वन-रक्षकों के बलिदान के सम्मान का दिन

राष्ट्रीय वन शहीद दिवस

भारत के इतिहास पथ में 11 सितम्बर, 1730 का दिन एक कारुणिक घटना के कारण ऐसा स्मरणीय मील का पत्थर बन गया है जिसकी नींव में विसर्जित वृक्ष रक्षकों के पावन रक्त की नमी एवं ताप है, जहां मानव के प्रति वृक्षों के कृतज्ञ अश्रुओं की आत्मीयता है, जहां प्रस्तर खंड पर वृक्ष रक्षा का उद्देश्य उत्कीर्ण है, जिसके चतुर्दिक वृक्षों की रक्षा हित आत्म बलिदान के अप्रतिम ऊर्जामय दृश्य की रचना हुई है जो मानव एवं कानन के अनिर्वचनीय सम्बंध का उद्घोष करती हुई लोक जागरण की प्रेरणा बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन मारवाड़ राज्य के महाराजा अभय सिंह ने महलों के निर्माण हेतु चूना पत्थर के जलाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति हेतु मंत्रियों के सुझाव पर जोधपुर के खेजड़ली गांव के खेजड़ी वृक्षों के काटने का आदेश दिया। 11 सितम्बर को जब सैनिक वृक्ष काटने के लिए गांव पहुंचे तो विश्नोई समाज की महिला अमृता देवी ने खेजड़ी वृक्ष को पूजनीय बता कर अन्य वृक्ष काटने का अनुरोध किया पर सत्ता मद में चूर सैनिकों ने पेड़ों पर कुल्हाड़ियां चलानी आरम्भ कर दीं। वृक्ष रक्षा का अन्य उपाय न देख वह और उनकी तीन बेटियां वृक्षों के तनों को हाथों से समेटकर चिपक गईं। निर्दय सैनिकों ने कुल्हाड़ी चलाना जारी रखा और तीनों का बलिदान हो गया।

यह खबर गांव में फैली तो पूरा गांव वृक्षों से लिपट गया। उस दिन वृक्षों की रक्षा करते हुए 363 व्यक्तियों ने अपने प्राण समर्पित कर दिए, पर अपनी अंतिम सांस तक पेड़ों को कुल्हाड़ी का वार न लगने दिया। जब महाराजा अभय सिंह तक यह समाचार पहुंचा, वे बहुत दुखी हुए और लकड़ी कटान रोक दिया। तो 11 सितम्बर को वन संरक्षण के लिए काम करने वाले, वन और वन्य जीवों को बचाते हुए अपनी जान गंवाने वाले व्यक्तियों के बलिदान को स्मरण करने तथा वन और मानव के पारस्परिक सम्बन्धों के महत्व से आम जन को परिचित कराने की दृष्टि से भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 11 सितम्बर, 2013 को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाने की घोषणा की।

आयोजन एक थीम पर आयोजित किया जाते हैं, वर्ष 2025 कि थीम है- वन और भोजन। यह विषय न केवल सामयिक है अपितु वन सम्पदा के रक्षण-संरक्षण के लिए समुदाय को प्रेरित करने वाला भी है। आयोजन अंतर्गत लेख, वाद-विवाद, भाषण, पेंटिंग, प्रश्नोत्तरी, फोटो गैलरी प्रदर्शन जैसे आयोजन स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों में सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर किये जाते हैं। वन शहीद दिवस आयोजन के माध्यम से पूरी दुनिया को संदेश जाता है कि सरकारें ऐसी वन नीति का निर्माण करें जो जलवायु परिवर्तन एवं खाद्य प्रणाली के केंद्र में हों और जहां वनों एवं वन्य जीवों को कोई हानि न पहुंचे और वन संरक्षण हेतु एक सामूहिक सोच पनपे।

निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति में वनों का विशेष महत्व है। आर्ष ग्रन्थों में वन-कानन के माहात्म्य का न केवल महिमामय गौरव वर्णित है अपितु वन, वन्यजीव एवं मानव के सहजीवन सह अस्तित्व के प्रेरक जीवंत शब्द चित्र भी अंकित हैं। अनेकानेक महान ग्रंथों की रचना ऋषि परम्परा में वनांचल स्थित आश्रम की पर्ण कुटियों में शुक, सारिका, सारंग, कोकिला, मयूर के मनमोहक कलरव, मृग-मृगेंद्र के सान्निध्य, पीयूषदुग्धा गो माता के स्नेहिल सामीप्य और वट-पीपल-पाकड़ की शीतल छांव में ही हुई है। जंगल केवल पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और सर-सरिताओं का नाम नहीं है, बल्कि जीवन स्रोत का नाम है। वन हमारी संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं जिसे अरण्य संस्कृति कहते हैं। जंगलों में रचे गये आरण्यक ग्रंथ वैदिक परम्परा में यज्ञ-अग्निहोत्र एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष के मानबिंदु हैं। सनातन सांस्कृतिक सामाजिक परम्परा में  मानव जीवन के लिए निश्चित चार आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास में वनों का महत्व दृष्टव्य है जो संन्यास आश्रम में प्रवेश की पीठिका है, साधना स्थली है। इतना ही नहीं, जंगल ही मानव समाज के भोजन-पोषण के स्रोत हैं।

फल, फूल, मूल, कंद, बीज, शहद जंगल से ही मिलता है। वन मृदा के संरक्षक हैं और जल प्रदायक भी। कानन प्राणवायु आक्सीजन के निर्माता हैं। वनों के बिना मानव जीवन की कल्पना करना असम्भव है। इसलिए वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण आवश्यक है। विकास के नाम पर भेंट चढ़ रहे हजारों लाखों वृक्षों की भरपाई असम्भव है। एक वृक्ष का कटना केवल एक पेड़ का धराशायी होना नहीं है अपितु उस पर घोंसला बना कर निवास कर रहे सैकड़ों पक्षियों का संहार है, तप्त पथ पर तृषित पथिक के सिर की सुखद छांव का छिन जाना है, वसुधा के लिए अम्बर में सघन घन के छाने के आमंत्रण पत्र का नष्ट हो जाना है।‌ तमाम खट्टी-मीठी स्मृतियों का लुप्त हो जाना है। वन शहीद दिवस के अवसर बलिदानी वन रक्षकों का स्मरण एवं सम्मान करते हुए हम अपने मोहल्ले, नगर, गांव में सैकड़ों सालों से हमारी जरूरतों को पूरा करने वाले वृक्षों की रक्षा का संकल्प लें, तब यह दिवस सार्थक सिद्ध होगा।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
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