्शन ने शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज दोनों को राष्ट्रवाद और वीरता के मार्ग पर अग्रसर किया।
पुस्तक में संभाजी महाराज के युद्ध, उनके बलिदान और धार्मिक आस्थाओं का विशेष उल्लेख किया गया है। विशेष रूप से उनके बुरहानपुर में कैद होने और औरंगजेब द्वारा दिए गए अत्याचारों के दौरान उनका साहस और मातृभूमि के प्रति समर्पण अत्यंत प्रेरणादायक है। उन्होंने मृत्यु को भी मातृभूमि की सेवा और धर्म की रक्षा के लिए स्वीकार किया। यह उनके दृढ़ निश्चय और त्याग की अनूठी मिसाल है।
संभाजी महाराज के प्रशासनिक कौशल, मुगलों और पुर्तगालियों के साथ उनके संघर्ष, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से संबंध, मराठा-मैसूर संबंध और भारत बचाओ अभियान का उल्लेख भी पुस्तक में किया गया है। इन अध्यायों में उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण और राष्ट्रहित के लिए किए गए प्रयासों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया गया है। कवि कलश और अन्य साथियों के बलिदान का वर्णन इस बात की पुष्टि करता है कि संभाजी महाराज केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि उनके नेतृत्व में कई वीर सपूतों ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
पुस्तक के लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारतीय इतिहास के साथ अन्याय हुआ है। हमारे वीर और धर्मयोद्धाओं के बलिदानों को भुला दिया गया और सनातन संस्कृति की रक्षा करने वालों को उचित सम्मान नहीं मिला। इस संदर्भ में डॉ. आर्य ने पुस्तक के माध्यम से इसे सही करने का प्रयास किया है। वे चाहते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी अपने अतीत की गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा लेकर अपने राष्ट्र और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करे।



