सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधी: जिन्होंने बिना हथियार साम्राज्य को हिला दिया

-2 अक्टूबर महात्मा गांधी जयंती-

महात्मा गांधी: भारत के आजादी का वह मसीहा जिसका लोहा सारी दुनिया ने माना

स्वतंत्रता के पूर्व भारत को स्वतंत्र कराने के लिये असंख्य शहीदों तथा सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिनमें बहुत से आजादी के दीवाने जिनका स्वतंत्रता के इतिहास में कहीं भी नाम-निशान भी नहीं है, पर जो नाम ज्ञात हैं उनमें से एक शख्सियत का नाम इतिहास के पन्नों में तब तक रहेगा. जब तक कि सूरज चांद रहेंगे। वो नाम हैं महात्मा गांधी का। इस महान् व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिये अपना संपूर्ण जीवन समर्पित जजकर दिया! जब भारत माता ब्रिटिश सरकार की परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ी सिसक रही थी, उसी की भूमि पर उसके लाडले बेटे जिंदा दफनाये जा रहे थे। उनके अबोध बच्चे भूख-प्यास से तड़फ तड़फ कर दम तोड़ रहे थे! उनकी सुकुमार बेटियों की अस्मत खुलेआम नीलामी हो रही थी।

चारो ओर ब्रिटिश साम्राज्यशाही का भय और आतंक हिन्दुस्तान की जनता पर काले बादलों की तरह छाया हुआ था, हर हिन्दुस्तानी ब्रिटिश सामाज्य के इन क्रूर अत्याचारों से स्वतंत्र होने के लिये अपने प्राणों को भारत माता के लिये समर्पित कर देश को स्वंतंत्र करने का संघर्ष कर रहा था! उसी संघर्ष के समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेसी आंदोलन द्वारा ब्रिटिश सरकार को भारत से पलायन करने हेतु बाध्य कर रहे थे! गांधी के नेतृत्व में जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरदार पटेल आदि शीर्ष नेता विदेशी कपड़े एवं वस्तु का बहिस्कार, करो या मरो, सत्याग्रह, असयोग आंदोलन, अंग्रेज भारत छोड़ो जैसे सशक्त आंदोलनों से ब्रिटिश सरकार की नींद हराम किये हुये थे!

  गांधीजी का जीवन सत्य और अहिंसा के महान् गुणों पर आधारित था। वह संपूर्ण मानव कल्याण पर आधारित था। वह संपूर्ण मानव जाति के सुख तथा कल्याण’ के इच्छुक थे। गांधीजी स्वयं कहते थे कि “अहिंसा संसार की सब से बड़ी शक्ति है।” गांधीजी सत्याग्रह को सबसे बड़ा शस्त्र मानते थे! सत्य+आग्रह अर्थात सत्य के लिये आग्रह करना! यह नैतिक तथा उचित और अहिंसक भी है। मतलब यह है कि हिंसा का सहारा लिये बिना किसी सत्य बात पर अडिग रहना ही सत्याग्रह है। स्वयं गांधीजी ने सत्याग्रह के संबंध में अपने विचार इन शब्दों में – “सत्याग्रह एक बहुधारी तलवार है। इसका प्रयोग जिस व्यक्ति के विरुद्ध किया जाता है, और जो इस करता है, दोनों को इससे काम होता है। इससे बिना रक्तपात के बड़ी-बड़ी समस्याएं हल हो जाती हैं। इस तलवार में कभी भी जंग नहीं लगता! “

गांधीजी के लिये अहिंसा का सिद्धांत नया नहीं था। भारत के राजनैतिक जीवन में प्रवेश करने से पहले जब वे अफ्रीका में थे, तो वहां इस शस्त्र का प्रयोग करके इसकी उपयोगिता आजमा चुके थे। दक्षिणी अफ्रीका की ट्रांसवाल की सरकार ने एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट पास करके वहां के भारतीयों पर अनेक शर्तें लगा दी। गांधी जी ने विशेष प्रयास से दक्षिणी अफ्रीका के भारतीयों को संगठित करके सत्याग्रह आंदोलन शुरु कर दिया! यह सत्याग्रह बड़ी तेजी से बढ़ा। जनरल स्मट्स तथा गांधी जी के बीच समझाना हो गया! कुछ समय बाद स्मट्स ने समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया! अतंतः गांधीजी के सामने सत्याग्रह के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग न रहा! भारत में भी इस सत्याग्रह के समर्थन में बड़ा उपयोगी जनमत तैयार हो गया! जगह-जगह सभाएं हुई और सत्याग्रह जारी रखने के लिये चंदा इकट्ठा किया गया! गांधीजी अनेक सत्याग्रहियों के साथ पकड़े गये! चारो तरफ हड़ताल तथा सत्याग्रहों से परेशान होकर अफ्रीका की सरकार ने गांधीजी को छोड़ दिया! बाद में अन्य सत्याग्रह भी छोड़ दिये गये और भारतीयों पर जो अनुचित शर्तें लगाई गई थीं, वह भी हटा ली गई!

भारत में गांधी जी ने सबसे पहले सत्याग्रह का प्रयोग चम्पारन म किया? 1916 ई. में कांग्रेस का अधिवेशन लखनऊ में हुआ। उसी समय चम्पारन के किसानों के कष्टों का समाचार उन्हें मिला। वहां नील की खेती करने वाले किसानों का शोषण वहां के अंग्रेज भूमिपति कर रहे थे! सरकारी कर्मचारी भी किसानों को बहुत परेशान करते थे! शोषण और अत्याचार इतना बढ़ गया था कि किसानों का घर लूट लिया जाता था, उनके जानवर बंदकर दिये जाते थे और उनसे गैर कानूनी टैक्स वसूल किये जाते थे! 1917 में गांधीजी मोतीहारी पहुंचे! मोतीहारी जिले में ही चम्पारन है। गांधीजी को नगर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया! परंतु बाद सरकार ने मुकदमा वापस ले लिया।

इसके बाद अहमदाबाद में गांधी ने मिल मालिकों तथा मजदूरों के झगड़े में 1918 में सत्याग्रह का प्रयोग किया। यह झगड़ा मजदूरी को मिलने वाली मंहगाई तथा बोनस के बारे में थे! गांधीजी की राय से मिल मालिक तथा मजदूर इस बात पर सहमत हो गये कि मामला मध्यस्थ निर्णय द्वारा हल करवा लिया जाये! लेकिन शीघ्र ही मजदूरों ने हड़ताल कर दी! मिल मालिकों ने मिल बंद कर दी। इसके विरोध में मजदूरों को गांधी जी ने संगठित किया और उनको बताया कि जब तक उनकी मांग पूरी न हो तब तक वे काम पर नहीं जाएंगे। गांधीजी ने  मजदूरों के साथ मिलकर उनकी हड़ताल को जोरों से चलाया? मिलें बहुत समय तक बंद रहने से मजदूर भूखों मरने लगे। इसी समय गांधीजी ने उपवास शुरु कर दिया! मजबूर होकर मिल मालिक समझौते के लिये तैयार हो गये। अंत में मजदूरों की विजय हुई और उनकी मांग पूरी हो गई!

रोलेक्ट एक्ट की के कारण राजनैतिक क्षेत्र में बड़ा क्षोभ था।  यहां भी देश व्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाया! 6 अप्रैल 1919 को उन्होंने देश व्यापी सत्याग्रह आरंभ करने की घोषणा की! सारे देश ने इस घोषणा का स्वागत किया। सैकड़ो स्थानों पर इसके समर्थन में सभाएं हुई और लाखों व्यक्तियों ने इस आंदोलन में भाग लिया! गांधीजी ने जनता से अपील की कि वह आंदोलन में पूरी तरह अहिंसात्मक रूप से साथ रहे। फिर भी अनेक स्थानों पर हिंसात्मक कार्यवाही हुई ! लाहौर में लूटपात हुई और गोली चली! गांधीजी इस समाचार को सुन कर पंजाब के लिये रवाना हो गये! सरकार ने उनके पंजाब जाने पर रोक लगा दी! गांधीजी ने इस आदेश का अंततः बहिष्कार किया, उन्हें गिरफ्तार करके बंबई पहुंचा दिया गया! गांधीजी की गिरफ्तारी के कारण जनता में बड़ी उत्तेजना फैली! अहमदाबाद, बीरमगाव, नांदियाड़ और कलकत्ते में उपद्रव हुए! अंततः गांधीजी ने सत्यसाग्रह स्थगित कर दिया ।

1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ। इस अधिवेशन के पहले ही बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गई थी। मुसलमानों ने भी खिलाफत आंदोलन के कारण अंग्रेजों का विरोध करने के लिये इस अधिवेशन में भाग लिया। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने तिलक की मृत्यु पर शोक प्रगट किया और घोषित किया कि हमारा उद्देश्य “स्वराज्य” है। कांग्रेस ने रोलेक्ट एक्ट तथा पंजाब में अंग्रेजों की बर्बर नीति के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा। भारी उत्साह के साथ यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और इसमें निम्न

कार्यक्रम रखे गये:

  • उपाधियां और सम्मान पदक वापस लौटाना!
  • सरकारी दरबार और उत्सव व समारोहों का बहिस्कार!
  • सरकारी और अर्धसरकारी स्कूलों का बहिस्कार 
  • अदालतों का बहिस्कार और पंचायती राज की स्थापना!
  • धारागत सभाओं का बहिस्कार!
  • विदेशी माल का बहिस्कार!   

गांधीजी के आव्हान पर देश की जनता ने असहयोग आंदोलन शुरु कर दिया! यह आंदोलन पूर्णतः अहिंसक था। हिन्दुओं और मुसलमानों ने एकता का सुंदर परिचय दिया। गांधीजी के आदेशानुसार विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिया! हजारों की संख्या में राष्ट्रीय स्कूल खुल गये। जनता ने कौंसिल के चुनावों का बहिस्कार किया! अनेक वकीलों ने जैसे मोतीलाल नेहरु, और चितरंजनदास ने वकालत छोड़ दी और अदालतों का बहिस्कार किया! अनेक लोगों ने अपनी उपाधियां वापस लौटा दी । रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी “सर” की उपाधि वापस लौटा दी। सरकार ने सत्याग्रहियों को गिरफ्तार करना आरंभ कर दिया जेलें सत्याग्रहियों से भर गई! हजारों विद्यार्थी स्कूल छोड़ कर सत्याग्रह आंदोलन के लिए आ गये! पंजाब और उत्तर प्रदेश में पुलिस ने सत्याग्रहियों पर गोली चलाई। इस आंदोलन को चलाने के लिये धन की के आवश्यकता थी। गांधीजी की अपील पर महिलाओं ने अपने आभूषण भी बलिदान कर दिये! विदेशी कपड़ो की होलियां जलाई’ गई। इस असहयोग आंदोलन ने सारे देश में एक अहिंसक क्रांति फैला दी।

भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई! परंतु इसी बीच चौरी-चौरा नामक स्थान पर जनता उत्तेजित हो गई। उसने एक पुलिस थाने में आग लगा दी और 22 पुलिस मेनों की हत्या कर दी। जब यह समाचार गांधीजी को मिला तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। गांधीजी चाहते थे कि सत्याग्रही हिंसा तनिक भी न करें! अतः इस हिंसात्मक घटना के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन बंद करने की घोषणा कर दी!

आंदोलन  बंद होने से देश में निराशा का वातावरण छा गया! उत्साह की लहर धीमी पड़ गई। हिन्दू-मुस्लिम एकता भी भंग हो गई। इसी समय 10  मार्च 1922 को गांधीजी को लार्ड रीडिंग ने गिरफ्तार कर लिया! और उन पर मुकदमा चलाया! इस मुकदमें में उन्हें छह वर्ष की सज़ा सुनाई गई। असहयोग आंदोलन से यद्यपि भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली, फिर भी इस आंदोलन ने देश में एक क्रांति पैदा कर दी! यह आंदोलन देश के अमीर-गरीब सभी लोगों का आंदोलन था। इस आंदोलन ने देश के आत्म विश्वास तथा बलिदान की भावना को बड़ा बल मिला। अपनी लोकप्रियता के कारण यह आंदोलन इतना अधिक बढ़ गया था कि ब्रिटिश सरकार का आसन हिल गया था।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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