केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के तेजी से बदलते स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बीते एक दशक में देश ने स्वास्थ्य क्षेत्र में एक “परिवर्तनकारी युग” देखा है, जिसने चिकित्सा सेवाओं को अधिक सुलभ, किफायती और समावेशी बनाया है।

डॉ. सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (यूसीएमएस) के 54वें स्थापना दिवस और दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने स्नातक एवं स्नातकोत्तर छात्रों को डिग्रियाँ प्रदान कीं और नई पीढ़ी के डॉक्टरों से आह्वान किया कि वे नवाचार और करुणा को अपने पेशे का अभिन्न हिस्सा बनाएं।
भारत में चिकित्सा शिक्षा का नया युग
अपने संबोधन में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले दस वर्षों में भारत की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन हुआ है। मेडिकल कॉलेजों की संख्या और प्रशिक्षण अवसरों में हुई बढ़ोतरी ने स्वास्थ्य क्षेत्र की आधारभूत संरचना को सुदृढ़ किया है।
उन्होंने बताया, “दस वर्ष पहले जहाँ भारत में केवल 45,000 स्नातक चिकित्सा सीटें थीं, आज यह संख्या बढ़कर लगभग 1.5 लाख हो चुकी है।”
मंत्री ने कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे प्रमुख संस्थानों का देश के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार इस बात का प्रमाण है कि चिकित्सा शिक्षा अब केवल कुछ शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक रूप से सुलभ हुई है।
डॉ. सिंह ने यह भी उल्लेख किया कि इस परिवर्तन ने विशेष रूप से महिलाओं को चिकित्सा क्षेत्र में आगे बढ़ने के अधिक अवसर प्रदान किए हैं। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन भारत में न केवल स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बढ़ाने वाला रहा है, बल्कि लैंगिक समानता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
तीन गुना बदलाव – सुलभ, किफायती और उपलब्ध स्वास्थ्य सेवा
केंद्रीय मंत्री ने भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में आए बदलाव को “तीन गुना परिवर्तन” बताया — Accessibility (सुलभता), Affordability (किफ़ायत) और Availability (उपलब्धता)। उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत योजना, प्रधान मंत्री जन औषधि केंद्र, और टेलीमेडिसिन जैसी पहलों ने स्वास्थ्य सेवाओं को देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने का कार्य किया है।
अपने चिकित्सा करियर के अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि भारत में अब स्वास्थ्य बीमा पहले से मौजूद बीमारियों को भी कवर करता है — जिसे उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति के इतिहास में “सबसे मानवीय नवाचारों में से एक” बताया।

भारत की जैव-प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में अग्रणी भूमिका
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत के जीवन विज्ञान क्षेत्र ने वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत साख बनाई है। उन्होंने बताया कि “भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT)” ने कोविड-19 के लिए दुनिया का पहला डीएनए टीका और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीन विकसित की है। उन्होंने कहा कि आज भारत 200 से अधिक देशों को स्वदेशी टीके उपलब्ध करा रहा है, जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
मंत्री ने भारत के पहले स्वदेशी एंटीबायोटिक ‘नैफिथ्रोमाइसिन’ और हीमोफीलिया के लिए जीन थेरेपी पर हुए सफल परीक्षणों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये उपलब्धियाँ दर्शाती हैं कि भारत अब निवारक और चिकित्सीय अनुसंधान में वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है।
शिक्षा, उद्योग और अनुसंधान का समन्वय आवश्यक
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अब वह समय आ गया है जब शैक्षणिक संस्थानों, उद्योग और सरकारी प्रयोगशालाओं को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने यूसीएमएस और देश के अन्य संस्थानों से आग्रह किया कि वे निजी क्षेत्र के साथ मिलकर नैदानिक परीक्षणों और अनुसंधान में सहयोग बढ़ाएँ। उन्होंने कहा, “अलग-अलग काम करने का युग समाप्त हो गया है। अब एकीकृत दृष्टिकोण ही आगे का रास्ता है।”
कृत्रिम बुद्धिमत्ता से स्वास्थ्य सेवा में नवाचार
उभरती स्वास्थ्य चुनौतियों का उल्लेख करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि आधुनिक डॉक्टरों को संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों के सह-अस्तित्व, बढ़ती वृद्ध आबादी, और तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
उन्होंने कहा कि चिकित्सा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का एकीकरण स्वास्थ्य क्षेत्र में नई परिभाषाएँ गढ़ रहा है।
अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने टेली-मोबाइल क्लीनिकों के माध्यम से एआई के प्रयोग को सफलतापूर्वक लागू किया है।
डॉ. सिंह ने कहा, “एआई अब मरीज की अपनी भाषा में संवाद कर सकता है और मानवीय संवेदना के साथ रोगी को सहजता प्रदान कर सकता है। यह स्वास्थ्य सेवा का वह नया मॉडल है जिसमें सहानुभूति और नवाचार का संतुलन है।”
भारत के डॉक्टर – 2047 के ‘विकसित भारत’ के निर्माता
डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने समापन भाषण में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज के स्नातक भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के भविष्य के शिल्पकार हैं।
उन्होंने कहा, “आज डिग्री प्राप्त करने वाले छात्र जब 2047 में भारत की स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने पर अपने करियर के शिखर पर होंगे, तब वे एक स्वस्थ, आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माता होंगे। यह आपका ऐतिहासिक दायित्व है।”
यूसीएमएस की 54 वर्षों की उपलब्धियाँ
इस अवसर पर यूसीएमएस की 54 वर्षों की गौरवशाली यात्रा को दर्शाने वाला स्मृति चिन्ह जारी किया गया, जिसमें कॉलेज की शिक्षा, अनुसंधान और जनसेवा की उपलब्धियाँ दर्ज हैं।
इस प्रकाशन में विशेष रूप से जीटीबी अस्पताल के साथ यूसीएमएस की साझेदारी और समुदाय-आधारित स्वास्थ्य पहलों में इसके योगदान पर प्रकाश डाला गया है।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. सिंह ने मेधावी छात्रों और शिक्षकों को उनकी शैक्षणिक उत्कृष्टता और अनुसंधान उपलब्धियों के लिए पुरस्कार और पदक प्रदान किए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि नई पीढ़ी के चिकित्सक भारत की स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को दिशा देंगे और देश को वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व की ओर अग्रसर करेंगे।
कार्यक्रम की प्रमुख उपस्थिति
कार्यक्रम की शुरुआत यूसीएमएस के शासी निकाय के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) महेश वर्मा के स्वागत भाषण से हुई। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन ऑफ कॉलेजेज और मुख्य अतिथि प्रो. बलराम पाणि ने अपने विचार साझा किए।
इस अवसर पर यूसीएमएस के संकाय सदस्य, छात्र और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम ने चिकित्सा शिक्षा को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ने के सरकार के व्यापक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित किया।