अंकुरम् गर्भ में संस्कार की पाठशाला का अनूठा अभियान

मानव जीवन की सबसे गहरी जड़ें गर्भ में होती हैं। यह वह प्रथम और सबसे पवित्र पाठशाला है जहाँ न केवल शरीर, बल्कि मनुष्य की चेतना, मूल्य और विचार भी आकार लेते हैं। इस गहन सत्य को आचार्य श्री महाश्रमण की पावन उपस्थिति में अहमदाबाद के कोबा स्थित तेरापंथ सभा भवन में शुरू की गई एक ऐतिहासिक पहल में जीवंत अभिव्यक्ति मिली। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल ने एक प्रेरक अभियान – ‘अंकुरम गर्भ संस्कारः भावी जीवन की नींव’ का उद्घाटन किया। श्री पंकज मोदी की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर की पवित्रता और सौहार्द को और बढ़ा दिया। इस संपूर्ण परियोजना की परिकल्पना आचार्य श्री महाश्रमण की है, जिन्होंने अपने प्रवचन में इस बात पर ज़ोर दिया कि गर्भ केवल भौतिक सृजन का केंद्र नहीं है; यह मानसिक और आध्यात्मिक मूल्यों का उद्गम है। यदि माता का मन शांत, शुद्ध और सकारात्मक है, तो वही स्पंदन शिशु के संस्कार बन जाते हैं और उसके जीवन को आकार देते हैं।

उन्होंने कहा कि अंकुरम गर्भ संस्कार आंदोलन इस पवित्र दर्शन पर आधारित एक उज्ज्वल भविष्य के निर्माण की दिशा में एक सशक्त कदम है।’ अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती सुमन नाहटा के नेतृत्व में, इस अभियान का उद्देश्य मातृत्व को एक नई दिशा देना है। उनके शब्दों में, एक माँ केवल एक जीवन का निर्माण नहीं करती – वह एक युग का निर्माण करती है। उसके विचार, भावनाएँ और कर्म आने वाली पीढ़ियों की दिशा निर्धारित करते हैं। मातृत्व के आध्यात्मिक अनुशासन के माध्यम से, हम सद्गुणों के बीज बोते हैं। अंकुरम एक मूल्य-उन्मुख आंदोलन है जो गर्भ से ही करुणा, शांति, संयम और सकारात्मकता का पोषण करने का प्रयास करता है। यह पहल मातृत्व को एक आध्यात्मिक साधना में बदल देती है, जहाँ प्रत्येक माँ भावना, प्रार्थना, संगीत, ध्यान और प्रेम के माध्यम से अपने अजन्मे बच्चे से जुड़ती है।

भारतीय परंपरा में, गर्भावस्था को कभी भी केवल एक जैविक प्रक्रिया के रूप में नहीं, बल्कि एक पवित्र आध्यात्मिक तपस्या के रूप में देखा गया है। यह लंबे समय से माना जाता रहा है कि बच्चे का चरित्र निर्माण जन्म के समय नहीं, बल्कि गर्भाधान के क्षण से ही शुरू हो जाता है। माँ का गर्भ जीवन की प्रथम पाठशाला है। व्यास, चरक, सुश्रुत और मनु जैसे प्राचीन ऋषियों और उपनिषदों ने गर्भावस्था के दौरान की स्थितियों के महत्व पर बल दिया है। गर्भ संस्कार का शाब्दिक अर्थ है, गर्भस्थ शिशु के शरीर, मन और आत्मा का शुद्ध, सकारात्मक और रचनात्मक ऊर्जा से पोषण करना। गर्भ उपनिषद में कहा गया है कि गर्भवती स्त्री के भाव, विचार, आहार और वातावरण शिशु के मानसिक और भावनात्मक विकास को सीधे प्रभावित करते हैं। इसलिए, उसे ‘चेतन रचनाकार’ कहा गया है। महाभारत में इसके ज्वलंत उदाहरण मिलते हैं-जब कुंती ने अपने प्रत्येक पुत्र को गर्भ धारण करने से पहले दिव्य मंत्रों का जाप किया, तो उस समय उनकी मानसिक स्थिति ने उनके गुणों को आकार दिया। इसी प्रकार, अभिमन्यु द्वारा अपनी माता सुभद्रा के गर्भ में चक्रव्यूह का रहस्य जानने की कथा गर्भ संस्कार की वैज्ञानिक गहराई को दर्शाती है।

आधुनिक विज्ञान अब इस बात की पुष्टि करता है कि शिशु के मस्तिष्क का लगभग अस्सी प्रतिशत विकास गर्भ में ही होता है। गर्भ एक निष्क्रिय भौतिक स्थान नहीं है; यह ऊर्जा और बुद्धि का एक गतिशील केंद्र है जो शिशु के भावी व्यक्तित्व को आकार देता है। इस अवधारणा को व्यावहारिक बनाने के लिए, अंकुरम कार्यक्रम गर्भवती माताओं को सशक्त बनाने हेतु एक व्यापक प्रशिक्षण मॉडल प्रस्तुत करता है। यह प्रशिक्षण गर्भ संस्कार के पीछे के प्राचीन विज्ञान, शिशु की शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक बुद्धि के सचेतन विकास, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के रखरखाव, और ध्यान, मंत्रोच्चार, शास्त्र वाचन और सेवा गतिविधियों के माध्यम से भावनात्मक और आध्यात्मिक सामंजस्य के विकास को शामिल करता है। इस कार्यक्रम में दिव्य प्रसव और माताओं एवं नवजात शिशुओं की प्रसवोत्तर देखभाल के लिए मार्गदर्शन भी शामिल है।

गर्भ संस्कार अकादमी की संस्थापक डॉ. सोनल जैन जायसवाल इस दृष्टिकोण को उल्लेखनीय समर्पण के साथ साकार करने का नेतृत्व कर रही हैं।अंकुरम का दार्शनिक आधार आचार्य श्री महाप्रज्ञ के प्रेक्षाध्यान में निहित है, जिसने यह स्थापित किया कि ध्यान केवल तपस्वियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के सभी चरणों के लिए सर्वाेच्च औषधि है। इसका मूल संदेश-“बोध करो, जानो और रूपांतरित करो”, यहाँ अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। जब एक माँ ध्यान करती है, तो उसकी उन्नत चेतना उसके अजन्मे बच्चे की चेतना को प्रकाशित करती है। आचार्य महाप्रज्ञ कहा करते थे, “गर्भ ध्यान का प्रथम मंदिर है। वहाँ उत्पन्न स्पंदन जीवन भर बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।” इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए, आचार्य श्री महाश्रमण ने इस संस्कार को आधुनिक संदर्भ में विस्तारित किया है, और कहा है कि भय, अशांति और तनाव से ग्रस्त इस विश्व में, गर्भ संस्कार जैसी पहल मानवता को स्थायी शांति और मूल्यों की ओर ले जा सकती है। मातृत्व स्वयं एक पवित्र तपस्या है, और अंकुरम उस तपस्या को चेतना के उत्सव में बदल देता है।

अंकुरम गर्भ संस्कार योग, ध्यान और आधुनिक विज्ञान का सुंदर समन्वय करता है। यह इस समझ पर आधारित है कि एक माँ के विचारों और भावनाओं का गर्भस्थ शिशु पर सीधा प्रभाव पड़ता है। योग, प्राणायाम और प्रेक्षा तकनीकों के माध्यम से, गर्भवती माताएँ शांत, संतुलित और आनंदित रहना सीखती हैं, जिससे शांत, स्वस्थ और मूल्य-उन्मुख बच्चे जन्मते हैं। जैसाकि सुमन नाहटा बताती हैं, अंकुरम एक प्रशिक्षण प्रक्रिया है जो भावी माताओं को गर्भावस्था को एक आध्यात्मिक साधना में बदलना सिखाती है ताकि प्रत्येक जन्म के साथ, मूल्यों का एक नया सूर्याेदय धरती पर उदित हो। यह पहल माताओं से आगे बढ़कर एक राष्ट्र-निर्माण आंदोलन है। एक मूल्य-उन्मुख पीढ़ी ही एक सशक्त समाज और एक शांतिपूर्ण विश्व की सच्ची नींव है। इस प्रकार, अंकुरम गर्भ संस्कार केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि धर्म, विज्ञान, मनोविज्ञान और संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने वाला एक आध्यात्मिक आंदोलन है।

आचार्य श्री महाश्रमण ने ठीक ही कहा है कि संस्कार बचपन में नहीं, बल्कि गर्भ में ही शुरू हो जाते हैं। एक माँ जो सजगता, करुणा और संयम के साथ जीवन जीती है, वह एक ऐसे बच्चे को जन्म देती है जो समाज में प्रकाश फैलाता है। अंकुरम के माध्यम से, हम एक सुसंस्कृत भारत की नींव रख रहे हैं। सुसंस्कृत मातृत्व सुसंस्कृत मानवता की ओर पहला कदम है। बीज से वृक्ष तक, यह पहल एक नई मानवता के पोषण की प्रयोगशाला है। इसे भारत के उन्नीस राज्यों के साथ-साथ नेपाल और भूटान में तेरापंथ महिला मंडलों की पाँच सौ पचास शाखाओं में सत्तर हज़ार से ज्यादा महिलाओं द्वारा क्रियान्वित किया जायेगा।
अंकुरम गर्भ संस्कार मातृत्व को एक ध्यानपूर्ण यात्रा में बदल देगा-जहां माँ और बच्चे के बीच एक मौन संवाद, जो शब्दों में नहीं, बल्कि भावनाओं के माध्यम से व्यक्त होगा। यह धर्म, योग और शांति का संवाद है।

यह पहल एक नई चेतना जगाती है कि अगर हम गर्भ से ही मूल्य-निर्माण शुरू कर दें, तो हम दुनिया से हिंसा, बेचैैनी और नैतिक पतन को मिटा सकते हैं। जैसाकि आचार्य महाप्रज्ञ ने बहुत खूबसूरती से कहा है, ‘जब एक माँ ध्यान में प्रवेश करती है, तो मानवता का भविष्य प्रार्थनापूर्ण हो जाता है।’ भारतीय चिंतन में, मातृत्व को हमेशा से ही सर्वाेच्च देवत्व-जननी, धात्री, अन्नपूर्णा और भूमिका देवी के रूप में पूजनीय माना गया है। माँ की गोद मूल्यों का सबसे बड़ा पवित्र स्थान है। हमारे महाकाव्य, रामायण और महाभारत, मातृ कृपा के अनगिनत आदर्शों को दर्शाते हैं-कौशल्या की कोमलता, सीता का साहस, कुंती का धैर्य और गार्गी-मैत्रेयी का ज्ञान। भारतीय संस्कृति में मातृत्व केवल एक रिश्ता नहीं है, यह एक आध्यात्मिक शक्ति, एक पवित्र ऊर्जा और समस्त सृष्टि का स्रोत है। गर्भ एक दिव्य प्रयोगशाला है जहाँ न केवल शरीर, बल्कि मानवता की आत्मा और मूल्यों का भी निर्माण होता है।

तनाव, प्रतिस्पर्धा और कृत्रिमता से ग्रस्त आज के भौतिकवादी संसार में, गर्भ संस्कार का पुनरुत्थान मानवता की जड़ों को एक बार फिर पोषित करने का मार्ग प्रस्तुत करता है। वैज्ञानिक अध्ययन अब इस बात की पुष्टि करते हैं कि एक माँ की मानसिक शांति, ध्यान, संगीत, योग और संतुलित आहार का अजन्मे बच्चे की बुद्धि, स्वास्थ्य और व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अंततः, अंकुरम का संदेश शाश्वत है- केवल सुसंस्कृत माताएँ ही सुसंस्कृत संतान को जन्म दे सकती हैं और ऐसी संतानें स्वर्ण युग की नींव रखेंगी।

ललित गर्ग लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ललित गर्ग लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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