भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम स्थित राजभवन में भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन की प्रतिमा का अनावरण किया। यह आयोजन एक भावनात्मक और गरिमामय समारोह के रूप में संपन्न हुआ, जिसमें देश के कई प्रमुख नेता और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। इस अवसर पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद, केरल के राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, बिहार के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान, केरल के मुख्यमंत्री श्री पिनाराई विजयन, तथा अन्य विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।

श्री के.आर. नारायणन: संघर्ष, शिक्षा और आत्मविश्वास की मिसाल
राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने संबोधन में कहा कि श्री के.आर. नारायणन का जीवन साहस, दृढ़ता और आत्मविश्वास की प्रेरक गाथा है। उन्होंने सीमित साधनों के बावजूद अपने अटूट समर्पण और शिक्षा की शक्ति के माध्यम से देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय किया। उनके जीवन की कहानी यह दर्शाती है कि जब व्यक्ति में दृढ़ निश्चय और उद्देश्यपूर्ण प्रयास का संगम होता है, तो कोई भी ऊँचाई असंभव नहीं रहती।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्री नारायणन की शैक्षणिक उत्कृष्टता इस बात का उदाहरण है कि शिक्षा न केवल व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि समाज में परिवर्तन का साधन भी बनती है। उन्होंने कहा कि राजनीति में प्रवेश से पहले श्री नारायणन ने भारतीय विदेश सेवा (IFS) में एक विशिष्ट और प्रेरणादायक करियर बनाया। एक राजनयिक के रूप में उन्होंने भारत के शांति, न्याय और सहयोग के मूल्यों को वैश्विक स्तर पर दृढ़ता से स्थापित किया।
निष्पक्षता और समावेशिता के प्रति अडिग प्रतिबद्धता
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि श्री के.आर. नारायणन सदैव निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और समावेशिता के सिद्धांतों के प्रति अडिग रहे। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में यह सुनिश्चित किया कि शासन और नीतियों में हर वर्ग की भागीदारी और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो। वे लोकतंत्र के उस स्वरूप में विश्वास रखते थे जिसमें हर नागरिक की आवाज सुनी जाए और हर व्यक्ति को समान अवसर मिले।
केरल से गहरा जुड़ाव और शिक्षा के प्रति समर्पण
राष्ट्रपति ने स्मरण किया कि श्री नारायणन अपने गृह राज्य केरल से गहराई से जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि केरल की सामाजिक प्रगति, शिक्षा प्रणाली और समावेशी विकास मॉडल से उन्हें गहरी प्रेरणा मिली। उन्होंने अपने जीवन में सदैव इस बात पर बल दिया कि शिक्षा केवल कुछ लोगों का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि हर नागरिक का अधिकार है।
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि श्री नारायणन ने मानव और राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की केंद्रीय भूमिका पर हमेशा जोर दिया। उनका विश्वास था कि शिक्षा के माध्यम से समाज में समानता और सामाजिक न्याय स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि श्री नारायणन का यह विचार आज भी प्रासंगिक है कि मानवीय मूल्य किसी भी सभ्यता की प्रगति का मूल आधार होते हैं और समाज को सशक्त बनाने के लिए इन्हें निरंतर पोषित किया जाना चाहिए।
लोकतांत्रिक मूल्यों और नैतिकता की विरासत
राष्ट्रपति ने कहा कि श्री के.आर. नारायणन ने अपने जीवन से नैतिकता, सत्यनिष्ठा, करुणा और लोकतांत्रिक भावना की एक अमिट छाप छोड़ी। उनका कार्यकाल इस बात का उदाहरण है कि सर्वोच्च पद पर रहते हुए भी विनम्रता और नैतिक आचरण से जनता का विश्वास अर्जित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि आज जब देश श्री नारायणन की स्मृति का सम्मान कर रहा है, तो यह केवल एक महान नेता को श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि उन आदर्शों और मूल्यों का पुनर्स्मरण भी है, जिनके लिए वे जीवनभर समर्पित रहे।
राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरणास्रोत
राष्ट्रपति मुर्मु ने विश्वास व्यक्त किया कि श्री के.आर. नारायणन की विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए राष्ट्र निर्माण, समानता, और करुणा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी। उन्होंने कहा कि श्री नारायणन का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची नेतृत्व क्षमता केवल सत्ता में नहीं, बल्कि समाज के हर व्यक्ति के उत्थान में निहित होती है।