वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने सशक्त विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सम्मेलन (ईएसटीआईसी) 2025 के तीसरे दिन उन्नत सामग्री एवं विनिर्माण क्षेत्र में भारत की प्रगति पर केंद्रित एक प्रभावशाली तकनीकी सत्र का आयोजन किया। इस सत्र में देश-विदेश के अग्रणी वैज्ञानिकों, नवप्रवर्तकों, उद्यमियों और नीति-निर्माताओं ने भाग लिया। इसका उद्देश्य भारत में विकसित हो रही अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों, नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और भविष्य की औद्योगिक रणनीतियों पर प्रकाश डालना था।

भारत की तकनीकी प्रगति की नई दिशा
उन्नत सामग्री एवं विनिर्माण पर आयोजित पूर्ण सत्र की अध्यक्षता सीएसआईआर की महानिदेशक एवं डीएसआईआर की सचिव डॉ. (श्रीमती) एन. कलैसेल्वी ने की। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि विज्ञान, अनुसंधान एवं विकास, तथा उन्नत सामग्री भारत के “विकसित भारत 2047” के प्रमुख स्तंभ हैं। डॉ. कलैसेल्वी ने इस बात पर बल दिया कि सामग्री विज्ञान, स्वच्छ ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी और उभरती प्रौद्योगिकियों में हो रहे नवाचार भारत को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से सशक्त राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि “ईएसटीआईसी 2025 केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि ऐसा प्रभावशाली मंच है जहाँ विचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का संगम होता है। यहाँ विकसित की जा रही अवधारणाएँ एक ऐसे भारत के निर्माण की दिशा में योगदान दे रही हैं जो ज्ञान-संचालित, सतत और भविष्य के लिए तैयार है।”
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और औद्योगिक नवाचार का संगम
मुख्य भाषण में जेएनसीएएसआर, बेंगलुरु के पूर्व अध्यक्ष प्रो. गिरिधर उदयपी राव कुलकर्णी ने बताया कि विश्व अब “पदार्थ से पदार्थों की ओर” अग्रसर है — यानी कच्चे तत्वों से लेकर सटीकता, प्रदर्शन और उद्देश्य के साथ डिजाइन की गई इंजीनियर संरचनाओं तक। उन्होंने बताया कि सेमीकंडक्टर, कंपोजिट्स और स्मार्ट पॉलिमर्स जैसी तकनीकों के विकास ने भारत को प्रौद्योगिकी युग की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ाया है।
प्रो. कुलकर्णी ने कहा कि “नैनो-स्तर की परिशुद्धता, आकार नियंत्रण और आयामी इंजीनियरिंग के माध्यम से वैज्ञानिक नवाचार ऐसे विनिर्माण तंत्रों को जन्म दे रहे हैं जो ‘विकसित भारत 2047’ के विज़न को साकार करेंगे। यह विज्ञान से नवाचार, नवाचार से विनिर्माण, और विनिर्माण से उत्पाद की निरंतर प्रक्रिया को सशक्त बनाता है।”
निजी क्षेत्र की भूमिका और उभरते अवसर
इस सत्र में स्काईरूट एयरोस्पेस, हैदराबाद के सह-संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री पवन कुमार चंदना ने “एलीवेटिंग एयरोस्पेस: द फ्रंटियर ऑफ एडवांस्ड कंपोजिट्स एंड थ्री-डी प्रिंटिंग” विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि भारत का निजी अंतरिक्ष क्षेत्र अब वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रहा है और स्वदेशी नवाचार इसके मूल में है। उन्होंने उल्लेख किया कि स्काईरूट एयरोस्पेस भारत का पहला पूर्ण-कार्बन प्रक्षेपण यान विक्रम-1 विकसित कर रहा है, जो देश की तकनीकी स्वायत्तता का प्रतीक बनेगा।
इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, पिंपरी की प्रबंध निदेशक श्रीमती राजश्री तेली ने “ब्लूप्रिंट से सफलता तक: जब परिशुद्धता एक राष्ट्रीय कर्तव्य बन जाती है” विषय पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने विनिर्माण क्षेत्र में डिज़ाइन की सटीकता, गुणवत्ता और महिलाओं के नेतृत्व की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत का औद्योगिक परिदृश्य तब तक सशक्त नहीं हो सकता जब तक इसमें विविधता और कौशल का संतुलन न हो।
शोध, स्थिरता और भविष्य की दिशा
आईआईटी मद्रास, चेन्नई के प्रो. टी. प्रदीप ने “बड़े पैमाने पर पदार्थ के सपने: सामग्रियों का भविष्य बनाना” विषय पर चर्चा की, जिसमें उन्होंने स्वच्छ जल और सतत समाधानों के लिए नैनो प्रौद्योगिकियों की उपयोगिता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि “भविष्य की सामग्रियां न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होंगी, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में भी योगदान देंगी।”
वहीं, रमन अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु के प्रो. बी. एस. मूर्ति ने “भारत की क्वांटम बढ़त का निर्माण” विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि अर्धचालक डिजाइन, फोटोनिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग में भारत की प्रगति कैसे विज्ञान और उद्योग के बीच एक नए युग की शुरुआत कर रही है।
सम्मेलन का प्रभाव
सफल समापन सत्र ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि सीएसआईआर भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श, तकनीकी प्रस्तुतियाँ और सहयोगी चर्चाएँ इस बात का संकेत हैं कि भारत का अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से “ज्ञान-संचालित अर्थव्यवस्था” में परिवर्तित हो रहा है।
जैसे-जैसे भारत “विकसित भारत 2047” की दिशा में अग्रसर है, इस सम्मेलन में प्रदर्शित उन्नत सामग्री और विनिर्माण से संबंधित अनुसंधान आत्मनिर्भरता, सतत विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे।