हर्बल औषधि विनियमन में भारत की अग्रणी भूमिका: जकार्ता में आयोजित 16वीं डब्ल्यूएचओ-आईआरसीएच वार्षिक बैठक में भारत का उल्लेखनीय योगदान

इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में 14 से 16 अक्टूबर 2025 तक आयोजित विश्व स्वास्थ्य संगठन – अंतर्राष्ट्रीय हर्बल औषधि नियामक सहयोग (WHO-IRCH) की 16वीं वार्षिक बैठक में भारत ने हर्बल औषधि विनियमन के क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका का प्रभावशाली प्रदर्शन किया। इस वैश्विक मंच का उद्देश्य हर्बल औषधियों के विनियमन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, नीतिगत सामंजस्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना है।

हर्बल औषधि विनियमन में भारत की अग्रणी भूमिका: जकार्ता में आयोजित 16वीं डब्ल्यूएचओ-आईआरसीएच वार्षिक बैठक में भारत का उल्लेखनीय योगदान

इस तीन दिवसीय बैठक में विश्वभर के नियामक प्राधिकरणों, विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं ने भाग लिया, जिन्होंने पारंपरिक औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता को वैश्विक स्तर पर सुदृढ़ करने के उपायों पर विचार-विमर्श किया। भारत का प्रतिनिधिमंडल इस बैठक में अत्यंत सक्रिय रहा और कई महत्वपूर्ण सत्रों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल की सक्रिय भागीदारी

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन सलाहकार (आयुर्वेद) एवं उप महानिदेशक (प्रभारी) डॉ. रघु अरक्कल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने जकार्ता बैठक में उल्लेखनीय योगदान दिया। भारतीय टीम ने न केवल नीतिगत चर्चाओं में भाग लिया, बल्कि हर्बल औषधियों से संबंधित विभिन्न तकनीकी सत्रों में अपने अनुभव और अनुसंधान प्रस्तुत किए।

बैठक के दूसरे दिन आयोजित तकनीकी सत्रों में भारत की भूमिका विशेष रूप से सराही गई। डॉ. रघु अरक्कल ने “हर्बल औषधियों की प्रभावकारिता और इच्छित उपयोग (कार्य समूह-3)” विषय पर कार्यशाला रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने अपने प्रस्तुतीकरण में भारत में विकसित हो रहे साक्ष्य-आधारित विनियामक ढाँचे, अनुसंधान मानकों और पारंपरिक चिकित्सा के वैज्ञानिक मूल्यांकन पर विस्तृत जानकारी दी।

सुरक्षा और विनियमन पर भारतीय दृष्टिकोण

भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी फार्माकोपिया आयोग (PCIM&H) के निदेशक डॉ. रमन मोहन सिंह ने “हर्बल औषधियों की सुरक्षा और विनियमन (कार्य समूह-1)” पर कार्यशाला रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने “हर्बल औषधियों की सुरक्षा और विनियमन – भारतीय परिप्रेक्ष्य” विषय पर एक स्वतंत्र प्रस्तुति दी, जिसमें भारत के नियामक ढाँचे, औषधीय सुरक्षा मानकों और गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को विस्तार से बताया गया।

इन दोनों कार्यशालाओं का आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा भारत सरकार के आयुष मंत्रालय और पीसीआईएमएंडएच के सहयोग से किया गया था। यह कार्यशालाएँ अगस्त 2025 में गाजियाबाद में आयोजित की गईं, जिनसे प्राप्त अनुभव और निष्कर्षों ने WHO-IRCH की 16वीं वार्षिक बैठक के लिए आधार सामग्री प्रदान की।

गुणवत्ता नियंत्रण और सततता पर भारत का दृष्टिकोण

बैठक के एक अन्य सत्र में राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. महेश दाधीच ने डॉ. सिंह के साथ मिलकर “हर्बल औषधियों के गुणवत्ता नियंत्रण, मानकीकरण और सततता” पर प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि हर्बल औषधियों के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधों की सतत उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।

डॉ. दाधीच ने यह भी रेखांकित किया कि भारत औषधीय पौधों के सतत उपयोग, पर्यावरणीय संरक्षण, और जैव विविधता के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध है। इसके लिए भारत में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है ताकि हर्बल औषधियों के वैश्विक मानक सुनिश्चित किए जा सकें।

भारत का योगदान: वैश्विक मानकों की दिशा में अग्रसर

इस बैठक में भारत की भागीदारी ने यह स्पष्ट किया कि देश न केवल पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों का संरक्षक है, बल्कि उनके वैज्ञानिक मूल्यांकन और वैश्विक मानकीकरण की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

भारत द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टें और कार्यशालाएँ हर्बल औषधियों की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता के लिए वैश्विक स्तर पर एक समन्वित दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक सिद्ध हुईं। आयुष मंत्रालय के नेतृत्व में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ मिलकर पारंपरिक औषधियों को विज्ञान-आधारित और साक्ष्य-समर्थित चिकित्सा पद्धतियों के रूप में स्थापित करने के लिए निरंतर कार्य कर रहा है।

वैश्विक मंच पर भारत की साख

डब्ल्यूएचओ-आईआरसीएच (WHO-IRCH) के तत्वावधान में भारत का योगदान इस बात का प्रमाण है कि पारंपरिक औषधियों के क्षेत्र में भारत न केवल अपने अनुभव साझा कर रहा है, बल्कि वैश्विक नीति निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

भारत की पहलें, जैसे कि फार्माकोपिया मानकीकरण, औषधीय पौधों का ट्रेसबिलिटी सिस्टम, और साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन पद्धतियाँ, अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मॉडल के रूप में उभर रही हैं।

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